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खेलों में राजनीति खेल और खिलाड़ी दोनों के लिए चिंताजनक 

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खेल संघों पर राजनेता नहीं, खेल प्रतिभाओं को विराजमान करना चाहिए। इन संस्थाओं में पदाधिकारियों का कार्यकाल भी निश्चित होना चाहिए एवं एक टर्म से ज्यादा किसी को भी पद-भार नहीं दिया जाना चाहिए। सरकार की बंदिशों के बावजूद अधिकांश खेल संघों पर राजनेताओं का कब्जा है। इनमें बड़ा भ्रष्टाचार व्याप्त है, जो वास्तविक खेल प्रतिभाओं को आगे नहीं आने देती। यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न फेडरेशनों के अंदर कारगर तंत्र बनाने पर भी गंभीरता से विचार होना चाहिए। सरकार का यह कर्तव्य है कि खिलाड़ियों को सुरक्षित व प्रगतिपूर्ण वातावरण प्रदान किया जाए। इससे खिलाड़ी अपनी क्षमताओं का पूर्ण विकास कर सकेंगे। इसलिए खेल को सियासत के कुचक्र में न फंसाकर राष्ट्र हित में योगदान देना चाहिए। विवादित मुद्दे का राष्ट्र हित और खिलाड़ियों के हक में समाधान किया जाना चाहिए। हमारा प्रयास खिलाड़ियों के लिए अच्छा वातावरण मुहैया करवाना चाहिए।

 

 

डॉ. सत्यवान सौरभ

 

कुश्ती को लेकर मचे बवाल के बीच खिलाड़ी भी सियासी रंग में रंगे नजर आने लगे हैं। यह खेल और खिलाड़ी दोनों के भविष्य के लिए चिंताजनक है। खेलों में सियासत ठीक नहीं है। खेलों में पक्ष-विपक्ष की राजनीति खेल और खिलाड़ी दोनों के लिए चिंताजनक है। खेलों में राजनीति गलत है। खेल साफ, स्वच्छ और पारदर्शी होने चाहिए।वर्तमान कुश्ती संघ और सियासती विवाद से दुनिया भर में भारत की बदनामी हो रही है। पिछले लगभग एक साल के भारतीय कुश्ती को सियासत ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। कुश्ती संघ के अध्यक्ष पर महिला पहलवानों के आरोप लगने के बाद से ही सरकार को उन्हें हटा देना चाहिए था, किंतु सियासत के चलते ऐसा नही हुआ। यह खेलों पर एक बदनुमा दाग, शर्म का विषय और त्रासदी है। देश के जो खिलाड़ी विदेशी सरजमीं पर तिरंगे का मान बढ़ाते आए उन्हें अपने अधिकारों के लिए जंतर- मंतर पर धरना देना पड़ रहा है। क्या ऐसे देश खेलों में आगे बढ़ेगा? देश को मेडल दिलाने वाले इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं।

 

पहलवान कुश्ती महासंघ से दो-दो हाथ करने उतरे हैं। आखिर इस खेल और सियासी लड़ाई का अंजाम क्या होगा? किसकी सरकार है या किसकी थी, ये मुद्दा नहीं है। सवाल ये है कि क्या महिला खिलाडियों के साथ यौन शोषण होता है? या फिर ये सियासती मामला है। मुद्दा महिला खिलाड़ियों की सम्मान एवं मानसिक, शारीरिक सुरक्षा का है। अगर कुश्ती में बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हुई तो महिला खिलाड़ियों में हर खेल के प्रति रुझान खत्म हो जायेगा। उनका मनोबल गिर जायेगा। महिलाओं की खेलों में भागीदारी कम हो जायेगी। देश की प्रतिष्ठा और महिला खिलाड़ियों की अस्मिता का सवाल है। क्या राजनीति के चलते दम तोड जाती है प्रतिभाएं?  खेलों में राजनीति के सक्रिय होने से प्रतिभावान खिलाड़ियों को दबाया जाता है। खिलाड़ी हमेशा खेल अधिकारियों के दवाब में रहते है। खेलों में मेहनत करने वालों की प्रतिभाएं दबकर रह जाती हैं और आवाज़ उठाने पर ख़त्म कर दिया जाता है। इसका दुष्परिणाम  यह है कि आज अभिभावक कुश्ती या अन्य खेल में अपनी बेटी का भेजते कई बार सोचेंगे।

 

