अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद, कश्मीरी भारतीयों की नव स्थापित फर्मों में काम कर रहें हैं और अच्छा पैसा कमा रहें हैं। अधिक नौकरियाँ पैदा करने से अनिवार्य रूप से अपराध कम हो रहें है। कश्मीरी अपनी जमीन पट्टे पर देकर आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रहें है। निजी व्यापार मालिक कश्मीर में कारखाने स्थापित कर रहें हैं, जिससे कश्मीरियों और भारतीयों के लिए नौकरियाँ पैदा हो रही हैं। 40% कश्मीरियों के पास नौकरियों की कमी, घाटी में अपराध में वृद्धि का मुख्य कारण है। निजी निवेश से असामाजिक कृत्यों में कमी आएगी। ज़मीन की कीमतें बढ़ रही है, जिससे कश्मीरियों को महत्वपूर्ण लाभ मिल रहा है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के साथ, अब सभी कश्मीरियों को शिक्षा का अधिकार है। कश्मीरियों को अब सब कुछ जानने का अधिकार है क्योंकि देश एक झंडे और एक राष्ट्र के अधीन है। यह कानून अब कश्मीरियों को राज्य में स्थित संस्थानों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार देता है। आगे भी इस बात की 100% संभावना है कि कश्मीर में निवेशकों के निवेश के परिणामस्वरूप घाटी में नए शैक्षणिक संस्थान खुलेंगे; इससे बच्चे, विशेषकर लड़कियाँ शिक्षित होंगी।
प्रियंका सौरभ
अनुच्छेद 370 और 35 (ए) की विदाई से जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत हुई है। आज के दिन जम्मू-कश्मीर 5 अगस्त, 2019 से पहले की तुलना में बेहतर स्थिति में है। अनुच्छेद 370 और 35 (ए) ने हमारे देश में बनाए गए प्रत्येक नियम के लिए हमेशा प्रश्न किया कि यह जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है या नहीं। मगर आज, ऐसे भेद इतिहास बन गये हैं। जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ पूरी तरह से एकीकृत होकर भारत का हो गया है। जम्मू-कश्मीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक पंचायत चुनाव कराना था, जो अंततः 2020 में हुए। विघटनकारी तत्वों की छिटपुट टिप्पणियों के बावजूद, चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए और लोगों को सहभागी लोकतंत्र का स्वाद मिला। यह एक कदम जम्मू-कश्मीर में विकास प्रतिमान को आकार देने में सहायक सिद्ध हुआ। अनुच्छेद 370 और 35 (ए) पर फैसलों के बाद तनाव की ऐसी चिंगारी फिर से भड़काने की कोशिश की गई लेकिन घाटी के साथ-साथ जम्मू भी शांतिपूर्ण रहा है। बेड़िया टूटने के बाद कश्मीर के लोगों ने खुद से पूछा कि जम्मू-कश्मीर में आरटीआई कानून क्यों नहीं होना चाहिए और आरक्षण का लाभ वहां के एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों को क्यों नहीं मिलना चाहिए। तथ्य यह है कि सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाले समूहों को अब आरक्षण का लाभ मिल सकता है, यह जम्मू-कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में एक बड़ी छलांग है।
यह एक निर्विवाद वास्तविकता है कि जम्मू-कश्मीर में राज्य मशीनरी लालफीताशाही और भ्रष्टाचार की गिरफ्त में थी। घाटी आज राज्य के प्रमुख विभागों और वित्तीय निकायों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की खबरों से गुलजार है। जनता की भलाई के लिए भेजे जा रहे पैसे का निहित स्वार्थी समूहों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा था। घाटी में आर्थिक उत्थान 2015 के प्रधान मंत्री पैकेज के साथ शुरू हुआ। इसने भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे पर व्यापक खर्च के लिए मंच तैयार किया। 370 और 35(ए) के हटने से घाटी में पर्यटन को गति मिली. