लखनऊ। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने बयान जारी कर कहा है कि इधर भारतीय रेल स्लीपर श्रेणी एवं सामान्य श्रेणी के डिब्बों में कटौती कर एअर कण्डीशण्ड डिब्बों की संख्या बढ़ा रही है। स्लीपर श्रेणी का किराया सामान्य श्रेणी के किराए से डेढ़ गुना से ज्यादा होता है व ए.सी. तृतीय श्रेणी का किराया स्लीपर श्रेणी से दो गुना से ढाई गुना होता है। आजकल बस कर किराया सामान्य श्रेणी के किराए से तीन गुना से ज्यादा हो गया और लगभग रेलवे के एसी. तृतीय श्रेणी के किराए के बराबर हो गया है। यह सोचने का विषय है कि जिस देश में इंसान सामान्य श्रेणी में जानवरों की तरह सफर करने को तैयार होता है तो उसकी मजबूरी ही होगी कि वह उससे ज्यादा पैसे नहीं खर्च कर सकता। यदि सामान्य श्रेणी और स्लीपर श्रेणी के डिब्बों की संख्या कम की जाएगी तो भारत का आम यात्री कैसे यात्रा करेगा? यदि हमारे संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार अनुच्छेद 19(घ) कि कोई देश में कहीं भी यात्रा कर सकता है का उल्लंघन है क्योंकि रेलवे ही यात्रा करने का सबसे सस्ता साधन है।
हम मांग करते हैं किः
1. रेलवे में स्लीपर श्रेणी एवं सामान्य श्रेणी के डिब्बों में की गई कटौती को बहाल किया जाए। किसी श्रेणी में चलने वाले यात्रियों की संख्या के आधार पर डिब्बों की संख्या तय होनी चाहिए न कि मनमाने तरीके से। बंद की गई सवारी गाड़ियां भी बहाल की जाएं।
2. जलवायु परिवर्तन के गहराते संकट को देखते हुए धीरे धीरे एअर कंडीशन्ड डिब्बे हटाए जाएं।
3. यात्रियों के किराए में की जा रही बढ़ोतरी रोकी जाए। वरिष्ठ नागरिकों, विकलांगों, आदि को दी जाने वाली छूट बहाल की जाए। टिकट रद्दीकरण के पुराने नियम बहाल किए जाएं।
4. रेलवे की विभिन्न सेवाओं में किए जा रहे निजीकरण को रोका जाए। रेलवे सार्वजनिक सम्पत्ति है। किसी भी सरकार को यह अधिकार नहीं है कि मनमाने तरीके से सेवाओं का निजीकरण करे।
5. संविदा कर्मचारियों की जगह नियमित कर्मचारियों के काम कराया जाए। खाली पड़ी जगहों पर तुरंत नियुक्तियां की जाएं।
6. आई.आर.सी.टी.सी. को पूरी तरह भारतीय रेल के तहत लाया जाए। आई.आर.सी.टी.सी. द्वारा संचालित निजी तेजस एक्सप्रेस को भारतीय रेल चलाए।
7. भारतीय रेल 12 खरब रुपए खर्च की जो कैमरे व निगरानी की व्यवस्था लागू करने जा रही है उसका आम इंसान के लिए कोई उपयोग नहीं। इससे ज्यादा जरूरी है कि रेलगाड़ियों की दुर्घटना रोकने के लिए अतिरिक्त लोको पाॅयलटों की भर्ती की जाए।
8. भारतीय रेलवे में कोई भी परिवर्तन बिना जनता से सुझाव लिए नहीं किया जाए। कम से कम संसद में तो बहस होनी ही चाहिए।