चरण सिंह
जिस तरह से दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। जिस तरह से बिहार में कांग्रेस ने स्ट्राइक रेट पर टिकट बंटवारे की बात कर दी है। सरकार बनने पर कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री होने की मांग की है। जिस तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी से नाराज हैं। जिस तरह से चिराग पासवान के करीबी हुलास पांडेय के घर पर ईडी के छापे पड़े हैं। जिस तरह से गत दिनों टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन को लीड करने की बात कर चुकी हैं। जिस तरह से पहले समाजवादी और फिर आरजेडी ममता के नाम पर मुहर लगा चुकी हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि क्षेत्रीय दल मिलकर तीसरा मोर्चा बना सकते हैं। यह मोर्चा बिहार में तो बीजेपी खतरा बनेगा ही साथ ही केंद्र भी खतरा बन सकता है।
दरअसल एक देश एक चुनाव को लेकर क्षेत्रीय दलों को लगने लगा है कि यदि 2029 में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव करा दिए गए तो उनका वजूद धीरे धीरे खत्म होना शुरू हो जाएगा। क्योंकि एक देश एक चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे चुनाव पर हावी होंगे। ऐसा भी नहीं कि विपक्ष के क्षेत्रीय दल ही इस मामले के विरोध में हैं। सत्तारूढ़ क्षेत्रीय दल भी बखूबी समझ रहे हैं कि एक देश एक चुनाव से वे भी कहीं के नहीं रहेंगे।ऐसे में न केवल नीतीश कुमार विभिन्न कारणों से बीजेपी से नाराज हैं बल्कि चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान, एकनाथ शिंदे, अजित पवार, जयंत चौधरी समेत बीजेपी के दूसरे सहयोगी दलों के मुखिया भी एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर बीजेपी से अलग राय रखते हैं।
नीतीश कुमार यदि इंडिया गठबंधन में जाते हैं तो फिर यह मानकर चलिए कि चिराग पासवान, चंद्रबाबू नायडू, जयंत चौधरी, एकनाथ शिंदे से भी बीजेपी को खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में क्षेत्रीय दल तीसरे मोर्चे का रूप धारण कर सकते हैं। दरअसल खुद कांग्रेस भी अब क्षेत्रीय दलों से पीछा छुड़ाने की फ़िराक में है। ऐसे में दलों की लामबंदी न केवल बिहार बल्कि केंद्र भी भी बड़ा खेल कर सकती है। दरअसल यह माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को फिर से क्षेत्रीय दल विपक्ष की लामबंदी करने के लिए मना सकते हैं। लालू प्रसाद तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए नीतीश कुमार को तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनवा सकते हैं। इसमें दो राय नहीं कि यदि क्षेत्रीय दल एकजुट हो जाते हैं तो फिर केंद्र की सरकार के लिए भी खतरा बन सकते हैं।