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सत्ता के मद में चूर नेताओं का एक ही स्वर, अबकी बार मेरी सरकार

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डॉ. कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’ 

घात-प्रतिघात, हठ- बलात् सबके बीच में एक ही बात, अबकी बार मेरी सरकार । ” नाच न जाने आंगन टेढ़ा ” सत्ता के मद में चूर सभी नेताओं का एक ही स्वर है, अबकी बार मेरी सरकार। जनता बता देगी , अरे ! क्या बता देगी?  किसे बता देगी?  क्यों बता देगी?  जब जी में आया चुनाव के नाम पर बिसात बिछाई और पांसे से फेंके।  जनता को प्यादों की तरह हर तरफ़ से नाच नचाया । कभी जनता की सरकार जनता के लिए बन पाएगी ! ऐसा कहना मुमकिन नहीं नामुमकिन ज़रूर लगता है।

बेसिर -पैर के, बिना किसी वज़ूद के, जूठे पत्तल चाटने वालों का, कैसा बहुआयामी चरित्र है ! सुबह से शाम, हरपल ,दलबदल , एक ही चेहरा इस पार्टी से उस पार्टी  में बोलता है। चरित्रहीनता की पराकाष्ठा है । सभी का चरित्र बिकाऊ सा लगता है । ये जनता को मूल्यों -आदर्शों की बात क्या समझाएंगे? अपने गिरेबान में झांककर देखें, न नीचे धरती है न ऊपर आसमान। सपनों के महल बनाने वाले, जनता को झूठे वादों में फंसाने वाले, कहीं से भी हमारे शुभचिंतक नहीं।

हमारे देश की यही विडंबना है। जात-पात  इस क़दर हावी है कि चुनावी रणनीतियों में उच्च आदर्शो के साथ खड़ा होना बिल्कुल ही बेमानी लगता है। अराजक तत्वों की भरमार है ।गुंडे- बदमाश, माफियाओं के सरगना , अपराधिक पृष्ठभूमि से राजनीतिक पार्टियां इस तरह सुशोभित हो रही हैं मानो अमृत का घड़ा उन्हें मिल गया हो। न हारने की जादुई छड़ी हाथ में लग गई हो। सारे नियम -कानून ताक पर रख “इस कोठरी का धान उस कोठरी में ” हो रहा है । चोर -चोर मौसेरे भाई बने पड़े हैं।

ज़मीनी धरातल पर जनता को बहुत सोचने-विचारने की ज़रूरत है । चिंतन-मनन की आवश्यकता है। छोटे-छोटे मुद्दों को जातिगत आधार देने वाले तिगड़मबाज़ों से सावधान रहने की आवश्यकता है। यह देश उन सभी का है, जिनका दिल देश के लिए धड़कता है , मर मिटने का जज़्बा रखता है, तिरंगे की शान का कभी अपमान नहीं देख सकता है। सरकार बनाने वाली पार्टी को बिना भेदभाव सबके विकास की रूपरेखा तय करनी होगी । जिस भी पार्टी के प्रत्याशी दाग़दार हों, उन्हें जनता को कतई वोट नहीं देना चाहिए । समाज से गुनाहों का सफ़ाया करने के लिए पहल ख़ुद से शुरू करनी है।भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए भ्रष्ट हो जाना कतई आवश्यक नहीं। कूड़ा -कबाड़ा ख़ुद से ही साफ़ करना होगा ।स्वच्छ हवा में सांस लेने के लिए कोशिश जनता को ही करनी होगी।

हिंदू,मुस्लिम, सिख, ईसाई ,  अनेक जातियो और उप-जातियों, सभी के विकास का दारोमदार इन्हीं नेताओं पर है। पर जिसे धर्म-जाति को आधार बनाकर समीकरण बिठाना है उससे हाथ जोड़ किनारा कर लेना ही श्रेयस्कर है। बंटकर समाज का कभी भला नहीं हो सकता। एकता में असीम ताकत है। भड़काऊ भाषणों की अपराधिक पृष्ठभूमि से सतर्क रहने की ज़रूरत है। ऐसी प्रवृत्ति के घातक लोग जनता का इस्तेमाल अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए कर रहे हैं। होशियार और ख़बरदार रहना होगा।

तू -तू मैं-मैं की रोज़मर्रा की टीआरपी बटोरने वाले, छोटी- मानसिकता के राजनेताओं की छुट्टी करनी होगी।  जो जनता के दैनिक जीवन में घट रहे हर पल की समस्याओं से निजात दिलाने का संकल्प करे, छोटे-छोटे प्रयासों के सुंदर परिणाम दिखाएं , नफ़रत की कौड़ी न फेंके, शांति-अमन और भाईचारे की बात करे। देश सर्वोपरि हो। भीख में कोई ख़ैरात नहीं चाहिए । हमे श्रेष्ठ नेताओं को परखने की शक्ति का अपने अंदर संचार करना होगा।  मत का प्रयोग व्यर्थ न जाए , आंखें मूंदकर नहीं खोलकर विवेचना करें। अपना नेता ऐसा चुनें जिसे आपकी परवाह हो।  लोक संवरेगा तो परलोक अपने आप संवर जाएगा । दिग्भ्रमित करने वाले,  लोभ-लालच के झांसे में फंसाने वाले, स्वार्थी तत्वों से ,अपने को बचाकर अपना बहुमूल्य मत उसे दें, जो स्थानीय स्तर पर आपके समाज का हित करने को तत्पर हो । ” दूर के ढोल सुहावने ” होते हैं । आपसी निजी मतभेदों और स्वार्थपूरित राजनीति के लिए राष्ट्रकवि को, अपनी ओछी मानसिकता के लिए इस्तेमाल करना, उनका भी अपमान है। जिसने अपनी पंक्तियां ऐसे राष्ट्र को समर्पित कीं जिसमें मात्र देशसेवा थी , झकझोर देने की प्रवृत्ति थी, कुप्रवृत्तियों पर प्रहार था। पर आज के नेता उसे अपनी पार्टियों की स्वार्थपरता के लिए उन सुंदर पंक्तियों का भी मज़ाक उड़ा रहे हैं। यहां ” सबकी अपनी-अपनी ढपली और अपना राग”  है। सबके स्वरों की पहचान और अपने स्वर का प्रभाव छोड़ने की आदत बनान होगी ।हमारे नेता हमारी ज़िंदगी से खिलवाड़ नहीं कर सकते । विकास की आंधी बहाने वाले के साथ ही कदमताल करना होगा। मत का प्रयोग सोच-समझकर करें हुजूर!