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को दिए गए प्रोत्साहन – चाहे वह केसर किसान हों या ट्राउट मछली पकड़ने वाले – बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण वातावरण के साथ मिलकर कई लोगों के जीवन को सशक्त बना रहा है। भ्रष्टाचार और लीकेज में भारी कमी आने से संसाधन इच्छित लाभार्थियों तक पहुंच रहे हैं। अब आगे का रास्ता भी आशा और आशावाद से भरा हुआ लगता है। जम्मू-कश्मीर में हालात कभी आसान नहीं रहे. अफसोस की बात है कि यथास्थिति बनाए रखने की जरूरत पिछली सरकारों के कामकाज पर हावी रही। निहित स्वार्थी समूह भारत के लोकतांत्रिक और समावेशी लोकाचार को मात देने के लिए कश्मीर को छड़ी के रूप में इस्तेमाल करना पसंद करते थे। जैसे ही हम अमृत महोत्सव में प्रवेश करते हैं, यह हमारे लिए जम्मू-कश्मीर में नई वास्तविकताओं को देखने का है। राज्य के लोगों को उड़ने के पंख मिल गए हैं और आने वाले वर्षों में, जम्मू-कश्मीर भारत की वृद्धि और विकास में और भी बड़ा योगदान देगा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी और अप्रभावी प्रावधान के रूप में देखा गया जिसे निरस्त करने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 370 के ख़त्म होने से कश्मीर के लोगों को मदद मिली है और वो शेष भारत में शामिल हो गए है। जम्मू और कश्मीर पूरी तरह से भारतीय संविधान और सभी 890 केंद्रीय कानूनों के अंतर्गत आता है। उन्हें और भारतीयों दोनों को कश्मीर का हिस्सा बनने का अधिकार है। वे स्कूल के लिए छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने में सक्षम हैं। कश्मीर में उनके लिए सरकारी रोजगार उपलब्ध है। समग्र रूप से भारत अब एकत्रित हो गया है। भारतीयों और कश्मीरियों के लिए कोई अलग संविधान नहीं है। सभी लोग “एक राष्ट्र, एक संविधान” के आदर्श वाक्य का पालन करेंगे। अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद, कश्मीरी भारतीयों की नव स्थापित फर्मों में काम कर रहें हैं और अच्छा पैसा कमा रहें हैं। अधिक नौकरियाँ पैदा करने से अनिवार्य रूप से अपराध कम हो रहें है। कश्मीरी अपनी जमीन पट्टे पर देकर आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रहें है। निजी व्यापार मालिक कश्मीर में कारखाने स्थापित कर रहें हैं, जिससे कश्मीरियों और भारतीयों के लिए नौकरियाँ पैदा हो रही हैं। 40% कश्मीरियों के पास नौकरियों की कमी, घाटी में अपराध में वृद्धि का मुख्य कारण है। निजी निवेश से असामाजिक कृत्यों में कमी आएगी। ज़मीन की कीमतें बढ़ रही है, जिससे कश्मीरियों को महत्वपूर्ण लाभ मिल रहा है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के साथ, अब सभी कश्मीरियों को शिक्षा का अधिकार है। कश्मीरियों को अब सब कुछ जानने का अधिकार है क्योंकि देश एक झंडे और एक राष्ट्र के अधीन है। यह कानून अब कश्मीरियों को राज्य में स्थित संस्थानों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार देता है। आगे भी इस बात की 100% संभावना है कि कश्मीर में निवेशकों के निवेश के परिणामस्वरूप घाटी में नए शैक्षणिक संस्थान खुलेंगे; इससे बच्चे, विशेषकर लड़कियाँ शिक्षित होंगी।
हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि किसी भी समस्या का कोई पूर्वनिर्मित समाधान नहीं है। यह समाधान न तो सड़कों पर मिलेगा, न ही पत्थर और बंदूकों से कुछ हल निकलेगा, इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति ही आखिर काम आई है। अब भविष्य में भी कश्मीर के लोगों की विचारधारा और निष्ठा के साथ, कश्मीर की समस्या का समाधान उन लोगों से ही मिलेगा। कश्मीर में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए एक समग्र और बहु-आयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ ही कश्मीर में स्थायी शांति को बल मिल सकता है। मानव मूल्यों के आधार पर एक ही दृष्टिकोण के साथ, उन्हें परस्पर बातचीत शुरू करनी होगी। कश्मीर में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए युवाओं को उग्रवाद तथा व्यसनों से दूर रहने के लिए प्रशिक्षित करने के साथ, उनमें आत्मविश्वास पैदा करके, सद्भावना की पहल करनी होगी। इन सब उपायों से ही कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए एक दूरगामी स्थायी कार्यक्रम बनाया जा सकता है। आतंकवाद मानवता के मूल्यों, कश्मीरियों की मूल भावना और सूफीवाद की शिक्षाओं के खिलाफ है। लोगों को प्रेरित करने के लिए एक आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इसके लिये पुरानी नीतियाँ अब काम नहीं करेंगी। कश्मीर को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने लिए लीक से हटकर सोचने की जरूरत है। तभी हमारा कश्मीर फिर से स्वर्ग बन पायेगा।
(लेखिका रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)