Popular Front of India : लंबे समय से विवादों में रही संस्था PFI पर 22 सितम्बर की सुबह देश की दो बड़ी एजेंसियों NIA और ED की ओर से देश के अलग अलग राज्यों में स्थित ठिकानों पर छापेमारी की है।
समाचार एंजेसियों की तरफ से लगभग 100 लोगों के गिरफ्तार होने की खबर आई है। इस जांच का मुख्य केन्द्र दक्षिण भारत बताया जा रहा है। साथ ही NIA ने इसे अब तक का सबसे बड़ा जांच अभियान बताया है।
केरल में PFI के जिला और राज्य के कई नेताओं के यहां जांच अधिकारी पहुँचे हैं। PFI के चेयरमैन के घर पर आधी रात से छापेमारी हो रही है। सबसे अधिक 22 गिरफ्तारियां भी इसी राज्य में हुई है। इसके अलावा तमिलनाडु समेत देश के 10 राज्यों में NIA छापेमारी कर PFI के पदाधिकारियों के यहाँ जांच की जा रही है।
PFI क्या है?
22 नवंबर, 2006 के दिन दक्षिण भारत के 3 राज्यों में काम कर रही अलग अलग संस्था का विलय हुआ जिससे PFI (Popular Front of India) बनी। इन संस्थाओं के नाम –
- केरल के ‘नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट’ यानी NDF
- तमिलनाडु के ‘मनिथा निथि पसाराई’
- ‘कर्नाटक फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी’
लेकिन इन संस्थाओं के मिलने से बनी ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया’ (PFI) की आधिकारिक तौर पर स्थापना 17 फ़रवरी, 2007 को मानी जाती है। तब से ही ये संस्था विवादों में रही है। हाल ही में बिहार में इसके ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई थी। आज PFI के ख़िलाफ़ कई हिंसक मामलों की जांच NIA समेत अलग-अलग एजेंसियाँ कर रही हैं।
किन किन गतिविधियों में शामिल होने के आरोप –
PFI पर आरोप है कि वो आतंकवदियों को कथित तौर पर धन मुहैया कराता है, उनके लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करने और लोगों को प्रतिबंधित संगठनों से जुड़ने के लिए बरगलाने के काम करने का आरोप है।
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केरल के एर्नाकुलम में एक प्रोफ़ेसर के हाथ काटे जाने के पीछे PFI का हाथ बताया जाता है इसके अलावा कुन्नूर में हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने और तमिलनाडु में तंजावुर का रामलिंगम हत्याकांड में भी PFI पर आरोप लगे। इनमें कई मामलों में लोग दोषी साबित हुए हैं और उनका संबंध PFI से रहा है।
NIA के अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी PFI से जुड़े पैसों के लेन-देन के मामलों की जांच कर रही है। क्योंकि इस संख्था पर आतंकी गतिविधियों को फंड करने का आरोप भी है, ED पता लगाएगी कि पैसों का इस्तेमाल कहां कहां हुआ इसी जांच के सिलसिले में ताज़ा छापेमारी की जा रही है।
जांच क्यों है जरुरी –
हालही में केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन (Siddique Kappan) के मामले में भी इस संस्था का नाम उजागर हुआ था, उन पर आरोप था कि वे PFI के दो सदस्यों के साथ कैब से UP के हाथरस जा रहें थे जिससे हालात खराब होने की आशंका के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
कप्पन पिछले दो साल से बंद है कोर्ट ने उन्हें फिलहाल जमानत दी थी, जिसमें देरी की बात भी सामने आ रही है, कप्पन के मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में कप्पन के PFI (Popular Front of India) से कनेक्शन दो साल में साबित नहीं हो पाया! अगर साबित कर भी दिया जाता तो इस संस्था के खिलाफ हमारी सरकारी एजेंसियों के पास पुख्ता तौर पर सबूत नहीं थे।
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इस कारण से यह जांच जरुरी है जिससे किसी भी संस्था जो कि देश आतंकी गतिविधि में शामिल हो उस पर नकेल कसी जा सकें साथ ही जिस संस्था से जुड़े रहने के आरोप में कई लोगों को लंबे समय तक जेल में रखा गया हो उस पर एक सही समझ लोगों के बीच बन सकें जो कि किसी प्रकार की धारणा से परे हो।