देश में अभिभाववक पहले ही अपनी बेटी की सुरक्षा और सम्मान को लेकर चिंतित रहते हैं, इस प्रकरण ने उनकी चिंता और बढ़ायी है। अब वे बेटी को खेल विशेषकर कुश्ती में भेजतेहज़ार बार सोंचेंगे। हाल ही में सरकार ने नए चुनाव का भले ही रद्द कर दिया हो किंतु लंबे समय से कुश्ती संघ में दबदबा कायम रखें राजनीतिज्ञ चुप बैठने वाले नहीं हैं। वे सरकार के इस निर्णय के विरूद्ध कोर्ट जांएगे। इनका प्रयास होगा कि कुश्ती संघ की सियासत उनके हाथ से न जा पाए। भले ही सरकार ने नए चुनाव को रद्द करके यह संदेश देने का प्रयास किया है कि कुश्ती संघ को नियमों का पालन करना होगा। लेकिन खेल संघ से राजनैतिक लोगों को दूर रखने के लिए सरकार को काम करना चाहिए। खिलाड़ी भी यदि राजनीति में आ जाए तो उसे भी खेल संघ से बाहर ही रखा जाना चाहिए। सुप्रीम कार्ट भी खेल संघों में राजनैतिक दखल को लेकर चिंता जता चुका है और इसे कटाई जायज़ नहीं ठहराता। खेलों में सियासत का सकारात्मक प्रभाव समाज में एकात्मकता और सामाजिक समर्थन की भावना  लेकर आता है और खिलाड़ियों को एक सकारात्मक पहचान बनाए रखने में मदद करता है वही इस बात की अनदेखी भी की नहीं की जा सकती कि कई बार अमुक  खिलाड़ी को मनचाहे स्थान पर पहुंचाने के लिए सियासी दबाव और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है।

 

सियासी हस्तक्षेप नेताओं के बीच जातिवाद धर्मनिरपेक्षता राजनीतिक असंतुलन लता है और खेलों को प्रभावित करता है। वर्तमान समय में सियासी दलों ने कुश्ती को अपने निजी लाभ के लिए उपयोग करने का दुष्प्रयास किया है जिससे खिलाड़ियों और खेल समर्थको को काफी बड़ा नुकसान हुआ है। सियासत का प्रयोग खेल और खिलाड़ियों के विकास में किया जाना चाहिए। निजी लाभ और निजी प्रकरणों का समायोजन खेल भावना से दूर होना चाहिए। ताकि वह खेल देश को गौरवान्वित करें और करता रहे। खेलों को सियासी बनाने वाले मुद्दे आमतौर से विवादास्पद हो रहे हैं। सियासत की दखलंदाजी से खेल में समझौते,रैगिंग जैसे संभावनाएं बड़ी है जिसका खामियाजा खिलाड़ियों को भुगतना पड़ता है। अब नौबत यहां तक आ गई है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को मेडल फेंकने तक का काम करना पड़ रहा है। खेल संघों में खिलाडी होने चाहिए। वे खेल और खिलाड़ी को ज्यादा समझते हैं। राजनेता नहीं। सियासत के चलते बेपटरी हुए कुश्ती संघ को पटरी पर लाने उसमें खिलाडियों और पहलवानों का विश्वास जमाने को बहुत कुछ करना होगा।

 

संघ में खिलाड़ी लाने होंगे। शुभ संकेत होगा कि कुश्ती संघ की गरिमा बचाने और बेटी की सुरक्षा की चिंता करते परिवारजनों को आश्वास्त करने के लिए  कुश्ती संघ का अध्यक्ष किसी महिला खिलाड़ी को बनाए। ऐसे संघों पर राजनेता नहीं, खेल प्रतिभाओं को विराजमान करना चाहिए। इन संस्थाओं में पदाधिकारियों का कार्यकाल भी निश्चित होना चाहिए एवं एक टर्म से ज्यादा किसी को भी पद-भार नहीं दिया जाना चाहिए। सरकार की बंदिशों के बावजूद अधिकांश खेल संघों पर राजनेताओं का कब्जा है। इनमें बड़ा भ्रष्टाचार व्याप्त है, जो वास्तविक खेल प्रतिभाओं को आगे नहीं आने देती। यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न फेडरेशनों के अंदर कारगर तंत्र बनाने पर भी गंभीरता से विचार होना चाहिए। सरकार का यह कर्तव्य है कि खिलाड़ियों को सुरक्षित व प्रगतिपूर्ण वातावरण प्रदान किया जाए। इससे खिलाड़ी अपनी क्षमताओं का पूर्ण विकास कर सकेंगे। इसलिए खेल को सियासत के कुचक्र में न फंसाकर राष्ट्र हित में योगदान देना चाहिए। विवादित मुद्दे का राष्ट्र हित और खिलाड़ियों के हक में समाधान किया जाना चाहिए। हमारा प्रयास खिलाड़ियों के लिए अच्छा वातावरण मुहैया करवाना चाहिए।

 

(लेखक कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट हैं)