चरण सिंह
आज के विपक्ष के नेता कमजोर क्यों पड़ रहे हैं ? इसका बड़ा कारण आरामतलबी और आंदोलन से दूरी बनाना है। यूपीएससी छात्रों ने दिखा दिया कि योगी हो या मोदी आंदोलन के आगे तो झुकना ही पड़ेगा। जो सरकार छात्रों की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी। उन पर लाठीचार्ज करा रही थी। वही सरकार छात्रों के आंदोलन के आगे झुकी और उनकी मांगें मानी। अब यूपीएससी की परीक्षा एक दिन और एक शिफ्ट में ही होगी। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर छात्रों की मांगे मानी गई हैं। तो फिर लाठीचार्ज से पहले पहल क्यों नहीं की गई थी ?
दरअसल बीजेपी का पहला प्रयास डंडे के जोर पर आंदोलन को तुड़वाना होता है। जब समझ में आ जाता है कि मांगें न मानी गई तो फिर राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। फिर आंदोलनकारियों की बात मान ली जाती है। ऐसा ही किसान आंदोलन में हुआ था। यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए किसानों की मांगें मान ली गई थी। ऐसे ही अब जब 9 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव चल रहा है तो किसानों का आंदोलन उग्र होता देख उनकी मांग मान ली गई है।
देखने की बात यह है कि यह बात बीजेपी भी जानती है कि छात्रों के आंदोलन को जनांदोलन बनते देर नहीं लगती है। बीजेपी को भी ज्ञात है कि जब छात्रों के आंदोलन को प्रख्यात समाजवादी लोकनायक जयप्रकाश का साथ मिला था और उस आंदोलन ने जन आंदोलन का रूप ले लिया था। सत्तर के दशक में छात्रों के आंदोलन से शुरू हुए आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। आज की तारीख में छात्र आंदोलन करते रहें। लाठी डंडे खाते रहें। किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता। प्रयागराज में यूपीएससी के आंदोलित छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो नेताओं के बयान जरूर उनके पक्ष में आये पर सड़कों पर किसी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं उतरे।
सरकार उनकी सुनने को तैयार नहीं थी। विपक्ष की भूमिका में राजनीति कर रहीं मायावती पूरी तरह से केंद्र सरकार के दबाव में हैं। अखिलेश यादव ने भी मायावती की राजनीति करने का तरीका अपना लिया है। चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के कर्णधार जयंत चौधरी तो सत्ता के साथ हैं। उनसे डॉ. लोहिया की विचारधारा की उम्मीद तो नहीं की जा सकती थी कि अपने ही गठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल देते।
आंदोलनकारी नेता के रूप में दंभ भरने वाले चंद्रशेखर आज़ाद ने भी इन छात्रों की सुध नहीं ली। छात्रों ने अपने दम पर सरकार को झुकाया। ऐसी ही कुछ स्थिति कांग्रेस की है। योगी आदित्यनाथ भला छात्रों की मांग मानकर तब छोटे हो जाते पर अब छोटे नहीं हुए।
दरअसल बीजेपी ने मीडिया को हाईजैक कर देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि आंदोलन को लोग विपक्ष के रूप में लेने लगते हैं। नहीं तो यूपीएससी परीक्षा में जिस तरह से पर्चे लीक होते रहे और जिस तरह से छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है तो फिर लोग योगी सरकार को कटघरे में क्यों नहीं खड़े हो रहे थे ? क्यों नहीं विपक्ष को नसीहत दे रहे थे। क्या आजाद भारत में भी देश के नौनिहालों पर लाठीचार्ज होता रहेगा ? छात्रों के इस आंदोलन में क्या योगी आदित्यनाथ का गैर जिम्मेदाराना रवैया नहीं थे। यह बात जगजाहिर है कि डंडे दे दम पर ज्यादा दिन तक किसी आवाज दबाया नहीं जा सकता है। योगी आदित्यनाथ को यह समझ में आ गया कि यदि इन छात्रों को कोई जेपी मिल गया तो न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी दिक्कत खड़ी हो सकती है।
आज की तारीख में योगी आदित्यनाथ का बटेंगे तो कटेंगे का नारा बहुत गूंज रहा है। भले ही सीएम योगी और पीएम मोदी समाजवाद के प्रणेता डॉ. लोहिया की विचारधारा की दुहाई देते रहे हों पर छात्रों पर लाठीचार्ज होने का विरोध करने की किसी बीजेपी नेता में हिम्मत नहीं हुई। छात्रों के आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया तो उप चुनाव में नुकसान होने के अंदेशे के चलते छात्रों की मांग मान ली।