डीपीएस द्वारका के अभिभावकों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से की करुणा भरी अपील – मासूम बच्चों को हो रहे उत्पीड़न से बचाने की गुहार

नई दिल्ली । दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस), द्वारका के छात्रों के पीड़ित अभिभावकों ने एक करुणामयी और बेहद गंभीर अपील प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को भेजी है, जिसमें उन्होंने अपने बच्चों की मानसिक, भावनात्मक और शैक्षणिक सुरक्षा हेतु तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। अभिभावकों का आरोप है कि स्कूल प्रशासन द्वारा बच्चों का लगातार उत्पीड़न किया जा रहा है, वह भी न्यायपालिका और प्रशासनिक आदेशों की खुलेआम अवहेलना करते हुए।

 

डीडीए की शर्तों और शिक्षा निदेशालय (DoE), दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, डीपीएस द्वारका पर आरोप है कि वह मनमाने ढंग से फीस बढ़ा रहा है, छात्रों के नाम स्कूल से काट रहा है, और जबरदस्ती फीस वसूली के लिए दबाव बना रहा है — यहां तक कि बच्चों को स्कूल में प्रवेश से रोकने के लिए बाउंसरों का सहारा लिया जा रहा है।

अभिभावकों के अनुसार, 13 मई 2025 को एक अत्यंत दर्दनाक घटना घटी, जब स्कूल प्रशासन ने पुलिस और निजी सुरक्षाकर्मियों के सहयोग से बच्चों को स्कूल से जबरदस्ती हटाया। कई बच्चों को बिना माता-पिता को सूचना दिए अज्ञात स्थानों पर छोड़ दिया गया और कुछ बच्चे घंटों बाद अपने घर पहुंचे, भयभीत और मानसिक रूप से आहत। इसके अतिरिक्त, इससे पहले कई बच्चों को लाइब्रेरी में पूरे दिन बंद कर दिया गया, उन्हें न तो खेलने दिया गया, न ही दोस्तों से मिलने दिया गया।

“ यह सिर्फ कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन नहीं है — यह बच्चों का अपमान है, ” एक माता-पिता ने भर्राए गले से कहा। “हम अपने छह साल के बच्चे को कैसे समझाएं कि स्कूल ने उसे ऐसे क्यों निकाला, जैसे वह कोई अपराधी हो?”

अभिभावकों की अपील में प्रमुख न्यायिक और प्रशासनिक आदेशों का उल्लेख किया गया है, जिनमें शामिल हैं:

दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश (दिनांक 16.04.2025) जिसमें डीपीएस द्वारका को बच्चों के खिलाफ किसी भी जबरदस्ती से रोका गया था;

शिक्षा निदेशालय का आदेश (दिनांक 15.05.2025) जिसमें सभी प्रभावित बच्चों को तुरंत वापस लेने का निर्देश था;

जिलाधिकारी, दक्षिण-पश्चिम दिल्ली की जांच रिपोर्ट (दिनांक 04.04.2025) जिसमें यह पुष्टि की गई कि बच्चों के साथ मानसिक और भावनात्मक शोषण हुआ है।

फिर भी, स्कूल ने इन आदेशों की अनदेखी जारी रखी है और संबंधित अधिकारियों की निष्क्रियता के चलते बच्चे आज भी पीड़ित हैं। एक अभिभावक ने कहा, “जब शिक्षा निदेशालय के आदेशों का कोई पालन नहीं करता, तब हम अपने बच्चों को किससे न्याय दिलवाएं? क्या यह वही देश है जो संविधान और बच्चों के अधिकारों की बात करता है?”

अभिभावकों की मांग है कि स्कूल प्रबंधन समिति को तुरंत निलंबित किया जाए, सभी बच्चों को बहाल किया जाए, स्कूल की वित्तीय जांच हो, एक न्यायिक जांच कमेटी गठित हो, और एक अंतरिम अभिभावक निगरानी समिति बनाई जाए ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

अंत में, उन्होंने प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से करुणा पूर्वक निवेदन किया कि वे न केवल कानून की गरिमा, बल्कि शिक्षा की पवित्रता और बच्चों की मासूमियत की रक्षा करें। “हम सिर्फ फीस की बात नहीं कर रहे हैं, हम अपने बच्चों की मुस्कान, उनका बचपन, उनकी सुरक्षा और उनका आत्म-सम्मान और भविष्य बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं जो कि कल के भारत का भविष्य लिखेंगे।”

 

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