नई दिल्ली। भले ही अमेरिका ने मध्यस्थता कर भारत और पाकिस्तान को युद्ध से रोकने के लिए सीजफायर कर दिया हो, भले ही भारत ने अपनी सैन्य कार्रवाई रोक दी हो पर पाकिस्तान ठहरा कुत्ते की दुम। वह कहां मानने वाला है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि पाकिस्तान कितने दिन सीजफायर को मानेगा ? दरअसल पाकिस्तान का रुख कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिसमें उसकी आंतरिक राजनीति, आर्थिक स्थिति, भारत के साथ संबंध, और अंतरराष्ट्रीय दबाव शामिल हैं। हाल के घटनाक्रमों और उपलब्ध जानकारी के आधार पर, निम्नलिखित बिंदुओं से पाकिस्तान के संभावित रुख का अनुमान लगाया जा सकता है:
सीजफायर का पालन और उल्लंघन का इतिहास
पाकिस्तान ने 10 मई 2025 को भारत के साथ सीजफायर समझौते पर सहमति जताई थी, लेकिन कुछ ही घंटों बाद उसने जम्मू-कश्मीर, पंजाब, और राजस्थान में ड्रोन हमले और गोलीबारी करके इसका उल्लंघन किया। यह दर्शाता है कि पाकिस्तान की सेना और सरकार के बीच नीतिगत मतभेद हो सकते हैं, या वह जानबूझकर तनाव बनाए रखना चाहता है।
हालांकि, 12 मई 2025 से सीमा पर फायरिंग की कोई नई खबर नहीं आई, और दोनों देशों के DGMO स्तर पर बातचीत प्रस्तावित है। यह संकेत देता है कि पाकिस्तान फिलहाल तनाव कम करने की कोशिश कर सकता है, खासकर अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण।
आंतरिक और आर्थिक दबाव:
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है, और हाल ही में IMF से 1 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज प्राप्त हुआ, जिसका भारत ने विरोध किया था। यह आर्थिक संकट पाकिस्तान को सैन्य आक्रामकता से बचने के लिए मजबूर कर सकता है, क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका और IMF, के सामने अपनी छवि खराब नहीं करना चाहेगा।
पाकिस्तान की सेना और सरकार पर आंतरिक दबाव भी है। ऑपरेशन सिंदूर में भारत द्वारा किए गए हमलों ने पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों और आतंकी शिविरों को नष्ट किया, जिससे उसकी सैन्य क्षमता को गहरा झटका लगा। इससे पाकिस्तान की सेना और जनता में असंतोष बढ़ सकता है, जिसके चलते वह उकसावे की कार्रवाइयों से बचने की कोशिश कर सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता और दबाव:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता ने सीजफायर को संभव बनाया, और अमेरिका ने पाकिस्तान पर दबाव डाला कि वह समझौते का पालन करे। अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों की निगरानी के कारण पाकिस्तान को तत्काल आक्रामक कार्रवाइयों से बचना पड़ सकता है।
हालांकि, पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश की है, जैसा कि उसके रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के बयानों में देखा गया। यह दर्शाता है कि वह कूटनीतिक मंचों पर भारत के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश करेगा।
आतंकवाद के प्रति रुख:
भारत ने स्पष्ट किया है कि वह आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख जारी रखेगा, और किसी भी आतंकी हमले को युद्ध की कार्रवाई मानेगा। इससे पाकिस्तान पर दबाव है कि वह आतंकी संगठनों को समर्थन देना बंद करे। हालांकि, पाकिस्तान का इतिहास दर्शाता है कि वह प्रत्यक्ष सैन्य टकराव से बचते हुए प्रॉक्सी युद्ध (आतंकी हमलों) को बढ़ावा दे सकता है।
ऑल इंडिया उलमा बोर्ड जैसे संगठनों ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई और पूर्ण बहिष्कार की मांग की है, जो भारत में जनभावना को दर्शाता है। इससे पाकिस्तान पर कूटनीतिक और सामाजिक दबाव बढ़ेगा।
कूटनीतिक और सैन्य रणनीति:
पाकिस्तान ने भारत पर सीजफायर उल्लंघन का उल्टा आरोप लगाया है, दावा करते हुए कि उसकी सेना “जिम्मेदारी और संयम” के साथ काम कर रही है। यह उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें वह खुद को पीड़ित दिखाकर अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने की कोशिश करता है।
सिंधु जल संधि का निलंबन और भारत द्वारा अटारी चेक पोस्ट बंद करने जैसे कदमों ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से कमजोर किया है। इससे वह खुले टकराव से बचकर कूटनीतिक मंचों पर अपनी बात रखने की कोशिश कर सकता है।
संभावित परिदृश्य:
अल्पकालिक: पाकिस्तान अगले कुछ दिनों तक सीजफायर का पालन करने की कोशिश करेगा, खासकर DGMO स्तर की बातचीत (12 मई 2025) तक, ताकि अंतरराष्ट्रीय दबाव कम हो। हालांकि, छोटे स्तर पर उकसावे की कार्रवाइयाँ, जैसे ड्रोन घुसपैठ, जारी रह सकती हैं।
मध्यकालिक: पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा, साथ ही आतंकी संगठनों के जरिए प्रॉक्सी युद्ध को बढ़ावा दे सकता है। भारत का सख्त रुख और सैन्य ताकत उसे प्रत्यक्ष टकराव से रोक सकती है।
दीर्घकालिक: पाकिस्तान की आर्थिक कमजोरी और भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत उसे अधिक संयमित रुख अपनाने के लिए मजबूर कर सकती है, लेकिन आंतरिक राजनीतिक दबाव और सेना का प्रभाव उसकी नीतियों को अप्रत्याशित बना सकता है।