राष्ट्रीय उपकार संयुक्त मोर्चा ने सहारा के खिलाफ खोला चौतरफा मोर्चा

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देश की राजधानी दिल्ली में खोला राष्ट्रीय कार्यालय
दिल्ली में हुई कोर कमेटी की बैठक में प्रदेश, जिला, ब्लॉक स्तर पर भी कार्यालय खोलने का लिया गया निर्णय
जनसेवा ड्राईवर पार्टी ने मोर्चा को समर्थन देकर लिया संयुक्त रूप से लड़ाई लड़ने कर निर्णय

द न्यूज 15
नई दिल्ली। सहारा पीड़ितों और ड्राइवरों की लड़ाई लड़ने के लिए जनसेवा ड्राईवर पार्टी ने राष्ट्रीय उपकार संयुक्त मोर्चा को समर्थन दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तजेंद्र सिंह ने मोर्चे में शामिल होकर संयुक्त रूप से लड़ाई लड़ने का आह्वान किया है। इस लड़ाई लड़ने के लिए देश की राजधानी में एक बैठक आयोजित कर केंद्रीय कार्यालय खोलने का निर्णर लिया गया है।
इस अवसर पर राष्ट्रीय उपकार संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव दिल्ली के अध्यक्ष तजेंन्द्र सिंह ने कहा कि लड़ाई लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर, जिला स्तर, ब्लॉक स्तर तक कमेटी बनानी होगी। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश चंद्र दिवाकर की उपस्थिति में केंद्रीय कार्यालय के साथ ही प्रदेश, जिला और ब्लाक कार्यालय खोलने का निर्णय लिया गया। इस अवसर पर निर्णय लिया गया कि मोर्चे के पदाधिकारी देश में एक जनसंपर्क अभियान चलाएंगे। इस अभियान में सहारा पीड़ितों और पीड़ित ड्राईवरों को जोड़ा जाएगा। बैठक में दिल्ली और एनसीआर में संगठन को मजबूती देने के लिए युद्ध स्तर पर काम करने की रणनीति बनाई गई। दिल्ली एनसीआर में संगठन बनाने की जिम्मेदारी भी दिल्ली के प्रभारी तजेंद्र सिंह को सौंपी गई है।  बैठक में मुख्य रूप से  कोर कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश चंद्र दिवाकर, राष्ट्रीय मुख्य महासचिव राधेश्याम सोनी, दिल्ली प्रदेश प्रभारी तजिंदर सिंह , राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष विजय वर्मा, उत्तर प्रदेश अध्यक्ष आरिफ खान के अलावा काफी कार्यकर्ता मौजूद थे।
दरअसल गत तीन दिन से सहारा पीड़ित दिल्ली के जंतर-मंतर पर डटे हुए हैं। इस बीच में पुलिस ने इन आंदोलनकारियों को गिरफ्तार भी किया और छोड़ भी दिया। सहारा के खिलाफ लड़ी जा रही इस लड़ाई में दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के सहारा पीड़ित आये हुए हैं। ३१ जनवरी  से जंतर-मंतर पर ठगी करने वाले कंपनियों के खिलाफ संसद सत्याग्रह चल रहा है। सहारा पीड़ित सहारा पर दो लाख करोड़ से ऊपर का भुगतान बता रहे हैं और सहारा निवेशकों को पाई-पाई चुकाने की बात कर रहा है। इस लड़ाई में सहारा कर्मचारी भी शामिल हैं। कुछ कर्मचारी अपने भुगतान को लेकर आंदोलन कर रहे हैं तो कुछ सेबी पर सहारा का बकाया भुगतान बताकर सेबी के खिलाफ सड़कों पर उतरे हुए है। सहारा के खिलाफ चल रही इस लड़ाई ने एक अजीब रंग ले लिया है। सहारा के खिलाफ निवेशक हैं तो सहारा सेबी के खिलाफ है और सेबी सहारा के खिलाफ । सहारा संवैधानिक तंत्रों के सहयोग न करेन की बात कर रहा है तो निवेशक सहारा पर संवैधानिक तंत्रों को ठेंगा दिखाने की बात कर रहे हैं। कुल मिलाकर देशभर से जहां सहारा कार्यालयों में धरना-प्रदर्शन कर खबरें आ रही हैं वहीं सहार निवेशकों और जमाकर्ताओं की आत्महत्या करने की खबरें मार्केट मे आ रही है। सहारा कार्यालयों में कर्मचारियों को कई-कई महीने तक वेतन न मिलने का रोना अलग से है। सहारा में जहां अब पैराबैंकिंग में आंदोलन चल रहा वहीं गत २०१५-१६ में सहार मीडिया में बड़ा आंदोलन हो चुका है। सहारा के खिलाफ जहां पैराबैंकिंग से जुड़े कर्मचारियों ने विभिन्न मुकदमे दर्ज करा रखे हैं वहीं प्रिंट मीडिया में मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ी जा रही है। एक समय राजनीतिक नेताओं, बालीवुड और नौकरशाह का उंगली पर नचाने वाले सुब्रत राय आज संकट में है। राजनीतिक दलों के साथ मिलीभगत और पुराने गठजोड़ के चलते सुब्रत राय ने सहारा की किसी संपत्ति की नीलामी नहीं होने दी है।

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