हनुमान चालीसा पढ़ते ब्रिज पार करते लोग
दीपक कुमार तिवारी
एक फिल्मी गाने का ये मुखड़ा आपने जरूर सुना होगा- दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा। बिहार में पुल-पुलियों और डायवर्सन के गिरने-ढहने का सिलसिला जिस तरह शुरू हुआ है, उस पर गीत का ये मुखड़ा सटीक बैठता है। बिहार में पहले भी कई पुल धराशायी हुए हैं, मगर पिछले पखवाड़े भर से राज्य के अलग-अलग हिस्सों में नदियों पर बने पुलों को ध्वस्त होते देख कर तो यही लगता है कि भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़े इन पुलों ने आत्मग्लानि में ही जल समाधि ले ली। अभी तक की सूचनाओं से पता चलता है कि करीब डेढ़ दर्जन पुल नदियों की कोख में समा गए हैं।
पुल ध्वस्त हो रहे। जिस रफ्तार और अंदाज में पुल धराशायी हो रहे, उतना तो बिहार में किसी निराश-हताश प्रेमी का दिल भी नहीं टूटा या टूटता होगा। पुलों के ध्वस्त होने के पहले इनके बनने की कहानी जानना जरूरी है। ये बात तो सभी जानते और मानते हैं कि लालू यादव और राबड़ी देवी के राज में बिहार राज्य पुल निर्माण निगम कैसे नाकारा हो गया था। पुल निगम के दफ्तरों में भूतहा सन्नाटा पसरा रहता था। वर्ष 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता संभालते ही बिहार में पुल-महापुल निर्माण ने रफ्तार पकड़ी। लोग खुश हुए। नीतीश को सुशासन बाबू तक कहने लगे। उनके शासन को सुशासन राज कहा जाने लगा। मगर, किसे पता था कि लोगों के मन में नीतीश के सुशासन में भ्रष्टाचार बरगद की तरह न सिर्फ जड़ें जमा रहा है, बल्कि ऊपर भी उनका फैलाव उसी गति से हो रहा है। सरकारी अफसरों की देखरेख में ही ठेकेदार पुलों का निर्माण कराते रहे हैं। निर्माण सामग्री घटिया है या उम्दा, इसके बारे में जब जनप्रतिनिधियों के बोलने की मनाही थी तो आम आदमी को कौन पूछता है? लोग तो इसी में खुश थे कि पुल बन रहे हैं तो अब उन्हें सहूलियत होगी। मगर, उनके विश्वास पर भ्रष्टाचार के पायों पर खड़े इन पुलों ने ध्वस्त होकर पानी फेर दिया। अभी दो डेढ़ दर्जन ही छोटे-बड़े पुल टूटे हैं। बारिश का यह पहला असर है। अभी बरसात पूरी बाकी है। आगे और कितने पुल शहीद होंगे, कहना मुश्किल है।
खैर, जो पुल अभी बचे हैं, उन पर आवाजाही चालू है। लेकिन, किसी भी पुल से गुजरने से पहले लोग हनुमान चालीसा का पाठ कर लेते हैं। यहां तक कि पुल से गुजरते वक्त भी वे अपने आराध्य पर ध्यान लगाए रहते हैं। हमेशा ये भय बना रहता है कि उफनती नदी पर बना पुल कहीं ध्वस्त न हो जाए। बुधवार की बरसात तो सारण प्रमंडल के पुलों पर कहर बन कर बरसी। एक दिन में सारण और सिवान जिले में पांच पुल ध्वस्त हो गए। गुरुवार को भी ये सिलसिला नहीं रुका। शुक्रवार को क्या होगा, इस आशंका में लोगों को चिंता बनी हुई है। भय का आलम देखिए कि पुणे से लौटी एक लड़की पुलों के ध्वस्त होने की खबर पढ़ कर सारण जिले के एक पुल पर चढ़ने से पहले थरथरा गई थी कि कहीं बीच राह में ही ये पुल ध्वस्त न हो जाए। कमजोर दिल वाला कोई व्यक्ति ऐसा सोच कर पुल पर चढ़े तो उसके दिल की धड़कनें रुकने के खतरे को खारिज नहीं किया जा सकता।
नीतीश कुमार ईमानदार हैं, इसमें किसी को कोई शक नहीं। वे बिहार का विकास चाहते हैं और विकास के काम करते भी हैं, इसमें भी कोई संदेह नहीं। मगर, उनके अफसर भ्रष्ट और बेईमान हैं, ये तो अब हर आदमी कहने लगा है। ऐसे अफसरों के खिलाफ सरकार की कोई ऐसी सख्त कार्रवाई भी नहीं दिखती, जिससे लोगों के मन में ये भरोसा जगे कि नीतीश कुमार की ईमानदारी पर सवाल खड़ा न किया जा सके। ये तो शुक्र मनाइए कि पुलों के ध्वस्त होने की जितनी घटनाएं हुई हैं, उनमें जान-माल की कोई क्षति नहीं हुई है। जिस तरह आदमी की आबादी बढ़ रही है, वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसमें कोई बड़ी घटना हो जाए तो आश्चर्य की बात नहीं।
नीतीश ने अपने अफसरों को खुली छूट दे दी है कि वे कुछ भी करें, उन्हें कोई टोकने वाला नहीं है। वे रिश्वत लें, घटिया सामग्री का इस्तेमाल करें, कोई पूछने वाला नहीं है। कोई टोके तो उन्हें किसी की सुनने की जरूरत नहीं। इसी का फल है कि आज बिहार की नौकरशाही बेलगाम है। जनप्रतिनिधियों ने भी अब बोलना-टोकना छोड़ दिया है। सिर्फ विपक्षी यदा-कदा शोर मचाते हैं। मगर, जब नीतीश अपने लोगों की सुनने को तैयार नहीं तो विपक्ष के शोरगुल का उन पर क्या असर पड़ने वाला है?
बिहार में बने पुल सिर्फ ध्वस्त ही नहीं हो रहे, बल्कि इनकी चोरी भी होती रही है। पुराने पुलों के लोहे के लालच में चोर कभी पुल निर्माण निगम के अधिकारी बन कर आते हैं तो कभी नए निर्माण की बात कह कर पुल काट कर आराम से ट्रकों पर लाद कर रफ्फू चक्कर हो जाते हैं। बिहार में किसी की मजाल है कि इन पुल चुराने वालों को पकड़ पाए। पुलों की चोरी भी किसी एक इलाके में नहीं होती है। पुल चोरी को देख कर लगता है कि इनका कोई संगठित गिरोह बिहार में सक्रिय है, जिसे पकड़ पाना आसमान से तारे तोड़ने के बराबर है।