नोएडा । जिलाधिकारी सुहास एलवाई के निर्देश पर मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जनपद के दो अल्ट्रासाउंड केन्द्रों का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण में टीम ने अल्ट्रासाउंड केन्द्रों के सभी प्रपत्र और फार्म एफ की जांच की। यह निरीक्षण पीसी-पीएनडीटी एक्ट के प्रभावी क्रियांवयन को लेकर किया गया। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं पीसी-पीएनडीटी कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. ललित कुमार के नेतृत्व में औचक निरीक्षण किया गया।
डा. ललित ने बताया- जिलाधिकारी के निर्देश पर मंगलवार को बैक्सन होम्योपैथी मेडिकल कालेज स्थित अल्ट्रासाउंड केन्द्र का औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण में केन्द्र के सभी प्रपत्र और फार्म एफ सही पाये गये। निरीक्षण के दौरान बैक्सन होम्योपैथी मेडिकल कालेज की एचआर मैनेजर मौजूद रहीं। इसके अलावा ग्रेटर नोएडा पी-3 स्थित केबी हेल्थ केयर का निरीक्षण किया गया। यहां भी किसी प्रकार की कोई खामी नहीं पायी गयी। निरीक्षण के दौरान सेंटर के रेडियोलॉजिस्ट डा. एसके भार्गव और डा. सुमित भार्गव और स्वास्थ्य विभाग के कमल आर्य मौजूद रहे।
डा. ललित ने बताया- स्वास्थ्य विभाग की टीम अल्ट्रासाउंड केन्द्रों का लगातार इसी तरह औचक निरीक्षण करेगी। यदि कहीं भी अनियमितता पायी जाती है तो पीसी-पीएनडीटी एक्ट के अनुसार विधिक कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा- पीसी-पीएनडीटी एक्ट यानि गर्भ में कन्या भ्रूण की पहचान करने के खिलाफ कानून के प्रभावी क्रियांवयन को लेकर विभाग का सख्त रुख है। उन्होंने निजी चिकित्सालयों व अल्ट्रासाउंड संचालकों से अपील की है कि वह किसी भी हालत में लिंग भ्रूण जांच न करें। भ्रूण लिंग जांच न केवल अनैतिक है बल्कि कानूनी तौर पर भी दंडनीय है।
क्या है फार्म एफ
फार्म एफ एक ऐसा प्रपत्र है जिसमें गर्भवती की जांच का ब्योरा भरा जाता है। तीन से छह महीने की अवधि के दौरान अल्ट्रासाउड कराने वाली गर्भवती का अल्ट्रा साउंड करने से पहले फार्म एफ भरना नियमानुसार अनिवार्य है।
क्या है पीसी-पीएनडीटी एक्ट
पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 भारत में कन्या भ्रूण ह्त्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्रीनेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक (पीसी-पीएनडीटी) एक्ट के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड कराने वाले जोड़े या करने वाले चिकित्सक, लैब कर्मी को तीन से पांच साल की सजा और 10 से 50 हजार रु. के जुर्माने की सजा का प्रावधान है।