हालांकि मुनीर को घेरने में हमारी सरकार कहीं न कहीं चूक गई। जहां तक असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने की बात है तो शाहनवाज शरीफ का तख्तापलट होने से तो अच्छा है कि मुनीर को फील्ड मार्शल ही बना दिया। वैसे भी आज की तारीख मुनीर पाकिस्तान में सबसे अधिक ताकतवर हैं।
दरअसल जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोट करने का पाकिस्तान सरकार का फैसला एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। जनता मुनीर से बहुत नाराज है इसके विद्रोह को रोकने में कितनी सफलता मिलेगी, यह कई कारकों पर निर्भर करता है।
पृष्ठभूमि और प्रमोशन का कारण
पाकिस्तान कैबिनेट ने 20 मई को जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने का फैसला किया जो पाकिस्तान में 1960 के बाद पहली बार किसी सैन्य अधिकारी को इस सर्वोच्च रैंक से सम्मानित करने का मामला है। यह प्रमोशन भारत के साथ हाल के सैन्य तनाव, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर और मार्क-ए-हक के दौरान मुनीर की “उत्कृष्ट नेतृत्व” और “रणनीतिक सफलता” के लिए बताया गया। हालांकि, कई विश्लेषकों और सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे युद्ध में हार को छिपाने और मुनीर की सत्ता को मजबूत करने की रणनीति के रूप में देखा।
पाकिस्तान में विद्रोह की स्थितिसैन्य असंतोष : मार्च 2025 में जूनियर अधिकारियों ने मुनीर के खिलाफ खुला पत्र लिखकर उनके इस्तीफे की मांग की थी। खबरें थीं कि 72 घंटों में 1,450 सैनिकों (250 अधिकारियों सहित) ने इस्तीफा दे दिया और लेफ्टिनेंट जनरल उमर अहमद बुखारी ने सेना में कमजोर मनोबल की बात कही। हालांकि, पाकिस्तानी सेना ने इन दावों को “भारतीय प्रचार” करार दिया।राजनीतिक अशांति: पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई ने मुनीर की नीतियों और सैन्य हस्तक्षेप की कड़ी आलोचना की है।
क्षेत्रीय विद्रोह : बलूचिस्तान में स्वतंत्रता की मांग तेज हो रही है और खैबर-पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के हमले बढ़ रहे हैं। पंजाब और सिंध में भी असंतोष बढ़ रहा है, विशेष रूप से इमरान खान की गिरफ्तारी और आर्थिक संकट के कारण।
आर्थिक संकट: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है, और सरकार को हर महीने नए कर्ज की जरूरत पड़ रही है। यह स्थिति जनता के बीच असंतोष को और बढ़ा रही है।प्रमोशन का विद्रोह पर प्रभाव
सैन्य मनोबल और एकता: सरकार का दावा है कि मुनीर का प्रमोशन सेना की एकता और मनोबल को बढ़ाएगा। आधिकारिक बयान में कहा गया कि मुनीर ने “पाकिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता” की रक्षा की। लेकिन सेना के भीतर असंतोष, विशेष रूप से जूनियर अधिकारियों और सैनिकों के बीच, इस प्रमोशन से शांत होने की संभावना कम है, क्योंकि इसे सत्ता की भूख और हार को छिपाने की चाल माना जा रहा है।
राजनीतिक स्थिरता: मुनीर का प्रमोशन प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की कमजोर स्थिति को और उजागर करता है। संसद में शरीफ को “बुजदिल” कहा गया, और उनकी सरकार पर सैन्य दबाव स्पष्ट है। मुनीर की बढ़ती ताकत तख्तापलट की आशंकाओं को बल दे रही है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ सकती है।
जनता का गुस्सा: सोशल मीडिया पर #MunirOut और #ResignAsimMunir जैसे ट्रेंड दिखाते हैं कि जनता का एक बड़ा हिस्सा मुनीर के खिलाफ है। पहलगाम हमले और भारत के साथ युद्ध में हार के बाद उनकी आलोचना तेज हुई। प्रोमोशन को जनता द्वारा “हार का इनाम” माना जा रहा है, जिससे विद्रोह और असंतोष बढ़ सकता है।
क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: मुनीर की कट्टर धार्मिक बयानबाजी और भारत के खिलाफ आक्रामक रुख ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को नुकसान पहुंचाया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उनकी परमाणु धमकियों पर चर्चा की, और अमेरिकी विशेषज्ञ माइकल रुबिन ने उन्हें आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला बताया। यह प्रमोशन विदेशी समर्थन को और कम कर सकता है, जिससे आर्थिक और राजनीतिक संकट गहरा सकता है।
क्या विद्रोह रुक सकता है?
मुनीर का फील्ड मार्शल बनना विद्रोह को रोकने में शायद ही प्रभावी हो, बल्कि यह स्थिति को और जटिल कर सकता है :सेना के भीतर : प्रमोशन से कुछ वफादार अधिकारियों का समर्थन मिल सकता है, लेकिन जूनियर अधिकारियों और सैनिकों का असंतोष बना रहेगा, क्योंकि वे इसे हार का पुरस्कार मानते हैं। राजनीतिक दलों और जनता: इमरान खान और पीटीआई जैसे विपक्षी दलों का गुस्सा और बढ़ेगा। सोशल मीडिया पर #MunirOut जैसे ट्रेंड और तख्तापलट की आशंकाएं सरकार की स्थिरता को कमजोर करेंगी।
क्षेत्रीय विद्रोह : बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा में विद्रोह पर इस प्रमोशन का कोई सीधा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि ये क्षेत्रीय मांगें सैन्य नेतृत्व से ज्यादा स्वायत्तता और आर्थिक सुधारों से जुड़ी हैं। आर्थिक संकट: प्रमोशन से आर्थिक स्थिति पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, जो जनता के असंतोष का प्रमुख कारण है।