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Majithia Veg Board : दैनिक जागरण लुधियाना के बर्खास्त कर्मी 40 फीसदी बकाया वेतन के साथ बहाल!

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देश का नम्बर 1 अखबार होने का दावा करने वाले दैनिक जागरण के कुछ मैनेजर और लीगल डिपार्टमेंट के लोगों ने मालिक संजय गुप्ता को झूठे सपने दिखाकर उन्हें नीचा दिखाने का कर ही दिया। दरअसल दैनिक जागरण के कर्मचारियों ने मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर हुए टर्मिनेशन के मामले में जीत दर्ज की, जागरण के मालिक संजय गुप्ता को हार का सामना करना पड़ा। वर्कर जहां इस आदेश के बाद खुश हैं, वहीं जागरण प्रबंधन मातम मना रहा है।

दरअसल गत दिनों दैनिक जागरण प्रबंधन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे मजीठिया क्रांतिकारियों के लिए अच्छी खबर आ गई थी। लुधियाना में चल रहे टर्मिनेशन के मामलों में लेबर कोर्ट ने अपना लिखित फैसला दे दिया है। हालांकि कोर्ट ने 29 जुलाई को ही फैसला सुना दिया था, मगर लिखित आर्डर अब प्राप्त हुआ है। इसमें कोर्ट ने जागरण प्रबंधन द्वारा हड़ताल का आरोप लगाकर एकतरफा जांच में बर्खास्त किए गए कर्मचारियों को आईडी एक्ट की धारा 33(2)(बी) का लाभ देते हुए उन्हें 40 फीसदी वेतन के साथ नौकरी पर बहाल करने का आदेश सुनाया है।

इस मामले में चालीस पन्नों की जजमेंट में कोर्ट ने दैनिक जागरण प्रबंधन को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33 के प्रावधानों का उल्लंघन करने का दोषी मानते हुए प्रबंधन द्वारा जांच के बाद की गई कर्मचारी बर्खास्तगी को सिरे से ही अवैध माना है और जांच रिपोर्ट को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पाया कि जब दैनिक जागरण प्रबंधन ने श्रमिकों के खिलाफ जांच के बाद उनको नौकरी से बर्खास्तगी की कार्रवाई की, तब श्रमिकों का विवाद समझौता अधिकारी के समक्ष लंबित था और उपरोक्त एक्ट की धारा 33(2)(बी) के प्रावधान के अनुसार कर्मचारियों को बर्खास्त करने से पहले समझौता अधिकारी से लिखित तौर पर इसकी इजाजत लेना जरूरी था। इसके बिना प्रबंधन द्वारा किसी कर्मचारी की सेवाओं को समाप्त करने की कार्रवाई सिरे से अवैध व अनुचित मानी जाती है।

इस मामले में माननीय श्रम न्यायालय ने इसी धारा के प्रावधानों का विस्तार से वर्णन करते हुए प्रबंधन की चूक को अवैध मानते हुए जांच अधिकारी की कार्यवाही और इसके बाद बर्खास्तगी के आदेशों को अवैध मानते हुए कर्मचारियों को उनकी सेवा पर पुन-स्थापित करने का निर्णय सुनाया है। हालांकि प्रबंधन ने लुधियाना यूनिट बंद होने का हवाला देने हुए नौकरी पर बहाली का विरोध किया था, मगर कोर्ट ने वैध साक्ष्यों व कोर्ट के समक्ष की गई कार्यवाही में इसका उल्लेख ना होने के चलते इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कर्मचारियों को पिछले छह साल से बेरोजगार पाते हुए उन्हें बकाया वेतन देने का आदेश दिया है। यह आदेश आर्डर जारी करने की तिथि से  तीन माह के अंदर लागू करने होंगे। अगर ऐसा नहीं किया, तो जागरण को बकाया राशि पर छह फीसदी ब्याज भी देना होगा।