
सियासी गलियारों में हलचल तेज
पटना। दीपक कुमार तिवारी।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अब जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया है, जो आज़ादी के बाद देश में पहली बार होने जा रहा है। सरकार का तर्क है कि इससे वंचित तबकों को सटीक आंकड़ों के आधार पर विकास योजनाओं में समान भागीदारी मिल सकेगी। लेकिन इस कदम को लेकर राजनीतिक हलकों में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को जातीय राजनीति के चलते हुए नुकसान से सबक लेते हुए अब पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उसी रणनीति को अपना रही है। भाजपा का लक्ष्य इस बार बिहार में 225+ सीटें जीतने का है। वहीं, विपक्षी महागठबंधन पहले से ही सामाजिक न्याय के एजेंडे पर चुनावी मैदान में डटा हुआ है।
राजद नेता शक्ति यादव ने भाजपा की रणनीति पर तीखा हमला करते हुए कहा, “यह बिहार है, और यहां राजद है। भाजपा ने धर्म की राजनीति का थर्मामीटर लगाकर देख लिया है कि वह यहां नहीं चलेगी। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में दलित और वंचित वर्गों का भरोसा राजद पर है। ‘नया बिहार, तेजस्वी सरकार’ का सपना अब जनसंकल्प बन चुका है।”
गौरतलब है कि आरएसएस, जो पहले जातीय जनगणना के पक्ष में नहीं था, अब इस पर समर्थन देता दिख रहा है। सितंबर 2024 में पलक्कड़ में हुई संघ की समन्वय बैठक में संघ प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने इसे राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से ज़रूरी बताया था।
विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा अब धर्म की राजनीति से उतरकर जातीय समीकरणों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। राजद सुप्रीमो लालू यादव पहले ही कह चुके हैं कि वे “कान पकड़ कर” जातीय जनगणना कराएंगे और आरक्षण की नई व्यवस्था लागू करवाएंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, आने वाला बिहार विधानसभा चुनाव जातीय समीकरण, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता बनाम राष्ट्रवाद की राजनीति के बीच टकराव का प्रमुख केंद्र बन सकता है।