Operation Smiling Buddha:
Pokhran Nuclear Test: साल 1974, बुद्ध पूर्णिमा का दिन था, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक फोन कॉल आया, कॉल उठाकर इंदिरा गांधी ने कहा, “ The Buddha has finally Smiled”। जिसका मतलब था कि भारत ने पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया। बाद में 1998 में “भारत में बुध्द फिर से मुस्कुराये” यानी कई और भूमिगत परमाणु परीक्षण किये गए और भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया।
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भारत पहला ऐसा देश था जिसने United Nations Of Security Council का हिस्सा ना होते हुए भी परमाणु परीक्षण करने का साहस किया और सफल भी रहा। इस परीक्षण का विरोध कई परमाणु सम्पन्न देश ने किया, हालांकि उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है।
आइये जानते है कि कैसे हुआ था ये पहला परिक्षण।
ये सारे परीक्षण बहुत ही खुफिया तरीके से किए गए थे, क्योंकि परमाणु परीक्षण को लेकर पश्चिम के देशों की नज़र भारत पर पहले से थी। जिसकी वजह से किसी प्लान को लेकर लिखित में कुछ नही दिया गया। प्रोजेक्ट की तैयारी में दो टीमें लगी हुई थी। एक टीम को लीड कर रहे थे राजा रमन्ना जो की बार डायरेक्टर थे और दूसरी टीम थी डीआरडीओ की जिसको लीड कर रहे थे डीआरडीओ बी.डी. नाग चौधरी।
इस परीक्षण के बारे में लगभग 75 वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की टीम और उनके अलावा सिर्फ तीन लोगों को पता था, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनके मुख्य सचिव डी.पी. धर और उनके पूर्व सचिव पी.एन. हकसर। ऐसा माना जाता है कि रक्षा मंत्री और गृह मंत्री तक को इसकी भनक तक नहीं थी। और इसी के साथ भारत 18 मई, 1974 को दुनिया का छठा परमाणु पावर बना।
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“भारत में बुध्द फिर से मुस्कुराये”
पहले परीक्षण के बाद भारत ने एक बार फिर परमाणु परीक्षण का फैसला लिया जिसका नाम ऑपरेशन शक्ति रखा गया। अब आपको बताते है कि क्या था ये पूरा मामला?
भारत को परमाणु संपन्न बनाने कि तैयार शायद 20 मार्च 1998 को ही शुरु हो गई थी । ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके एक दिन पहले यानी 19 मार्च को प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई नें DAE के अध्यक्ष आर चिदंबरम से मुलाकात की थी। और एक रिपोर्ट के मुताबिक ये मुलाकात केवल शिष्टाचारवश नहीं की गई थी।
भारत ने CTBT नाम के एक समझौते पर हस्ताक्षर कर रखा था जिसके मुताबिक कोई भी देश वातावरण में परमाणु परीक्षण नही कर सकता। वातावरण में आसमान,पानी और समुद्र शामिल था, इसलिए भारत ने इस परीक्षण को जमीन के नीचे करने का फैसला लिया।
भारत में 11 और 13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में पाँच परमाणु विस्फोट होने से सारे विश्व में तहलका मच गया था। परीक्षण के इन धमाकों से सारा संसार चकित रह गया, अब भारत भी परमाणु शक्तियों में संपन्न था। परीक्षण स्थल के आस-पास 6-7 किमी तक की भूमि हिल गई और कई मकानों में भी दरारें पड़ गई। लेकिन राष्ट्र के इस महान उपलब्धि के सामने लोगों को अपने घरों के टूटने से इतनी चिंता नहीं हुई जितनी प्रसन्नता इस महान सफलता से हुई। इन परमाणु परीक्षण के बाद जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित प्रमुख देशों द्वारा भारत के खिलाफ विभिन्न प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए।
इस परीक्षण में भारत को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा।
11 मई को एक छोटे से बंकर में बने एक कंट्रोल रूम में सैनिक वर्दी में बैठे तीन लोग चिंता में बैठे थे जिनके वर्दी पर नाम लिखे थे कैप्टन आदि मर्जबान, मेजर जनरल नटराज और मेजर जनरल प्रीथ्वीराज। लेकिन आपको बता दें कि भारतीय सेना में इन नामों के कोई सैनिक थे ही नहीं, क्योंकि ये Code Names थे। कैप्टन आदि मर्जबान थे पोखरण रेंज के विज्ञान अधिकारी काकोडकर, मेजर जनरल नटराज थे DAE के अध्यक्ष आर चिदंबरम और मेजर जनरल पृथ्वीराज थे डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। उन्होंने ऐसा अपने पोखरण रेंज में रोज हो रहे दौरे की खबर लीक न होने के लिए किया था।
अमेरिकी सैटेलाइट्स को चकमा देकर रात के अंधेरे में Plutonium को पोखरण पहुंचाया गया जहां पर विस्फोटक डेटोनेटर और ट्रिगर पहले से मौजूद थे और फिर शुरू किया गया Assembling का काम।
11 मई यानी परीक्षण के दिन एक नई चुनौती सामने आ गई। परीक्षण से कुछ घंटे पहले अचानक हवाएं तेज चलने लगी और रेंज के मौसम विज्ञान अधिकारी ने कहा कि जब तक हवा रुक नही जाती तब तक मिशन रोकना पड़ेगा क्योंकि अगर ब्लास्ट के बाद रेडीएशन फैला तो हवाओं की वजह से वो आस पास के गांव में भी फैलेगा जिससे मौत भी हो सकती है। लंबे इंतजार के बाद जब दोपहर 3 बजे के करीब हवा थमी तो कुछ देर इंतजार कर आखिरकार 4 बजे के करीब तीनों ब्लास्ट कर दिए गए और इसी के साथ सफलतापूर्वक पूरा हुआ भारत का परमाणु परिक्षण।