राजनारायण ने अपनी पुश्तैनी जमीन उनके खेतों के हरिजन भूमिहीन मजदूरों में बांट दी

‌‌ प्रोफेसर राजकुमार जैन
कभी-कभी इतिहास के पन्नों को पढ़ने, पलटने से हताशा, निराशा कायरता से लड़ने की और कुछ करने की ताकत मिलती है। इसलिए उन बातों को दोहराते रहना चाहिए जिससे आपको प्रेरणा मिलती है।बनारस राजघराने से ताल्लुक रखने वाले एक बड़े भूमिहार, भूमिपति जमींदार परिवार मे 23 नवंबर 1917 को जन्मे सोशलिस्ट नेता राजनारायण ने अपनी पुश्तैनी जमीन उनके खेतों के हरिजन भूमिहीन मजदूरों में बांट दी। जुल्म ज्यादती गैर बराबरी, बेइंसाफी के खिलाफ संघर्ष करने का दूसरा नाम राजनारायण है। आजादी की जंग में संघर्ष करते हुए 18 सितंबर 1942 मैं गिरफ्तार होकर 3 साल 10 महीने 11 दिन के बाद 7 अगस्त 1946 को वह जेल से रिहा हुए। उसके बाद मुसलसल अनगिनत बार उन्होंने जेल की यात्राएं सही।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ने की कोई बड़ा नेता हिम्मत नहीं कर रहा था, वहां जाकर राजनारायण जी ने चुनाव लड़ा। राजनारायण जी चुनाव में पराजित दिखाए गए, तो राज नारायण जी ने उसके विरुद्ध हाई कोर्ट में चुनाव पिटीशन दायर कर दी। सभी लोग उनको मना कर रहे थे इससे कुछ निकलने वाला नहीं है, परंतु वे लड़ते रहे और चुनाव पिटीशन में वह जीत गए। दोबारा आपातकाल के बाद आम चुनाव के वक्त राजनारायण जी हिसार जेल में बंद थे, मैं भी इसी जेल में बंदी था। मेरी रिहाई के वक्त राजनारायण जी ने दो तीन बड़े राष्ट्रीय नेताओं के नाम खत दिया कि उनको श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहिए परंतु कोई बड़ा नेता चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हुआ। राज नारायण जी ने जेल से बाहर आते ही दोबारा इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़ने की घोषणा कर दी, उनके सभी समर्थक और चाहने वालो ने राजनारायण जी से आग्रह किया कि वह रायबरेली के स्थान पर किसी और सीट से चुनाव लड़कर आसानी से संसद में पहुंच सकते हैं, परंतु राजनारायण जी चुनाव रायबरेली से ही लड़े और जीते।
राजनारायण जी की शख्सियत का असली आंकलन उनके गुरु डॉ राम मनोहर लोहिया ने किया था। उनका कहना था उसने “शेर का दिल और गांधी के तरीके पाए हैं, मैं इसलिए यह कह रहा हूं कि आप भी राजनारायण बन सकते हैं, जब तक देश में राजनारायण जैसा आदमी है तानाशाही नहीं बढ़ सकती है । आज कमजोर आदमी भी चाहे तो पुलिस पलटन के सामने अड़ सकता है। राजनारायण से सीखो अगर चन्द आदमी भी इस तरह के हो गए तो हिंदुस्तान में तानाशाही असंभव हो जाएगी।
राजनारायण जिन्होंने बड़े से बड़े सत्ताधीशों को धूल चटादी, एमपी एमएलए केंद्र के मंत्री रहने के बावजूद एक फकीर की तरह अपनी जिंदगी गुजारते हुए अपने अनुयायी के किराए के मकान में अंतिम दिन गुजारे। परंतु उनके इंतकाल के बाद उनकी शव यात्रा में पूरा बनारस पीछे चल दिया था, उनके सम्मान में शहर की सारी दुकानें बंद थी, गम और दुख दिखाई दे रहा था।
काशी विश्वविद्यालय बनारस से उच्च शिक्षित एम ए,एल एलबी की सनद याफ्ता राज नारायण जी का हिंदुस्तान के भद्र समाज तथा अंग्रेजी प्रेस ने हमेशा उनका मजाक उड़ाते हुए तोहमदे लगायीं तथा जिन सत्ताधारियों प्रधानमंत्रीयों, मंत्रियों, धन्नासेठों की कीर्ति पताका का गुणगान किया, आज उनका कोई नाम लेवा नहीं है, इतिहास के कूड़ेदान में ऐसे सब नेता दफन कर दिए गए हैं। परंतु आज भी हिंदुस्तान में हजारों की तादाद में ऐसे लोग हैं जो राजनारायण को अपना आदर्श मानते है, उनके नाम पर फख्र के साथ मिशन चलाते हैं। मेरे सोशलिस्ट साथी शाहनवाज अहमद कादरी
“हम हैं राज नारायण के लोग” का बोर्ड लगाकर राजनारायण जी के विचार, संघर्ष और कर्म को फैलाने में लगे हैं। उन्होंने राजनारायण “एक नाम नहीं इतिहास है”, तथा आजादी के मुस्लिम देशभक्तों पर “लहू बोलता भी है” जैसी ऐतिहासिक पुस्तक को लिखा है। देश के चोटी के पत्रकार, कवि धीरेंद्र नाथ श्रीवास्तव ने “लोकबंधु राजनारायण विचार पथ- एक” जैसी महत्वपूर्ण कृति का संपादन कर राजनारायण जी के इतिहास को लिखा है। आज भी मूल्क की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उन पर लेख, विमर्श, सभा, संघर्षों के मोर्चे का आयोजन हो रहा है, और होता रहेगा।

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