डूब जाएगी आरजेडी की लुटिया? बीजेपी की बल्ले-बल्ले!
दीपक कुमार तिवारी
पटना । प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की गतिविधियां अब तेज होने वाली हैं। गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर को पार्टी की वधिवत लॉन्चिंग होगी। प्रशांत किशोर ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी किसी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी। अलग ताकत बन कर बिहार की राजनीति में अपना सिक्का जमाने की योजना पर प्रशांत काम करते रहे हैं। बिहार की यात्रा का उनका चक्र भी अब पूरा होने वाला है। उनकी योजना है कि अगले साल होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य की सभी 243 सीटों पर जन सुराज पार्टी के कैंडिडेट उतरेंगे। सांगठनिक ढांचा भी उन्होंने खड़ा कर लिया है। प्रशांत स्पष्ट कहते हैं कि लालू-नीतीश के 32 साल के शासन में बिहार के लोगों की बुनियादी समस्याओं पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। रोजगार, पलायन, शिक्षा जैसे मुद्दे आज भी जस की तस हैं।
मुसलमानों और दलितों की हालत को प्रशांत बेहद खराब मानते हैं। वे यह भी मानते हं कि सर्वाधिक आबादी वाले इन दोनों तबके के लोगों को न राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व मिला और न उनकी समस्याओं की ओर ही किसी ने खास ध्यान दिया। दोनों तबके सिर्फ लालू और नीतीश की पार्टियों के चुनावी टूल बन कर रह गए। उनकी पार्टी सबसे पहले विधानसभा चुनाव में इन दोनों तबके के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व देगी। यानी टिकट बंटवारे में इनका खास ख्याल रखा जाएगा। मुसलमानों के बारे में तो उन्होंने घोषणा भी कर दी है कि 243 में 75 सीटों पर सिर्फ मुस्लिम कैंडिडेट उतारे जाएंगे। दलित उम्मीदवारों की संख्या का जिक्र तो उन्होंने नहीं किया है, लेकिन उनके संकेत से यही लगता है कि अगर 17 प्रतिशत मुसलमानों को वे 75 सीटें दे रहे हैं तो 33 प्रतिशत आबादी वाले दलित समाज से मुसलमानों से दोगुने उम्मीदवार हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो प्रशांत किशोर का राजनीति में यह नायाब प्रयोग होगा।
प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने अपनी जिस रणनीति का संकेत दिया है और जमीनी स्तर पर जिस तरह संगठन का ढांचा खड़ा किया है, उससे किसे नुकसान पहुंचेगा ? यह सवाल इसलिए कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को सबसे अधिक भरोसा अपने मुस्लिम-यादव समीकरण के वोटों पर रहा है। दोनों की सम्मिलित आबादी बिहार में करीब 32 प्रतिशत होती है। वर्षों पहले लालू प्रसाद यादव ने बिहार में मुस्लिम और यादव को मिला कर M-Y समीकरण बनाया था। इसका लाभ भी आरजेडी को मिलता रहा है। बाद में मुस्लिम वोट में नीतीश कुमार ने सेंधमारी कर दी। मुस्लिम वोटर लालू और नीतीश कुमार की पार्टी के साथ बंट गए थे। हालांकि आरजेडी ने मुसलमानों को राजनीति में उस हिसाब से कभी प्रतिनिधित्व नहीं दिया, जितनी उनकी आबादी है। अलबत्ता भाजपा का भय दिखा कर आरजेडी और भाजपा विरोधी पार्टियां मुसलमानों का वोट लेती रही हैं।
हाल ही संपन्न लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने किसी मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया। जेडीयू ने भी मुसलमानों को तरजीह नहीं दी। जेडीयू के 16 उम्मीदवारों में सिर्फ मुजाहिद अली को किशनगंज से जेडीयू ने मौका दिया। आरजेडी ने अपने हिस्से के 23 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। इनमें सिर्फ दो मुसलमान उम्मीदवारों को मौका मिला। उचित प्रतिनिधित्व को लेकर मुसलमानों का आरजेडी के प्रति गुस्सा ऐसा रहा कि अशफाक करीम ने चुनाव से पहले आरजेडी को बाय बोल दिया। वे जेडीयू में शामिल हो गए। हालांकि जेडीयू ने भी उन्हें इस बार कहीं से मौका नहीं दिया। अररिया से आरजेडी के पूर्व सांसद सरफराज आलम टिकट से वंचित होने पर मंच पर ही फूट-फूट कर रोए थे। प्रशांत किशोर ने मुसलमानों के इस दर्द को महसूस किया है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में वे मुसलमानों के लिए 75 टिकट की बात कह रहे हैं।
पीके की रणनीति अगर कारगर रहती है तो इससे सबसे अधिक नुकसान आरजेडी को हो सकता है। उसका M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण दरका तो तेजस्वी का नवसृजित BAAP (बहुजन, अगड़े, आधी आबादी, पूअर) समीकरण किसी काम का नहीं रह जाएगा। तेजस्वी यादव इसी समीकरण के बूते अगली बार बिहार का सीएम बनने का सपना देख रहे हैं। नीतीश कुमार का साथ तो अब मुस्लिम छोड़ ही चुके हैं। यह तो 2020 के विधानसभा चुनाव में ही स्पष्ट हो गया था, जब उनका कोई मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव जीत नहीं पाया। कांग्रेस पर मुसलमानों को भरोसा है, लेकिन बिहार में उसकी स्थिति सबको मालूम है।
आरजेडी प्रशांत किशोर की गतिविधियों को लेकर पहले से ही चिंतित है। हाल ही आरजेडी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने पार्टी पदाधिकारियों को एक चिट्ठी जारी कर पार्टी की चिंता का इजहार किया था। उन्होंने चिट्ठी में लिखा था कि आरजेडी के कार्यकर्ता प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से जुड़ रहे हैं। उनकी सभाओं-बैठकों में शामिल हो रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ पार्टी कार्रवाई करेगी। जगदानंद सिंह की इस धमकी से साफ है कि तेजस्वी यादव की मंशा पर प्रशांत किशोर पानी फैरने लगे हैं। अब तो मुसलमानों को विधानसभा चुनाव में 75 सीटें देने की ऐसी गुगली पीके ने मारी है कि मुसलमानों से आस लगाने वाली सभी पार्टियों के होश उड़ गए हैं।
पीके अगर मुसलमानों पर फोकस करते हैं और सच में मुसलमान उनकी इस रणनीति पर भरोसा करते हैं तो इसका सबसे अधिक फायदा भाजपा को होगा। इसलिए कि उसके कैडर वोटर तो यथावत रहेंगे। एनडीए के साथी दलों के प्रभाव वाले वोट भी भाजपा को मिल सकते हैं। मुस्लिम वोटों में बंटवारा हो जाएगा। असदुद्दीन ओवैसी पहले से ही मुस्लिम मतों की दावेदारी के सथ बिहार में दस्तक दे चुके हैं। 2020 में उनके पांच उम्मीदवार जीत भी गए थे। हालांकि बाद में उनमें 4 आरजेडी का हिस्सा बन गए।