मुस्लिमों को साधने के लिए खान सर पर दांव खेलेंगे नीतीश कुमार
TheNews 15
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खान सर का युवाओं में है बड़ा क्रेज
चरण सिंह
भले ही बिहार के लोगों की निगाहें चार विधानसभा सीटों पर हुए उप चुनाव पर टिकी हुई हों पर बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू को इतना मजबूत कर देना चाहते हैं कि विधानसभा चुनाव में वह फिर से अपने को साबित सकें। नीतीश कुमार जहां अपने बेटे निशांत कुमार को बिहार की राजनीति में लांच करने वाले हैं वहीं ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी करने वाले खान सर को भी जदयू में लाया जा रहा है। नीतीश कुमार चाहते हैं कि खान सर की युवाओं में जबर्दस्त लोकप्रियता को जदयू के लिए भुनाया जाए।
नीतीश कुमार जानते हैं कि उनकी सत्ता में मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा योगदान रहा है। जब आरजेडी के लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव सधी हुई राजनीति कर हे हैं। रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में अपना ठीकठाक वजूद बना लिया है। प्रशांत किशोर जन सुराज पार्टी बनाकर तेजस्वी यादव के साथ ही नीतीश कुमार को भी ललकार कर रहे हैं। उन्होंने मुस्लिम आबादी में मुस्लिमों को टिकट देने की बात कही है। 248 सीटों में से वह 47 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को उतरने की बात कर चुके हैं। उधर 2020 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल में 5 सीटें जीत चुके हैं। ऐसे में नीतीश कुमार के सामने मुस्लिम वोटों को हासिल करना बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि नीतीश कुमार खान सद पर दांव खेलना चाहते हैं। दरअसल खान सर की न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू युवाओं में भी ठीकठाक पकड़ है। ऐसे में खान सर को आगे कर वह विधानसभा चुनाव में एक बड़ा खेल करना चाहते हैं।
दरअसल बिहार में 13 करोड़ की जनसंख्या है औेर इमसें 82 फीसदी हिन्दू और 18 फीसदी मुस्लिम हैं। जहां तक मुस्लिम मतदाताओं की बात है तो 1970 तक मुस्लिम कांग्रेस से जुड़े रहे। 1971 में बांग्लादेश को आजादी मिलने के बाद मुस्लिम वोट कांग्रेस से छिटकना शुरू हो गया था। उसका बड़ा कारण यह था कि उर्दू भाषी बिहारी प्रवासियों की हत्याएं की जा रही थी। जेपी आंदोलन में मुसलमान जनता पार्टी में आ गये जब 1977 में कर्पूरी ठाकुर की सरकार बनी तो बिहार के मुस्लिम जनता पार्टी के साथ थे पर 1980 में फिर से कांग्रेस में चले गये। 90 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चला और लालू प्रसाद यादव ने लाल कृष्ण आडवाणी का रथ रोका तो मुस्लिम आरजेडी के साथ आ गये। एमवाई के बल पर लालू प्रसाद ने लंबे समय तक बिहार पर राज किया।
2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने पसमांदा मुसलमानों पर दांव खेला और बड़ी संख्या में मुस्लिमों का वोट जदयू को मिला। यह नीतीश कुमार की मुस्लिमों पर पकड़ ही थी कि 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद 44 फीसदी मुस्लिम जदयू को मिले। 2015 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटबैंक महागठबंधन को गया। 2017 में नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ आ जाने के बाद जब 2020 में विधानसभा चुनाव हुआ तो 77 फीसदी मुस्लिम वोटबैंक महागठबंधन पर गया। नीतीश कुमार को मात्र 11 फीसदी मुस्लिम वोट ही मिले। 2020 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटें असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी को मिली। अब जब 2025 में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो नीतीश कुमार मुस्लिम वोटबैंक को रिझाने के लिए खान सर को जदयू में लाना चाहते है। खान सर के चेहरे पर बिहार के मुस्लिम वोट हासिल करने की नीतीश कुमार की रणनीति है।
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