चरण सिंह
क्या प्रशांत किशोर कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार की तरह बिहार की राजनीति में अपने को साबित कर पाएंगे। जातिवादी राजनीति के लिए उपजाऊ माने जाने वाली बिहार की धरती पर क्या एक ब्राह्मण समाजवादी का जादू चल पाएगा ? इसमें दो राय नहीं कि प्रशांत किशोर ने जिस तरह से दो साल तक पदयात्रा निकालने के बाद अपनी जन सुराज पार्टी बनाई है उसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि प्रशांत किशोर पार्टी को आगे बढ़ाने में संघर्ष जमीनी करेंगे। दरअसर बिहार को राजनीति की जननी माना जाता है। यहां पर यदि संघर्षशील आदमी राजनीति में ईमानदारी से मेहनत कर ले जाए तो लोग उसे हाथों हाथ लिया जाता है। बिहार के लोगों का दिल इतना बड़ा है कि बाहरी नेताओं के संघर्ष को भी यहां के लोगों ने सिर माथे लिया है। जार्ज फर्नांडीज, मधु लिमये, शरद यादव जैसे नेताओं को बिहार के लोगों ने पलकों को बैठाया।
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जिस अंदाज में अपनी सुराज पार्टी बनाई है उससे उन्होंने अपने ईरादे जाहिर कर दिये हैं। पहले दो साल तक प्रशांत किशोर ने बिहार में पदयात्रा निकाली और अब दो अक्टूबर को अपनी जन सुराज पार्टी की घोषणा कर दी। प्रशांत किशोर ने एक दलित नौकरशाह मनोज भारती को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर जता दिया कि वह दलितों का आगे कर समर्पण की राजनीति करने वाले हैं। पार्टी की घोषणा करते समय उन्होंने अपनी रैली में हर विचारधारा की उपस्थिति बताई।
उन्होंने कार्यकर्ताओं को जनता के टिकट देने और जनता के ही चुनाव लड़ने की बात कही है। हालांकि इस तरह की बात आम आदमी पार्टी ने भी कही थी पर आज की तारीख में आम आदमी पार्टी में आम आदमी की कहीं जगह नहीं बची है। लेकिन प्रशांत किशोर ने बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव दोनों को ललकार कर यह साबित कर दिया कि यदि मेहनत की जाए तो कुछ भी किया जा सकता है। प्रशांत किशोर उन लोगों के लिए प्रेरणादायक हो सकते हैं जो विभिन्न दलों में हो रही गुलामी का विरोध कर अलग रास्ता बनाने की सोच रहे हैं। अपने अधिकारिक झंडे पर महात्मा गांधी और डॉ. भीम राव अंबेडकर दोनों की तस्वीर लगाने की बात कर उन्होंने समाजवाद को प्राथमिकता दी।
दरअसल प्रशांत किशोर ने साबित कर दिया कि यदि आदमी संकल्प ले ले तो उसके सामने हर लक्ष्य बौना नजर आने लगता है। प्रशांत किशोर देश की राजनीति में चुनावी रणनीतिकार के रूप में जाने जाते रहे हैं। उन्हें चुनावी मैनेजर माना जाता रहा है। उन्होंने लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार, बंगाल समेत कई प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में भी अपनी रणनीति का लोहा मनवाया है। जब नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया तो यह माना जाने लगा था कि प्रशांत किशोर सक्रिय करेंगे।
क्या प्रशांत किशोर कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार की तरह बिहार की राजनीति में अपने को साबित कर पाएंगे। जातिवादी राजनीति के लिए उपजाऊ माने जाने वाली बिहार की धरती पर क्या एक ब्राह्मण समाजवादी का जादू चल पाएगा ? इसमें दो राय नहीं कि प्रशांत किशोर ने जिस तरह से दो साल तक पदयात्रा निकालने के बाद अपनी जन सुराज पार्टी बनाई है उसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि प्रशांत किशोर पार्टी को आगे बढ़ाने में संघर्ष जमीनी करेंगे। दरअसर बिहार को राजनीति की जननी माना जाता है। यहां पर यदि संघर्षशील आदमी राजनीति में ईमानदारी से मेहनत कर ले जाए तो लोग उसे हाथों हाथ लिया जाता है। बिहार के लोगों का दिल इतना बड़ा है कि बाहरी नेताओं के संघर्ष को भी यहां के लोगों ने सिर माथे लिया है। जार्ज फर्नांडीज, मधु लिमये, शरद यादव जैसे नेताओं को बिहार के लोगों ने पलकों को बैठाया।
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जिस अंदाज में अपनी सुराज पार्टी बनाई है उससे उन्होंने अपने ईरादे जाहिर कर दिये हैं। पहले दो साल तक प्रशांत किशोर ने बिहार में पदयात्रा निकाली और अब दो अक्टूबर को अपनी जन सुराज पार्टी की घोषणा कर दी। प्रशांत किशोर ने एक दलित नौकरशाह मनोज भारती को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर जता दिया कि वह दलितों का आगे कर समर्पण की राजनीति करने वाले हैं। पार्टी की घोषणा करते समय उन्होंने अपनी रैली में हर विचारधारा की उपस्थिति बताई।
उन्होंने कार्यकर्ताओं को जनता के टिकट देने और जनता के ही चुनाव लड़ने की बात कही है। हालांकि इस तरह की बात आम आदमी पार्टी ने भी कही थी पर आज की तारीख में आम आदमी पार्टी में आम आदमी की कहीं जगह नहीं बची है। लेकिन प्रशांत किशोर ने बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव दोनों को ललकार कर यह साबित कर दिया कि यदि मेहनत की जाए तो कुछ भी किया जा सकता है। प्रशांत किशोर उन लोगों के लिए प्रेरणादायक हो सकते हैं जो विभिन्न दलों में हो रही गुलामी का विरोध कर अलग रास्ता बनाने की सोच रहे हैं। अपने अधिकारिक झंडे पर महात्मा गांधी और डॉ. भीम राव अंबेडकर दोनों की तस्वीर लगाने की बात कर उन्होंने समाजवाद को प्राथमिकता दी।
दरअसल प्रशांत किशोर ने साबित कर दिया कि यदि आदमी संकल्प ले ले तो उसके सामने हर लक्ष्य बौना नजर आने लगता है। प्रशांत किशोर देश की राजनीति में चुनावी रणनीतिकार के रूप में जाने जाते रहे हैं। उन्हें चुनावी मैनेजर माना जाता रहा है। उन्होंने लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार, बंगाल समेत कई प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में भी अपनी रणनीति का लोहा मनवाया है। जब नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया तो यह माना जाने लगा था कि प्रशांत किशोर सक्रिय करेंगे।