
चरण सिंह
वक्फ कानून बनने के बाद पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा और उसके बाद हिंदुओं के पलायन की खबरें। उसके बाद ममता बनर्जी के मंत्री फिरहाद के हकीम का यह कहना कि बंगाल के लोग बंगाल में ही जा रहे हैं। मतलब सीधा सा है हिन्दुओं को मुर्शिदाबाद में नहीं रहने देंगे। दरअसल यह सब वक्फ कानून बनने के बाद हुआ है। क्योंकि प. बंगाल में ममता बनर्जी का बड़ा वोटबैंक मुसलमान हैं। ऐसे में हिन्दुओं के उत्पीड़न पर उनका वोटबैंक मजबूत हो रहा है। तो क्या अपना वोटबैंक मजबूत करने के लिए किसी की भी जान ले लोगे।
दरअसल वक्फ कानून बनने के बाद मुस्लिम संगठनों के साथ ही विपक्ष के नेता भी वक्फ कानून के खिलाफ सड़कों पर हैं। बात पश्चिमी बंगाल की ही नहीं है। लगभग हर प्रदेश में इसी तरह की राजनीति हो रही है। अपना अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए विभिन्न दल धर्म के नाम पर और जाति के नाम पर हिंसा भड़काने का प्रयास करने लगते हैं।
ऐसा ही हाल कुछ प्यार की नगरी आगरा में भी दिखाई दिया। सपा सांसद रामजी लाल सुमन के विरोध में राजपूत संगठनों ने जमकर बवाल काटा। क्या अब देश में धर्म और जाति के नाम पर हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है ? क्या धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा अब जातीय हिंसा में बदल रही है ? दरअसल जिस तरह से मुस्लिम और दलित वोटों के ध्रुवीकरण के लिए राज्यसभा में सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उसके बाद बीजेपी के इशारे पर राजपूत संगठनों ने रामजी लाल सुमन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 12 अप्रैल को आगरा में राजपूत संगठनों ने एक पंचायत की।
इस पंचायत में लाखों की संख्या में राजपूत और दूसरे समाज के लोग पहुंचे। इस पंचायत में तलवारें भी लहराई गईं। रामजी लाल और अखिलेश यादव के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई। सपा के एक नेता पर हमला करने की भी खबर आई है। मतलब राजनीतिक दलों ने एक बात तो सीख ली है कि काम करो या न करो बस जातीय आंकड़ों पर जातिवाद और धर्मवाद की राजनीति करते रहो। एक दूसरे समाज के महापुरुषों को उल्टा सीधा बोलते रहो। भला क्या जरुरत थी रामजी लाल सुमन को राणा सांगा को गद्दार बोलने की।
सपा की यह सोची समझी रणनीति थी। सपा को पता है कि राणा सांगा के खिलाफ बोलने पर राजपूतों में आक्रोश पैदा होगा। ऐसे में एक ओर जहां मुस्लिम समाज की सहानुभूति मिलेगी वहीं रामजी लाल सुमन की वजह से दलित भी सपा से सटेंगे, काफी हद तक सपा की रणनीति के हिसाब से ही चल रहा है। राजपूत समाज के नेता एक ओर रामजी लाल सुमन के खिलाफ आग उगल रहे हैं वहीं नहीं बख़श रहे हैं। राजनीति तो हो रही है पर सपा को इस प्रकरण का फायदा कम नुकसान अधिक दिखाई दे रहा है। दलित तो सट नहीं रहे हैं पर यादव जरूर नाराज हो जा रहे हैं। वैसे भी दलित और यादवों के पुराने घाव अभी भरे नहीं हैं।