Maharashtra Politics : अपने ही मंत्री की बगावत के सामने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने मान ली हार ?
यह मौजूदा Maharashtra Politics है अपनी ही कि सरकार के एक मंत्री के बगावत के सामने जिस तरह से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने हार मान ली है उसे देखकर उनके पिता बाला साहेब ठाकरे की याद आना स्वभाविक है। महाराष्ट्र की राजनीति में बाला साहेब ठाकरे वह नाम था जिनके दरवाजे पर एक से बढ़कर एक नेता माथा टेकने आते थे। भाजपा भी उन्हें पूरा सम्मान देती थी। उनकी राजनीतिक चालें इस स्तर की होती थी कि कोई उनके सामने टिक नहीं पाता था। उनका मुंबई पर एक छत्र राज होने का मतलब उनका सत्ता मोह से दूर रहना था। वह सरकार बनाते थे न कि सरकार का हिस्सा बनते थे। बाले साहेब के पुत्र उद्धव ठाकरे सत्ता के मोह में क्या फंसे कि बाला साहेब की खून पसीने से बनाई शिवसेना पार्टी को भी खतरे में डाल दिया। उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे के ट्वीटर प्रोफाइल से मंत्री पद हटाने का मतलब उद्धव ठाकरे ने हार मान ली है। वह इस्तीफा देने जा रहे हैं। वैसे भी शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने विधानसभा भंग होने के संकेत दे दिए हैं। एकनाथ शिंदे ने अपने साथ 40 विधायकों के होने का दावा किया है।
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वैसे भी महाराष्ट्र की राजनीति में यह Maharashtra Political Crisis है कि बागी एकनाथ शिंदे को नहीं मनाया जा सकता है। इसका सीधा मतलब है कि उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा। इसके साथ ही, शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की महाविकास अघाड़ी सरकार का आखिरी वक्त आ गया। बड़ी बात है कि उद्धव को उसी मोर्चे पर मात खानी पड़ी जिसका वो दंभ भरते थे। बागी शिवसैनिकों का गुट इसी आरोप के साथ उन्हें आधे कार्यकाल में ही सत्ता की कुर्सी से उतार दिया कि उन्होंने अपने पिता बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व की राह छोड़ दी है।
बहरहाल मुख्यमंत्री के पुत्र आदित्य ठाकरे ने अपना ट्विटर प्रोफाइल बदल लिया है। उन्होंने नए प्रोफाइल में खुद के मंत्री होने की बात हटा ली है। आदित्य ठाकरे ने अपना ट्विटर प्रोफाइल तब चेंज किया है जब थोड़ी ही देर पहले शिवसेना प्रवक्ता और पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने दावा किया है कि उनका बागी गुट के मुखिया एकनाथ सिंदे से फोन पर एक घंटा बात हुई। Maharashtra Political Crisis पर सांसद संजय राउत ने दावा किया था कि दोनों तरफ से एक-दूसरे के प्रति सम्मान और श्रद्धा और कोई रोष या विरोध की कोई बात नहीं है। हालांकि, मीडिया के सवालों पर उन्होंने यह भी कह दिया है कि ‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, सत्ता जाएगी।’
Uddhav Thackeray latest News : आज की तारीख में जिस तरह से शिवसेना का अस्तित्व खतरे में है ऐसे में शिवसेना के उदय की चर्चा करना जरूरी हो गया है। मुंबई के म्युनिस्पलिटी से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाली पार्टी प्रदेश और देश की राजनीति के लिए इतनी अहम हो जाएगी किसी ने सोचा भी न था। शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ने सांसद भी बनाए और मेयर बनाए और मुख्यमंत्री भी। बाला साहेब ने मी मुम्बईकर का नारा लगाकर मराठियों को जोड़ा और मी हिन्दू की राजनीति कर हिन्दू हृदय सम्राट कहलाये जाने लगे। हाथ में रुद्राक्ष की माला शेर की दहाड़ वाली तस्वीर और आवाज में तानाशाही। यह था बाला साहेब का परिचय। बाला साहेब में राजनीति को ख़ारिज कर सरकारों को ख़ारिज कर खुद को सरकार बनाने या मानने की ठसक थी, जिसके पीछे समाज की उन ताकतों का इस्तेमाल था जिसे पूंजी हमेशा हासिये पर धकेल देती है। पर Uddhav Thackeray latest News यह है कि उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के वजूद को ही ख़त्म ही कर दिया है।
