नई परम्परा

डॉ. प्रियंका ‘सौरभ’

विजय के पिता जी का स्वर्गवास हो गया था। उनके खानदान में परपरा थी कि स्वर्गवासी के फूलों (अस्थियों ) को गंगा जी में विसर्जित किया जाता था। वह अपने पिता की आत्मिक शांति के लिए हरिद्वार चल पड़ा। जैसे ही उसने हरिद्वार की भूमि पर कदम रखे उसके चारों ओर पण्डों की भीड़ जुट गई। हाँ, जी कौन-सी जाति के हो। कहाँ से आए हो ? किसके यहाँ जाओगे ? जैसे-जैसे प्रश्नों की संख्या बढ़ रही थी उसकी दुगुनी गति से पण्डों का हुजूम उमड़ रहा था। पिता की मौत के भार तले दबे विजय ने धीरे से बोलते हुए कहा, मुझे पण्डित गुमानी राम के यहाँ जाना है। उसके बड़े-बुजुर्ग कहा करते थे कि गुमानी राम जी उनके खानदानी पण्डित है।

इतने में भीड़ से एक पण्डे की आवाज आई- आइए मेरे साथ आइए, मैं उनका पौत्र हूँ। मैं ले चलता हूँ आपको गंगा घाट। आया हुआ पण्डा, विजय के हाथों से अस्थि-कलश लेकर उनके आगे-आगे चल पड़ा और वो उनके पीछे-पीछे। रास्ते में बतियाते हुए पण्डा बोला- एक हजार रूपये दान करना जी अस्थियां विसर्जित करने के लिए ताकि दिवंगत आत्मा को शांति मिल सके। ऐसी बात सुनकर विजय चौंका तो जरूर पर बिना कुछ कहे उसके साथ-साथ चलता रहा। पण्डे ने फिर से कहा, कहो जी दान करोगे ना। विजय ने उदासी पूर्ण भाव से कहा नहीं, मेरे पास इतने पैसे नहीं है। चलो कोई बात नहीं पिता की सद्गति के लिए कुछ तो दान करना ही पड़ेगा आपको। कुछ कम कर देंगे, पांच सौ रूपये तो होंगे आपके पास। विजय चुपचाप पण्डे की बात सुनता रहा। लगता है पिता पे तुम्हारी श्रद्धा बिल्कुल नहीं है। तुम्हारा कुछ तो कर्त्तव्य बनता है उनके लिए । जो कुछ था तुम्हारे लिए ही तो छोड़ गए बेचारे । अगर उसमें से थोड़ा हमें दान कर दोगे तो क्या जाता है तुहारा? विजय अब भी चुपचाप सुनते जा रहा था।

गंगा घाट बस बीस कदमों की दूरी पे था। पण्डा अपना आपा खो बैठा था ।बड़े निकम्मे पुत्र हो । मरे बाप की कमाई अकेले खाना चाहते हो। पण्डे की बेतुकी बातें सुनते-सुनते विजय का संयम टूट चुका था। उसने पण्डे के हाथों से अपने पिता का अस्थि-कलश छीन लिया था और पण्डे की ओर देखते हुए बोला- पिता जी मेरे थे। आप कौन होते है उसकी कमाई का हिस्सा मांगने वाले । मेरी श्रद्धा से मैं यहाँ आया हूँ और दान भी अपनी श्रद्धा से ही देता। पर अब तुम्हारी बातें सुनकर तो वो भी नहीं करूंगा और न ही आगे आने वाली पीढ़ियों को करने दूँगा। यह कहकर वह गंगा में उतर गया ।

मैया के जयकारे के संग एक नई परपरा बनाते हुए उसने पिता के फूल गंगा माँ की गोद में अर्पित कर दिये थे। वहीं दूसरी ओर किनारे खड़ा पण्डा इस ‘नई परपरा’ से अपना धन्धा चौपट होते देख रहा था।

  • Related Posts

    योगी आदित्यनाथ को छेड़ना मतलब मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना !

    चरण सिंह यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी…

    Continue reading
    फेसबुक या फूहड़बुक?: डिजिटल अश्लीलता का बढ़ता आतंक और समाज की गिरती संवेदनशीलता

    प्रियंका सौरभ जब सोशल मीडिया हमारे जीवन में…

    Continue reading

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    शब्द-संधान— भाषा की शुद्धता की साधना

    • By TN15
    • May 27, 2025
    शब्द-संधान— भाषा की शुद्धता की साधना

    तो अपने पिता के नाम पर पार्टी बनाएंगे तेज प्रताप यादव?

    • By TN15
    • May 27, 2025
    तो अपने पिता के नाम पर पार्टी बनाएंगे तेज प्रताप यादव?

    सभा व जनसंपर्क अभियान के माध्यम से किसान सभा गौतम बुध नगर कमेटी ने 29 मई को भारी संख्या में डीएम कार्यालय सूरजपुर पहुंचने की क्षेत्र के लोगों से की अपील

    • By TN15
    • May 27, 2025
    सभा व जनसंपर्क अभियान के माध्यम से किसान सभा गौतम बुध नगर कमेटी ने 29 मई को भारी संख्या में डीएम कार्यालय सूरजपुर पहुंचने की क्षेत्र के लोगों से की अपील

    बीएसएफ ने तबाह कर दी थी पाकिस्तान की 72 चौकियां!

    • By TN15
    • May 27, 2025
    बीएसएफ ने तबाह कर दी थी पाकिस्तान की 72 चौकियां!

    योगी आदित्यनाथ को छेड़ना मतलब मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना !

    • By TN15
    • May 27, 2025
    योगी आदित्यनाथ को छेड़ना मतलब मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना !

    विशेष सत्र के लिए टीएमसी सांसद ने पीएम मोदी को लिखा पत्र

    • By TN15
    • May 27, 2025
    विशेष सत्र के लिए टीएमसी सांसद ने पीएम मोदी को लिखा पत्र