चरण सिंह
वक्फ संसोधन बिल पर जिस तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अगुआई में दिल्ली जंतर मंतर पर आंदोलन हुआ। मुस्लिम धर्म गुरुओं ने टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार को अल्टीमेटम दे दिया है। ऐसे में यदि नीतीश कुमार ने इस बिल का पक्ष किया तो वे उन्हें के भी वोट नहीं देंगे। ऐसे में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने कह दिया कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इस बिल को मुस्लिमों के पक्ष में मानते हैं। वैसे भी इस बिल को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी है। इस बजट सत्र में बिल को फिर से पेश करने की तैयारी केंद्र सरकार की है। दरअसल पिछली बार जब केंद्र सरकार ने वक्फ बिल पेश किया तो जदयू और टीडीपी ने कुछ प्वाइंट में आपत्ति जता दी थी। केंद्र सरकार ने यह बिल केंद्रीय समिति के पास भेज दिया था।
विपक्ष के साथ ही घटक दलों के सुझाव भी मांगे गए थे। जानकारी मिल रही है कि इस बिल में विपक्ष के दिए गए सुझाव नहीं माने गए हैं। ऐसे में दिल्ली जंतर मंतर पर हुए प्रदर्शन में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ ही शिया और सुन्नी धर्मगुरु और विपक्ष के दलों के नेता भी इस आंदोलन में पहुंचे। इन नेताओं में सपा की ओर से धर्मेंद्र यादव, टीएमसी से महुआ मित्रा और असदुद्दीन ओवैसी मुख्य रूप से पहुंचे थे। एक सुर में चंद्रबाबू नायडू के साथ ही नीतीश कुमार को वक्फ संसोधन बिल के खिलाफ रहने की बात की गई। साथ ही चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को अल्टीमेटम दे दिया कि यदि उन्होंने इस बिल का विरोध नहीं किया तो मुसलमान उनकी पार्टी को एक भी वोट नहीं देगी। ऐसे में सबसे बड़ा दबाव तो नीतीश कुमार पर है। क्योंकि इसी साल ही बिहार में विधानसभा चुनाव हैं। नीतीश कुमार का चेहरा सेकुलर है। उनको वोट भी सेकुलर चेहरे पर ही मिलता है। दरअसल 2005, 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के मुख्यमंत्री बनने में मुस्लिम वोटबैंक का बड़ा योगदान रहा था।
हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट कम मिला पर आज भी उनकी मुस्लिमों में अच्छी खासी घुसपैठ है। ऐसे में यदि उनको वोट न देने का अल्टीमेटम दे दिया है तो समझा जा सकता है कि नीतीश कुमार यदि एनडीए में रहकर चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें मुस्लिम वोटबैंक नहीं मिलने जा रहा है। तो क्या नीतीश कुमार महागठबंधन में पलटी मारने जा रहे हैं। दरअसल सी वोटर में एनडीए में रहते हुए उन्हें 36-38 सीटें तो महागठबंधन में रहकर 70-75 सीटें दिखाई जा रही थी। ऐसे में एक बात तो लगभग स्पष्ट हो चुकी है कि अब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनने जा रहे हैं। एनडीए में रहते हैं तो भी और महागठबंधन में रहते हैं तो भी। एनडीए में उनको और तमाम ऑफर मिल सकते हैं पर मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। एनडीए में वह अपने बेटे निशांत को भी राजनीति में स्थापित नहीं कर पाएंगे। एनडीए में नीतीश कुमार राज्यपाल और उपराष्ट्रपति तक बन सकते हैं।
मुख्यमंत्री तो वह महागठबंधन में भी नहीं बनने जा रहे हैं। हां महागठबंधन में वह अपने बेटे निशांत को उप मुख्यमंत्री बना सकते हैं। महागठबंधन मुख्यमंत्री तो उन्हें तेजस्वी को ही बनाना पड़ेगा। वैसे भी नीतीश और लालू तो अब राजनीति के आखिरी पड़ाव पर हैं। ऐसे में दोनों ही नेताओं को अपने बेटों को राजनीति में एडजस्ट करना है। हालांकि जदयू के नेता महावीर कुशवाहा ने निशांत की जदयू में एंट्री पर बोला है कि यदि नीतीश भी अपने बेटे को ले आते हैं तो फिर लालू पर नीतीश में क्या अंतर रहा जाएगा।
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