सोनभद्र जिले में कनहर बांध के कारण विस्थापित होने जा रहे हैं ये लोग
2017 के विधानसभा चुनाव में अधिकतर लोगों ने नोटा पर बटन दबाकर जताया था विरोध
2600 करोड़ की पहुंची 26 करोड़ की परियोजना, 10000 लोग मांग रहे हैं मुआवजा
द न्यूज 15
नई दिल्ली/लखनऊ। उत्तर प्रदेश चुनाव में सभी दलों ने अपनी ताकत झोक दी है। मुख्य मुकाबला सपा रालोद गठबंधन और भाजपा के बीच माना जा रहा है। पहले चरण का चुनाव 10 फरवरी को होगा। लोगों में चुनाव को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में 11 गांव ऐसे भी हैं जिनके नागरिक वहां से आखिरी बार वोट डालेंगे। दरअसल झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे सोनभद्र जिले के 11 गांवों के लिए यह विधानसभा चुनाव आखिरी चुनाव होगा। क्योंकि इन गांवों में किसी भी पार्टी के नेता या विधायक ने इनकी बुरी दिनों में कोई मदद नहीं की है। यहां पर 11 गांव ऐसे हैं जहां लोग चुनाव को लेकर बिल्कुल खामोश हैं। कुछ भी बोलने से इनकार कर देते हैं, जबकि जून 2003 तक यहां सिंचाई के लिए बने रहे कनहर डैम के कारण यह इलाका यानी 11 गांव पूरी तरह से डूब जाएंगे। 11 गांव हमेशा के लिए सोनभद्र जिले के मानचित्र से विलुप्त हो जाएंगे लेकिन प्रशासन या सरकार की ओर से अभी तक यहां के लोगों के रहने और रोजगार की कोई व्यवस्था तक नहीं की गई है।
7 सौ करोड़ लगाकर बन रहा कनहर डैम जून 2023 तक जनपद के अमवार गांव में पांगन नदी और कनहर नदी के संगम पर चार दशक से बन रहे 27 सौ करोड़ की लागत से बनने वाला कनहर डैम बनकर तैयार हो जाएगा। तब सिंदूरी, भिसूर, कोरची, गांव समेत 11 गांव बांध के पानी में डूब जाएंगे। कनहर सिंचाई परियोजना के मुख्य बांद का काम 80 फीसद से अधिक हो चुका है। जून 2023 में बरसात के बाद मुख्य बांध में पानी रोकने की येाजना है।
नोटा पर दबाया था बटन 2017 के विधानसभा चुनाव में 18,498 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया था। नोटा का प्रयोग डूब क्षेत्र होने के कारण किया गया था। सोनभद्र जिले में कनहर सिंचाई परियोजना के कारण 11 गांवों में एक अजीब सी खामोशी है। चुनाव को लेकर भी कोई यहां पर चर्चा नहीं करना चाहता है। 1976 से 1982 तक सरकार ने यहां की जमीन ली थी और मुआवजा भी दिया था। तब लोग अपने घरों से नहीं निकले थे क्योंकि 1984 में बांध बनना बंद हो गया था। अब जब 40 वर्ष बाद कनहर बांध का काम पुन शुरू हुआ है तो यहां के लोग भूमिअधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
सरकार कहती है कि मुआवजे को लेकर कोई संशोधन नहीं होगा लेकिन परिवार की तीन पीढ़ी को सात लाख रुपये और आवासीय भूमि दी जाएगी। 27 करोड़ की परियोजना आज बढ़कर 2700 करोड़ को पार कर चुकी है। परेशानी इस बात की है कि 1976 में 14 सौ परिवारों को मुआवजा दिया गया था। लेकिन आज 10000 परिवार मुआवजे की मांग कर रहे हैं, जिसे सरकार मान नहीं रही है, लोग इसको लेकर आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं।