उत्तर भारत में पपीते के पौधों को सफलतापूर्वक स्थापित करने के लिए योजना, तैयारी एवं निष्पादन की जरूरत : वैज्ञानिक

अप्रैल माह पपीता लगाने के लिए सर्वोत्तम 
उत्तर भारत में पपीता की रोपाई में बरती जानेवाली सावधानियाँ और सर्वोत्तम उपाय 

 

 

सुभाष चंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा। पपीता का वैज्ञानिक नाम कैरिका पपाया है। यह एक अल्पकालिक वनस्पति है, जो पृथ्वी के लगभग हर हिस्से में उगाया जाता है। ब्राजील, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और मैक्सिको के बाद भारत पपीता का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है। पपीते में मुख्यतः तीन प्रकार के पौधे होते हैं, नर पौधे केवल पराग का उत्पादन करते हैं, इस पर कभी फल नहीं लगता है। मादा पौधे एवं उभयलिंगी ( हेर्मैफ्रोडाइट) पौधे जिसमे फल पैदा होते है।

पपीता में परागण हवा एवं कीटों द्वारा होता है। उभयलिंगी ( हेर्मैफ्रोडाइट) पौधों में स्व-परागण होता हैं। लगभग सभी वाणिज्यिक पपीता की किस्मों में केवल उभयलिंगी ( हेर्मैफ्रोडाइट) पौधों होते हैं। भारत में प्रमुखता से उगाई जाने वाली किस्म रेड लेडी भी उभयलिंगी ( हेर्मैफ्रोडाइट) किस्म है । कुछ किसान सोलो टाइप पपीते की भी खेती कर रहे हैं, जिसमे नर एवं मादा पुष्प अलग अलग पौधों पर होते है ।

पपीता उगाने और उपज के लिए आदर्श तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेट से लेकर 36 डिग्री सेंटीग्रेट का तापक्रम सर्वोत्तम होता है । पपीता की फसल गर्म मौसम में नमी और ठंडे मौसम की स्थिति में शुष्क प्रकृति के साथ मिट्टी में अच्छा फूल आता है। अत्यधिक कम तापमान के संपर्क में पत्तियों को नुकसान हो सकता है और यहां तक कि पौधे भी मर सकते है।

बिहार सहित उत्तर भारत में पपीते की खेती के लिए अप्रैल का महीना सर्वोत्तम है। पपीता के रोपाई के दौरान, ध्यान देने की विशेष आवश्यकता होती है। नर्सरी से मुख्य खेत में पपीते के पौधों की रोपाई के लिए स्वस्थ विकास और अधिकतम उपज सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम अभ्यासों का पालन करने की आवश्यकता होती है। उत्तर भारत में पपीते की रोपाई के समय बरती जाने वाली सावधानियों और सर्वोत्तम उपाय पर किसानों को ध्यान देने की जरूरत है।

 

स्थान का चयन

 

दोमट मिट्टी और अच्छी धूप के संपर्क में आने वाला एक अच्छी तरह से सूखा हुआ क्षेत्र चुनें। सुनिश्चित करें कि जड़ सड़न को रोकने के लिए साइट जलभराव से मुक्त हो। यदि पपीता के खेत में पानी 24 घंटे से ज्यादा लग गया तो पपीता को बचा पाना बहुत मुश्किल है। तेज हवाओं से सुरक्षित स्थान चुनें, क्योंकि पपीते के पौधों की जड़ें उथली होती हैं और उन्हें आसानी से नुकसान पहुँच सकता है। पपीता लगाने से एक महीना पहले ही खेत के चारों तरफ बॉर्डर क्रॉप जैसे बहुवर्षीय ढैचा या सुबाबुल लगाया जा सकता है।

 

मिट्टी की तैयारी

 

पोषक तत्वों के स्तर और पीएच को निर्धारित करने के लिए मिट्टी का परीक्षण करें। मिट्टी की उर्वरता और संरचना को बेहतर बनाने के लिए खाद या अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ डालें। मिट्टी को कम से कम 12 इंच की गहराई तक ढीला करके उचित मिट्टी का वातन सुनिश्चित करें। खेत में प्रचुरता से कार्बनिक पदार्थ होने से पपीता में विषाणुजनित रोग कम लगता है ।

रोपण के लिए भूमि की तैयारी के लिए आवश्यक है की भूमि को बार-बार जुताई और गुड़ाई के माध्यम से अच्छी तरह से तैयार किया जाय और अंत में 1.0 फीट x 1.0 फीट x 1.0 फीट के गड्ढे खोदे जाते हैं। खोदे हुए गड्ढों को कम से कम 15 दिनों तक धूप में सूखने दें, इसके बाद मुख्य क्षेत्र में पौधे रोपे जा सकते हैं। रोपण से कम से कम 15 दिन पहले 5 ग्राम कार्बोफ्यूरान एवं 25-30 ग्राम डीएपी के साथ खुदाई की गई मिट्टी के साथ खोदे गए गड्ढे का आधा हिस्सा भरा जा सकता है।

