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प्रकाश पर्व गुरु ग्रंथ साहिब

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दया सिंह 

गुरु अरजन साहिब, जो उस लहर के पांचवे स्थान पर जिसकी शुरुआत गुरु नानक साहिब ने की थी, के निर्देशानुसार गुरू ग्रंथ साहिब सम्पादित किया गया जिसे दरबार साहिब (हरिमंदिर जिसकी नींव मुगल बादशाही पीर सायीं मियां मीर, वास्तुकला इसलामिक , चार दरवाज़े परंतु आने जाने का केवल पश्चिम को और नाम हरिमंदिर प्रकाश गुरु ग्रंथ का 1604 किया गया , वास्तव में यह पहला ऐसा ग्रंथ है , उस समय 5 गुरुओं 15 भक्तों और 11 भट्ट वाणियों का संगम, इसमें एका ਬਾਣੀ इक गुर इको शब्द विचार की बात है क्योंकि गुरू नानक ने पहले मुद्दों को तय किया जिस प्रकार पहले ईश्वर की खोज में ही अपना जीवन व्यर्थ में ही लगा दिया जाता था गुरू नानक ने इसे नया रास्ता पेश किया ” सत्य ही ईश्वर ” तो ईश्वर की खोज ही खत्म हो गया क्योंकि सत्य का आचरण करना होता है उसका उच्चारण नहीं , पाखंड की गुंजाईश ही नही रहती अर्थात पहला मुद्धा पाखण्ड मुक्त , यह स्वाभाविक ही था कि जाति एक सच्चाई है परंतु जातिवाद खतरा तो दूसरा मुद्धा जातिवाद मुक्त, जो जातिवाद में बँटा हो उसकी जनता अमीर गरीब की कशमकश में मेहनती ज़मात और धनी ज़मात को पैदा कर देती है जिससे शोषण इसलिए तीसरा मुद्धा शोषण मुक्त , जनता नशा का शिकार हो जाती है यदि जो समाज को ठीक करने घर छोड़ कर निकले वही नशेड़ी हो जाएं तो क्या हालात होंगे इसलिये चौथा मुद्धा नशा मुक्त , डरी हुई जनता कभी अपने मान सम्मान के लिये खड़ी नहीं हो सकती , इसलिए न डरे और न डराये अर्थात पांचवां मुद्धा भय मुक्त l इसी विचार को लेकर गुरू ग्रंथ साहिब सम्पादित हुआ केवल भट्ट वाणी जिसमें गुरुओं को जैसी उनकी मान्यता थी उसको आधार पर गुरुओं का आंकलन उन्होंने किया l यह ऐसा ग्रंथ जो बोलियों, संस्कृतियों और किसी सीमाओं में बंधा नहीं, यदि देखें तो यदि कबीर है तो नामदेव भी, यदि रामानन्द तो रविदास भी , यदि बेनी है तो धन्ना भी, फरीद भी है है तो पीपा भी , इस ग्रंथ ने जहां सीमाओं के बंधन को तोड़ा वहीँ वहीँ विचारों एकत्रित कर दिया समाज कैसा हो ?

अंत में गुरू गोबिंद सिंघ ने इसपर अंतिम मोहर गुरू तेग बहादर की वाणी को भी इसी में समाहित कर दिया , उससे पहले व्यक्ति को पंचायत में समाहित कर इसे समाज जिसे खालसा पंथ की सृजना उन्हीं मुद्दों के आधार पर साकार कर दी l यह साफ कर दिया परचा शब्द का अर्थात विचार शील गुरु ग्रंथ के अनुसार, दीदार खालसा का अर्थात आचरण खालसा आधारित और पूजा अकाल की जो सत्य है और पूजा सत्य के आचरण की l

मैं समझता हूँ जब मैं गांधी को समझ रहा था तो पाया कि गुरू नानक के उसी विचार को पूरे 400 वर्ष बाद के आचरण की बात की ” सत्य ही ईश्वर ” शायद भारत के लोग यह समझ सकेंगे l