चरण सिंह
राजनीतिक दल ये जो फ्री की योजनाएं ला रहे हैं ये सब जनता के टैक्स से चुनाव जीतने के लिए अपनाए जा रहे हथकंडे हैं। जनता भी लालची है नहीं तो इन नेताओं से पूछे कि ये जो फ्री में बांट रहे हो यह क्या तुम्हारे पिताजी कमा कर रख गए हैं। निश्चित रूप से पूंजीपतियों के कर्जे माफ़ किये जाते हैं पर उसका जवाब यह नहीं कि चुनाव जीतने के लिए फ्री की योजना ले आओ। पूंजीपतियों के जो कर्ज माफ़ होते हैं उनका विरोध किया जाए।
दरअसल ये फ्री की योजनाएं आम आदमी पार्टी ने शुरू की हैं। उसके बाद सभी पार्टियां फ्री की योजनाएं लागू करने लगी। इस बार तो अरविन्द कुछ ज्यादा ही आगे निकल गए हैं। ऑटो वालों की बेटी की शादी में उन्होंने एक लाख रुपए और उनके बच्चों की पढ़ाई मुफ्त में कराने की घोषणा की है। दिल्ली की महिलाओं को डीटीसी में तो फ्री सफर की योजना के बाद अब उनके खाते में एक हजार रुपए प्रति माह भेजने की बात की है। केजरीवाल ने साथ में ही यह और घोषणा कर दी कि चुनाव के बाद ये 2100 रुपए हो जाएंगे। मतलब चुनाव जिताने का चुग्गा केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के सामने डाल दिया है। इससे पहले दिल्ली में 200 यूनिट बिजली फ्री राशन पानी फ्री। क्या इन नेताओं ने किसी बेटी की शादी में दो रुपए का कन्यादान अपनी जेब से भी किया है ? जवाब में न ही आएगा। इन्हें तो सब कुछ जनता के पैसे से ही करना है।
जिस तरह से केजरीवाल ने फ्री की योजनाएं शुरू की हैं उससे दूसरे दल भी चुनाव जीतने के लिए फ्री की योजनाओं पर फोकस करने लगे हैं। केंद्र सरकार की फ्री राशन योजना, मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना के बाद महाराष्ट्र की लाडली बहन योजना, झारखंड में हेमंत सोरेन की मैया सम्मान योजना चुनाव जीतने के लिए ही लाई गई।
विपक्ष यदि आज चौड़ा हुआ घूम रहा है। कांग्रेस ने 100 और सपा ने 37 सीटें जीती हैं तो वह कांग्रेस का लोकलुभावना घोषणा पत्र बनाने का नतीजा था। कांग्रेस ने जो महिलाओं को साल में एक लाख रुपए मतलब साढ़े आठ हजार प्रति माह, युवाओं की अप्रैंटिस के लिए एक लाख रुपए, किसानों का कर्जा माफ़, एमएसपी गारंटी कानून का वादा किया था वह कांग्रेस के घोषणा पत्र का ही असर था कि विपक्ष की ठीकठाक सीटें आ गई। नहीं तो विपक्षी दलों ने कहीं से विपक्ष की भूमिका नहीं निभाई। ऐसे ही फ्री की योजनाओं पर चुनाव जीते जाते रहे तो फिर सरकारें काम क्यों करेंगी ?
चुनाव में घोषणा करते हुए दल ऐसे बोलते हैं जैसे कि अपने घर से जनता को दे रहे हों। क्या यह सब जनता की है नहीं है ? देश में जितने भी प्रदेश हैं सभी कर्जे में डूबे हुए हैं। केंद्र सरकार खुद भी कर्जे में है पर चुनाव जीतने के लिए फ्री की योजनाएं जरूर लाएंगे। यदि ऐसे ही फ्री की योजनाएं दल लाते रहे तो फिर लोग काम क्यों करेंगे। क्या फ्री की योजनाएं लोगों को निठल्ला नहीं बना रही हैं।