जदयू को टिकट मिलने से बीजेपी पर बढ़ेगा नीतीश का दबाव, बीजेपी के लड़ने और जीतने से खतरे में पड़ जाएगा नीतीश का राजनीतिक भविष्य
आरजेडी के जीतने पर नीतीश की बल्ले बल्ले
चरण सिंह
नीतीश कुमार बैरंग पटना लौट गए हैं। उनकी मुलाक़ात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह से तो क्या होती राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी नहीं हो पाई है। बीपीसी पर हुए लाठचार्ज का तो बहाना है उन्हें दिल्ली में कोई भाव नहीं मिला है। दिल्ली में ज्यादा फजीहत न हो इसलिए वह पटना लौट गए हैं कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बिहार पहुंचते ही नीतीश कुमार उनसे मिलने वहां पहुंच गए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या नीतीश कुमार बिना प्रधानमंत्री के मिले मान गए हैं ? क्या नीतीश कुमार समय आने पर बीजेपी को झटका देने वाले हैं।
दरअसल 23 जनवरी को आरजेडी से एमएलसी रहे सुनील कुमार सिंह की सदस्यता रद्द हो जाने के बाद खाली हुई इस सीट पर उप चुनाव होने जा रहे हैं। 6 जनवरी को नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। 13 जनवरी नामांकन की अंतिम तारीख है। 16 जनवरी को नामांकन वापस लेने की तारीख है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि इन विधानसभा चुनाव में पता चल जाएगा कि नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर का क्या होने वाला है। यदि इस सीट पर एनडीए को लड़ाता है तो यह माना जाएगा कि नीतीश कुमार की नाराजगी काम कर रही है। यदि इस सीट पर बीजेपी अपना प्रत्याशी लड़ाती है तो और वह प्रत्याशी जीतता है तो यह माना जाएगा कि नीतीश कुमार ने आत्मसमर्पण कर दिया है और वह मुख्यमंत्री नहीं बनने जा रहे हैं। यदि नीतीश कुमार आरजेडी के प्रत्याशी को जितवा देते हैं तो यह माना जाएगा कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में बड़ा खेला करने जा रहे हैं।
दरअसल गृह मंत्री अमित शाह के एक निजी चैनल को इंटरव्यू देने के दौरान उन्होंने जब यह कह दिया कि बिहार के मुख्यमंत्री का निर्णय बीजेपी का संसदीय बोर्ड तय करेगा तो नीतीश कुमार नाराज हो गए थे। उन्होंने अपनी नाराजगी उस रूप में दर्ज की थी कि जब सभी सहयोगी दल अमित शाह के बाबा साहेब पर दिए बयान का बचाव कर रहे थे तो नीतीश कुमार अपनी प्रगति यात्रा के पूर्वी चम्पारण में बाबा साहेब की तस्वीर पर नमन कर अमित शाह के बयान के प्रति नाराजगी जताई थी। पर दिल्ली में उनको कोई भाव बीजेपी नेतृत्व ने नहीं दिया है।
दरअसल खुद जदयू के सेकेंड लाइन के नेता नहीं चाहते कि नीतीश कुमार सीएम बने। ललन सिंह और संजय कुशवाहा चाहते हैं कि सीएम तो जदयू का बने पर नीतीश कुमार न बनें। मतलब उनमें से कोई बने। ऐसे में नीतीश कुमार के सामने चुनौती यह भी है कि यदि वह कोई दांव चलते हैं तो फिर जदयू में टूट हो सकती है। उनके सांसद भी तोड़ लिए जाएं। अब देखना होगा कि नीतीश कुमार एमएलसी चुनाव में क्या करने वाले हैं ?