नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी को लेकर उठ रहे सवाल

 बिहार की राजनीति में उथल-पुथल

दीपक कुमार तिवारी। नई दिल्ली/पटना। बिहार की राजनीति एक बार फिर नए मोड़ पर है। विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, एनडीए और बीजेपी के भीतर तनाव बढ़ता दिख रहा है। सत्ता के गलियारों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि नीतीश कुमार के बाद कौन?

 

नीतीश कुमार: अनुभव या असमंजस?

 

नीतीश कुमार 74 वर्ष के हो चुके हैं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनकी निर्णय लेने की क्षमता पहले जैसी नहीं रही। कई मौकों पर भावनाओं पर नियंत्रण खोने और अजीबोगरीब बयान देने के कारण उनकी छवि को नुकसान हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूने की उनकी सार्वजनिक हरकत ने भी उनकी राजनीतिक शक्ति को लेकर संदेह पैदा किया है।

 

उत्तराधिकारी की तलाश में फंसी जेडीयू:

 

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के भीतर भी उत्तराधिकारी को लेकर असमंजस है। उनके बाद पार्टी की कमान कौन संभालेगा, यह स्पष्ट नहीं है। हालांकि, नीतीश खुद वंशवाद के कट्टर विरोधी रहे हैं, लेकिन क्या वे अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में उतार सकते हैं? यह एक बड़ा सवाल है। लालू यादव ने तेजस्वी को अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी थी, लेकिन नीतीश ऐसा करने से पहले बहुत सोच-विचार करेंगे।

 

बीजेपी को मिल रहा मौका

 

इस राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता विरोधी लहर के बीच, बीजेपी खुद को एक नए अवसर के रूप में देख रही है। बिहार ने अभी तक बीजेपी को अपने दम पर सरकार बनाने का मौका नहीं दिया है, लेकिन हाल ही में हुए मंत्रिमंडल विस्तार ने गठबंधन में बीजेपी की मजबूत पकड़ के संकेत दिए हैं।

 

ईबीसी वोट बैंक पर बीजेपी की नजर:

 

नीतीश कुमार का मुख्य वोट बैंक अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) रहा है। लेकिन बीजेपी ने हाल ही में ईबीसी समुदायों को मंत्रिमंडल में प्रमुख स्थान देकर इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। जेडीयू की आशंका तब और बढ़ गई जब नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार ने अपने पिता को एनडीए के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में घोषित करने की मांग की।

 

विपक्ष के लिए चुनौती बढ़ी

 

अगर नीतीश कुमार की राजनीतिक भूमिका कमजोर होती है, तो विपक्ष के लिए भी यह आसान राह नहीं होगी।

-भाजपा के बढ़ते वोट शेयर और मजबूत संगठन का सामना करना होगा।

-नीतीश कुमार ने अब तक सांप्रदायिक राजनीति को संतुलित रखा है, जिससे बिहार में राजनीतिक स्थिरता बनी रही।

-जेडीयू-राजद समीकरण भी बदल सकता है। राजद ने संकेत दिए हैं कि यदि निशांत कुमार जेडीयू का नेतृत्व करते हैं, तो वे इसे समर्थन दे सकते हैं।

नीतीश कुमार के पास आखिरी दांव?

भले ही युवाओं के बीच बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अपराध जैसे मुद्दों ने उनकी लोकप्रियता को गिराया हो, लेकिन बिहार में अब भी उनके जैसा करिश्माई नेता किसी अन्य दल में नहीं है।
इसके अलावा, मोदी सरकार जेडीयू सांसदों के समर्थन पर निर्भर है। ऐसे में, नीतीश कुमार आगामी चुनावों में सीटों के सम्मानजनक हिस्से की मांग कर सकते हैं। अगर 2020 के चुनावों की तरह कोई भी गठबंधन उनकी पार्टी के समर्थन के बिना सरकार नहीं बना पाता, तो वे फिर से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार बन सकते हैं।

क्या बिहार की राजनीति में एक बार फिर “खेला” होगा? या इस बार बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब होगी? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि बिहार की सियासत में नीतीश कुमार की भूमिका खत्म नहीं हुई है।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *