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पहलगाम आतंकी हमले पर भाषण नहीं एक्शन चाहता है देश ?

चरण सिंह 

पहलगाम आतंकी हमले में भले ही केंद्र सरकार का रोल लापरवाही भरा रहा हो फिर भी कांग्रेस को पीएम मोदी का बिना सिर वाला फोटो गायब दिखाकर पोस्ट नहीं करना चाहिए था। इस तरह की पोस्ट से गलत संदेश जाता है। सरकार को उसकी जिम्मेदारी और जवाबदेही का एहसास तो कराया जाए पर सियासत न हो। इसमें दो राय नहीं कि आतंकी हमले का जवाब देने के मामले में विपक्ष का रोल सराहनीय रहा है। जिस तरह से विपक्ष ने बिना शर्त उसके हर निर्णय का साथ देने का वादा किया है। वह सरकार को निर्णय लेने में मददगार कहा जा सकता है।

सऊदी अरब से लौटते ही बिहार रैली में पहुंचने और सर्वदलीय बैठक से नदारद रहने की वजह से पीएम मोदी पर आतंकी हमले का बदला लेने में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया जा सकता है। पर यह समय सियासत करने का नहीं बल्कि एकजुटता दिखाने का है। इस तरह के किसी भी संदेश से बचना होगा, जिससे पाकिस्तान का मनोबल बढ़े। हमें पाकिस्तान के खिलाफ एकजुटता के साथ खड़ा होना है, क्योंकि चीन भी पाकिस्तान से कम चुनौती नहीं है। वैसे भी युद्ध होने की स्थिति में चीन ने पाकिस्तान का साथ देने की ताल ठोक दी है।
दरअसल पीएम मोदी विपक्ष के साथ ही लोगों को भी बोलने का मौका दे रहे हैं। जब छोटा सा छोटा सा चुनाव जीतने पर उसका श्रेय लेने के लिए पीएम दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय पर पहुंच जाते हैं तो  फिर आतंकी हमले का बदला लेने के लिए फ्रंट पर क्यों नहीं आए हैं। क्यों सर्वदलीय बैठक का नेतृत्व किया ? क्यों नहीं विपक्ष को बैठाकर विश्वास में लिया ? जब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टाला जा सकता है तो फिर बिहार रैली क्यों नहीं रद्द की जा सकती थी ?  पर्टयकों को सुरक्षा ने देना और केंद्र सरकार के पहलगाम में पर्यटकों के पहुंचने की जानकारी न होने की बात करना क्या शर्मनाक नहीं है ? आप मौका दे रहे हैं तभी तो लोग बोल रहे हैं। आतंकी हमले के 7 दिन बाद भी यदि आतंकी गिरफ्त में नहीं आये, नहीं मारे गए।
पाकिस्तान को कोई ठोस जवाब नहीं दिया गया तो फिर लोग तो बोलेंगे ही। यह बात जगजाहिर हो चुकी है कि सिंधु समझौते को रद्द करने, राजनयिकों और पाकिस्तानियों का वीजा रद्द कर उन्हें वापस भेजने से कोई खास दबाव पाकिस्तान पर नहीं पड़ा है। अब लोग भी मीडिया के बहकावे में नहीं आ आ रहे हैं। लोग भी जानते हैं कि नदियों का पानी अचानक नहीं रोका जा सकता है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के एक्स हैंडल को बैन करने को एक्शन नहीं कहा जा सकता है।
पाकिस्तान के यूट्यूब चैनलों को बैन करने को भी एक्शन नहीं कहा जा सकता है। देश अब भाषण नहीं बल्कि एक्शन चाहता है। ऐसा एक्शन जिसमें पहलगाम पर हुए हमले के आतंकी  ढेर हों। पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा भारत के कब्जे में हो। पीओके भारत का हिस्सा हो। या फिर 1971 की तरह पाकिस्तान के सैनिक भारत के बंदी हों। पाकिस्तान घुटने पर हो।
बीजेपी और उसके समर्थक तो यह कह रहे थे कि मोदी ने सभी देशों को साध लिया है। एक रूस को छोड़ दिया जाए तो एक भी देश भारत के साथ खुलकर नहीं खड़ा है। पाकिस्तान के साथ खुलकर चीन और तुर्की खुलकर सामने आ गए हैं। मोदी जिन डोनाल्ड ट्रम्प को अपना दोस्त बताते रहे हैं। उनके स्वागत में 100 करोड़ खर्च कर दिए थे। उनके लिए चुनाव प्रचार कर आये थे। नारा लगा दिया था कि अबकी बार ट्रम्प सरकार। वह ट्रम्प बोल रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान का झगड़ा 1660 से है।
उन्होंने पाकिस्तान और भारत दोनों को ही अपना दोस्त बता दिया है। मोदी अपने पड़ौसी देशों को भी न साध सकें। नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका भी भारत के साथ नहीं हैं। चीन तो भारत का घोर विरोधी हैं। देखने की बात यह है कि पाकिस्तान से यदि युद्ध होता है तो भारत को कई मोर्चे पर लड़ना पड़ेगा। पाकिस्तान के खिलाफ तो हम लड़ेंगे ही। चीन किधर से भी हमला कर सकता है। शेख हसीना की वजह से बांग्लादेश पहले ही भारत पर खार खाये हुए है। वहां हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं। ऐसे में कूटनीतिक प्रयास भी कमजोर पड़ रहे हैं।
इस समय भारत को 1971 के युद्ध को ध्यान में रखते हुए  तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रणनीति और कूटनीति से सीख लेनी होगी। जिस तरह से उन्होंने दुनिया का समर्थन जुटा कर पाकिस्तान के दो टुकड़े किए थे। पाकिस्तान के 93000 हजार सैनिक बंदी बना लिए थे। बड़े स्तर पर जमीन कब्ज़ा ली थी। ऐसा ही कुछ मोदी को भी करना होगा।
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