बाला साहेब का कहना था कि अंग्रेजी का मशहूर फ्रेज है ‘either you can agree or disagree but you cannot ignore him यानी कि आप सहमत या असहमत हो सकते हैं पर नजअंदाज नहीं हो सकते हैं। जिस कुर्सी पर हम बैठते हैं वही हमारा सिंहासन हो जाता है। बाला साहेब का आपस में विरोधी बातों से बना चरित्र हिंदुस्तान की सियासत का विचित्र किरदार किसी ने नफरत का खलनायक बताया तो किसी ने नस्लवादी। एक बड़ा तबका बाला साहेब को तानाशाह और तो एक तबका घोर साम्प्रदायिक भी मानता है। अपनी मर्जी से काम करने वाले बाला साहेब को रिमोट कंट्रोलवादी भी कहा गया। न जाने क्या-क्या नहीं कहा गया। हालांकि बाला साहेब ने इन बातों की परवाह नहीं की। बाला साहेब ने वही किए जो मन ने कहा किसी की नहीं सुनी। बाला साहेब मंसूबे छिपा लेते थे फिर उनकी कड़ुवाहट सामने आ जाती थी, जिसके लिए वह जाने जाते थे।
कई बार तो वह वही करते पाए गए जिसके लिए उन्होंने विरोधियों के गिरेबां पर हाथ डाला था। बाला साहेब ने गांधी नेहरू परिवार की राजनीति का विरोध किया। सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया। शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने अपने जीवन में तीन प्रतिज्ञाएं की थी। एक प्रतिज्ञा यह भी थी कि वह आत्मकथा नहीं लिखेंगे। एक प्रतिज्ञा यह थी कि वह कभी किसी तरह का चुनाव नहीं लड़ेंगे और तीसरी प्रतिज्ञा थी की वह कभी कोई सरकारी पद नहीं हासिल करेंगे। सरकार के बाहर रहकर सरकार पर नियंत्रण रखना उनकी पहचान थी। ऐसे में प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या रहा कि वह इतने खास बन गए।
बाला साहेब के पिता केशव प्रबोधन ठाकरे समाजसेवी और क्रांतिकारी लेखक थे। कहा जाता है कि ठाकरे टाइटल एक ब्रिटिश राइटर के नाम से लिया गया था। वे ब्रह्मण विरोधी आंदोलन के पक्ष में लिखते और काम करते थे। अक्सर विरोधियों से घिरे रहते थे। बाला साहेब पर दलित विरोधी होने के आरोप लगे थे। पिता बाल ठाकरे को कार्टून का गुण सिखाते थे। पिता के डायरेक्शन में ठाकरे कार्टूनिस्ट बने थे।
हिंदुस्तान में भाषाई आधार पर राज्य बनाये गए। इसने महाराष्ट्र में मराठी और गैर मराठी का विवाद पैदा कर दिया। बाला साहेब के पिता केशव प्रबोधन ठाकरे इस आंदोलन के अगुआ बने थे। बाला साहेब भी अपने पिता के साथ आंदोलन से जुड़ गए। उस समय लोगों के बीच बाल ठाकरे की छवि युवा तुर्क की थी।
बाला साहेब ने 19 जून 1966 को छत्रपति शिवाजी के आदर्श, हर हर महादेव के नारे और जय महाराष्ट्र के बोध वाक्य के साथ शिवसेना का गठन हुआ था। बेलगाम आंदोलन चला। हिंसक विरोध हुआ। पुलिस फायरिंग में 69 लोगों की जान गईं थी। 1970 में बाला साहेब ने मुंबई में रह रहे दक्षिण भारतीयों के खिलाफ जंग छेड़ दी। उस समय बाला साहेब ठाकरे ने एक नारा दिया लुंगी हटाओ पुंगी बजाओ। इस नारे के साथ ही मराठी मनुष्य हावी होता गया। फिर माटी के लाल आंदोलन के माध्यम से उन्होंने महाराष्ट्र की नौकरियों पर मराठियों के पहले हक़ का मुद्दा उठाया था।
शिवसेना का पहला सियासी इम्तिहान ठाणे म्युनिसिपल चुनाव में हुआ। शिवसेना ने इस चुनाव में 40 में से कुल 15 सीटों पर कब्जा जमा लिया किया था। इमरजेंसी में शिवसेना पर बैन लगने के अंदेशे के चलते इमरजेंसी के पक्ष में आ गए थे।
1995 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने 288 में से 138 सीटें जीती थीं। 7 सीटों का जुगाड़ कर लिया गया था। शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने थे। कांग्रेस के भी कई विधायक साथ में आ गए थे। बाला साहेब ठाकरे के दबाव के चलते उद्धव ठाकरे 2002 में बीएमसी चुनावों के जरिए राजनीति से जुड़े और इसमें बेहतरीन प्रदर्शन के बाद पार्टी में बाला साहब ठाकरे के बाद दूसरे नंबर पर प्रभावी होते चले गए। पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करते हुए जब कमान उद्धव ठाकरे को सौंपने के संकेत मिले तो पार्टी से संजय निरूपम जैसे वरिष्ठ नेता ने किनारा कर लिया और कांग्रेस में चले गए। 2005 में नारायण राणे ने भी शिवसेना छोड़ दिया और एनसीपी में शामिल हो गए। बाला साहब ठाकरे के असली उत्तराधिकारी माने जा रहे उनके भतीजे राज ठाकरे के बढ़ते कद के चलते उद्धव का संघर्ष भी खासा चर्चित रहा।
यह Maharashtra Politics ही थी कि 2012 में बाल ठाकरे की मौत के बाद उद्धव ठाकरे पार्टी के लीडर बने और फिर 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद नाटकीय घटनाक्रम से गुजरते हुए कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी सरकार बनाई व राज्य के मुखिया बने थे।
-चरण सिंह राजपूत