
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित करके निर्णय लिया कि गया को अब से गयाजी कहा जाएगा. यह निर्णय जनमानस को प्रदर्शित करने वाला है.
सनातन परंपरा को मानने वाले जब भी गया का नाम लेते हैं तो उसे बहुत सम्मान के साथ नाम लेते हैं और गयाजी ही कहते हैं. इसके पीछे धार्मिक परंपरा, धार्मिक अनुष्ठान और परंपरा है. सनातन परंपरा को मानने वाले मृत्यु को प्राप्त कर चुके पूर्वजों के मोक्ष के लिए यहां पिंड दान करने आते हैं. पूरे विश्व में सनातन को मानने वाले, चाहे जहां भी रहते हों, पूर्वजों का पिंड दान के लिए उन्हें गयाजी आना ही होता है.
बिहार सरकार ने आधिकारिक रूप से यह फैसला लेकर सनातन परंपरा को सम्मान देने का काम किया है. इसे बहुधा पहले हो जाना चाहिए था. चलो देर से सही, लेकिन यह एक अच्छा काम हुआ है. हालांकि किसी शहर को सम्मान देने का आधिकारिक निर्णय देने का ये कोई पहली घटना नहीं है.
पटना जिले में सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली है, उस स्थान को सम्मान देने के लिए पटना साहिब कहा जाता है. पंजाब के रूपनगर जिले में एक शहर है आनंदपुर, यहां गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविंद सिंह रहते थे. गुरु गोविंद सिंह ने यहां खालसा पंथ की स्थापना की थी. इस शहर को सम्मान के साथ आनंदपुर साहिब बुलाते हैं.
महाकुंभ प्रयाग शहर में लगता है, इस शहर को सनातन को मानने वाले तीर्थराज प्रयाग कहते हैं. आधिकारिक रूप से उस शहर को प्रयागराज कहा जाता है. यानि धार्मिक दृष्टिकोण से शहर को सम्मान के साथ बुलाने की परंपरा नई नहीं है. इस कड़ी में बिहार का एक शहर गया को भी शामिल कर लिया गया है. यह स्वागतयोग्य कदम है.
– दीपक राजा