 

पौध तैयार करना

 

प्रतिष्ठित नर्सरियों से स्वस्थ, रोग-मुक्त पौध चुनें। पौध को तब रोपें जब उसमें 3-4 स्वस्थ पत्ते आ जाएं और वह 6-8 इंच लंबा हो जाए। रोपाई के झटके को कम करने के लिए रोपाई से एक दिन पहले पौध को अच्छी तरह से पानी दें।

 

रोपाई प्रक्रिया

 

नर्सरी में तैयार पौधों को मिट्टी एवं जड़ के साथ , कवर को हटा दिया जाता है और आधा मिट्टी से भरे गड्ढे के केंद्र में रखा जाता है, और आधी बची मिट्टी से ढंक दिया जाता है। रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई देनी चाहिए।यदि डीएपी 15 दिन पहले खोदे गए गड्ढों में नही डाल पाए हो तो रोपाई के समय रासायनिक खाद नहीं डालना चाहिए , क्योकि इससे जड़ो को नुकसान हो सकता है। पौधे से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति के बीच 1.8 x 1.8 मीटर की दूरी रखने से बेहतर पैदावार प्राप्त होता है । पौधों पर तनाव कम करने के लिए सुबह जल्दी या दोपहर बाद शाम के समय रोपाई करें।

 

पानी देना और सिंचाई

 

नए रोपे गए पौधों को मुरझाने से बचाने के लिए पर्याप्त पानी दें। अधिक पानी देने से बचें, क्योंकि इससे जड़ सड़ सकती है और अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं। पानी को सीधे जड़ क्षेत्र में पहुँचाने और पानी की बर्बादी को कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें।अप्रैल में लगाए गए पपीता के लिए पानी की उपलब्धता अनिवार्य है।

 

मल्चिंग

 

मिट्टी की नमी को संरक्षित करने और खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए पौधों के आधार के चारों ओर पुआल या सूखे पत्तों जैसे जैविक मल्च की एक परत लगाएँ।मल्चिंग मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करने और कटाव को रोकने में भी मदद करती है।

 

उर्वरक

 

पपीता की अच्छी खेती के लिए लगातार अंतराल पर पर्याप्त मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है। उचित फलन के लिए संतुलित कार्बन: नाइट्रोजन अनुपात होना भी आवश्यक है । अच्छी तरह से सड़ी 25 -30 किलोग्राम गोबर की खाद जिसमे बायोफर्टिलाइज़र मिश्रण मिला हो , फसल की वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते है। पपीता की खेती में , प्रति वर्ष 1-2 किग्रा प्रति पौधा नीम केक/जैवउर्वरक/ वेर्मीकम्पोस्ट में से कोई एक या तीनों का मिश्रण तीन से चार बार जब रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते है ,उसी समय देने से अच्छी उपज प्राप्त होता है । अकार्बनिक उर्वरक यथा नाइट्रोजन-200-250 ग्राम, फास्फोरस-200-250 ग्राम, पोटेशियम 200-250 ग्राम प्रति वर्ष प्रति पौधा, दो दो महीने के अंतर पर , चार बार या तीन तीन महीने के अंतर पर तीन बार उर्वरकों के प्रयोग से अधिकतम लाभ मिलता है ।

 

कीट और रोग प्रबंधन

 

एफिड्स, व्हाइटफ़्लाइज़ और फ्रूट फ़्लाइज़ जैसे कीटों के संकेतों के लिए पौधों की नियमित रूप से निगरानी करें। कीटों के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक शिकारियों या जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें। फ़सल चक्र का उपयोग करें।बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए किसी भी संक्रमित पौधे के मलबे को हटा दें। बिहार में पपीता की सफल खेती के लिए आवश्यक है की पपीता लगने से पूर्व डॉ राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित तकनीक को अवश्य ध्यान में रक्खे।

अखिल भारतीय फल परियोजना एवं डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ने तकनीक विकसित किया है, उसके अनुसार खड़ी पपीता की फसल में विभिन्न विषाणुजनित बीमारियों को प्रबंधित करने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए I पपीता को पपाया रिंग स्पॉट विषाणु रोग से बचाने के लिए आवश्यक है कि 2% नीम के तेल जिसमे 0.5 मिली प्रति लीटर स्टीकर मिला कर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवें महीने तक करना चाहिए I

उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है की यूरिया @ 10 ग्राम + जिंक सल्फेट 04 ग्राम + बोरान 04 ग्राम /लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव पहले महीने से आठवे महीने तक छिड़काव करना चाहिए I बिहार में पपीता की सबसे घातक बीमारी जड़ गलन के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की हेक्साकोनाजोल @ 2 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दिया जाय,यह कार्य पहले महीने से लेकर आठवें महीने तक मिट्टी को उपरोक्त घोल से भिगाते रहना चाहिए । एक बड़े पौधे को भीगने में 5-6 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होती है।

 

सहायता और छंटाई

 

पपीते के पौधों को सहारा देने और तेज़ हवाओं में गिरने से बचाने के लिए उन्हें सहारा दें। पौधों के चारों ओर हवा के संचार को बेहतर बनाने और सीधी वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए किसी भी साइड शूट और सकर को हटा दें। खुली छतरी बनाए रखने और फलों के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए भीड़भाड़ वाली शाखाओं को काटें।

 

अत्यधिक धूप या ठढ़क से पौधों को बचाए

 

धूप से झुलसने और गर्मी के तनाव को रोकने के लिए तीव्र गर्मी की अवधि के दौरान छाया जाल लगाएं या अस्थायी छाया प्रदान करें। अचानक तापमान गिरने या पाले की घटनाओं के दौरान पौधों को प्लास्टिक शीट या रो कवर से ढक दें।

 

निगरानी और रखरखाव

 

पोषक तत्वों की कमी, कीटों या बीमारियों के संकेतों के लिए नियमित रूप से पौधों का निरीक्षण करें।

पौधे के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर आवश्यकतानुसार पानी, खाद और कीट नियंत्रण प्रथाओं को समायोजित करें।संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए किसी भी क्षतिग्रस्त या रोगग्रस्त पत्तियों या फलों को तुरंत हटा दें।

 

प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंह

विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डा एसके सिंह के अनुसार निष्कर्षतः उत्तर भारत में पपीते के पौधों को सफलतापूर्वक स्थापित करने और इष्टतम विकास सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना, तैयारी और निष्पादन की आवश्यकता होती है।

इस लेख में उल्लिखित सावधानियों और सर्वोत्तम उपायों का पालन करके, किसान प्रत्यारोपण के झटके को कम कर सकते हैं, स्वस्थ जड़ विकास को बढ़ावा दे सकते हैं और अंततः गुणवत्ता वाले पपीते के फलों की अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं। चुनौतियों पर काबू पाने और क्षेत्र में पपीते की खेती की क्षमता को अधिकतम करने के लिए निरंतर निगरानी और समय पर हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है।

  • Related Posts

    पहलगाम में पर्यटकों को हत्या करने के विरोध में विहिप बजरंग दल ने किया जोरदार प्रदर्शन

    पश्चिम चंपारण/बेतिया। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के विरुद्ध विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन कर जिहादी आतंकवाद और पाकिस्तान का पुतला दहन किया।…

    राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा योजनाओं का उद्घाटन

    -मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहे शामिल -बिहार के विकास पर केंद्र और राज्य सरकार के साझा प्रयासों का हुआ प्रदर्शन पटना/मधुबनी। दीपक कुमार तिवारी। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    एमसीडी पर भी BJP का कब्ज़ा, राजा इकबाल सिंह बने मेयर 

    • By TN15
    • April 25, 2025
    • 7 views
    एमसीडी पर भी BJP का कब्ज़ा, राजा इकबाल सिंह बने मेयर 

    पहलगाम में पर्यटकों को हत्या करने के विरोध में विहिप बजरंग दल ने किया जोरदार प्रदर्शन

    • By TN15
    • April 25, 2025
    • 6 views
    पहलगाम में पर्यटकों को हत्या करने के विरोध में विहिप बजरंग दल ने किया जोरदार प्रदर्शन

    अब तो पाकिस्तान को घुटनों पर लाना होगा !

    • By TN15
    • April 25, 2025
    • 9 views
    अब तो पाकिस्तान को घुटनों पर लाना होगा !

    हक, अधिकार व रोजगार के लिए श्रमिकों ने बीएचईएल कम्पनी पर तीसरे दिन भी सीटू के बैनर तले किया धरना प्रदर्शन

    • By TN15
    • April 25, 2025
    • 7 views
    हक, अधिकार व रोजगार के लिए श्रमिकों ने बीएचईएल कम्पनी पर तीसरे दिन भी सीटू के बैनर तले किया धरना प्रदर्शन

    “मुस्कान का दान”

    • By TN15
    • April 25, 2025
    • 8 views
    “मुस्कान का दान”

    राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा योजनाओं का उद्घाटन

    • By TN15
    • April 25, 2025
    • 10 views
    राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा योजनाओं का उद्घाटन