Mahendra Singh Tikait Jayanti : जमीनी संघर्ष ने महेंद्र टिकैत को बना दिया था ‘महात्मा’

चौधरी अशोक बालियान

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले का एक गांव है सिसौली। इसी गांव में बालियाना खाप के मुखिया चौधरी चौहल सिंह के घर आज ही के दिन 6 अक्टूबर 1935 को जन्मे थे चौधरी महेन्द्र सिंह। जब महेन्द्र सिंह बहुत छोटे थे, तभी असमय उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया। सर्व खाप पंचायत ने महेन्द्र सिंह को तिलक (टीका लगाना) करके बालियान खाप का चौधरी बना दिया। इस प्रकार वह बालक महेन्द्र सिंह टिकैत से चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत बन गए। आज उनकी जयंती पर पूरे देश में जगह-जगह आयोजन हो रहे हैं। सबसे बड़ा आयोजन तो उनके गांव सिसौली में ही हो रहा है। यहां उनकी याद में ‘किसान मजदूर अधिकार दिवस’ मनाया जा रहा है।

आप जानते ही हैं कि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसान आन्दोलन से पहले भी अनेक किसान आन्दोलन हुए थे। 17वीं सदी में भी किसानों ने मुगल राज्य के विरुद्ध बगावत कर दी थी। इसके बाद किसान आन्दोलन अंग्रेजों के विरूद्ध किये गए थे। लेकिन, भारत में किसान आन्दोलन को चौधरी टिकैत ने एक नई दिशा दी और सरकार को किसान की चौखट पर आने को अनेक बार मजबूर किया। मुझे चौधरी टिकैत के जीवन पर आधारित अपनी पुस्तक ‘किसान आन्दोलन में चौधरी टिकैत की भूमिका’ लिखने के समय उनके साथा काम करने का अवसर मिला। वह बेहद सरल और ईमानदार किसान नेता थे, परन्तु अपने अक्खड़पन के लिए भी जाने जाते थे। तब भारत के अनेक प्रधानमंत्रियों को भी किसानों की बात सुनने के लिए किसान राजधानी सिसोली आना पड़ा था।


चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में 80 के दशक में सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार, बिजली के दाम में बढ़ोतरी और किसानों को उनकी फसलों का मूल्य न मिलने के खिलाफ एक गैर-राजनैतिक किसान आंदोलन खड़ा हुआ था। अगर चौधरी टिकैत के संघर्ष को गौर से देखें तो पाएंगे कि उनके आंदोलन का मुख्य मुद्दा फसलों के वाजिब दाम था। विभिन्न मंचों एवं आन्दोलनों के माध्यम से चौधरी टिकैत जीवनपर्यन्त किसानों के इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाते रहे। क्योंकि देश में गन्ना, गेहूं, धान, रबड, कपास, जूट, आलू, टमाटर और नारियल समेत कई कृषि उत्पाद को किसान लागत मूल्य से कम कीमत पर बेचने को मजबूर रहते है। चौधरी टिकैत के समय में दुनियाभर के समाचार पत्रों ने किसानों के शोषण, उनके साथ होने वाले सरकारी अधिकारियों के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और किसानों के संघर्ष को अपने पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जीवन किसान आंदोलन के गौरवमयी इतिहास और विखंडित वर्तमान को समझने में मदद देता है। भारतीय राजनीति के शिखर पर चौधरी टिकैत का उदय अस्सी के दशक में हुआ। बिजली की दरों के मुद्दे पर वीर बहादुर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को झुकाकर टिकैत ने अपना सिक्का जमाया था। चौधरी टिकैत का ठेठ गंवई व्यक्तित्व और किसी भी दबाव या लालच से ऊपर रहने की उनकी क्षमता से बने व्यक्तित्व ने 1988 में बोट क्लब पर हुए ऐतिहासिक धरने को संभव बनाया था। उससे बड़ा धरना दुनिया के इतिहास में कभी नहीं दिया गया था। कुछ दिन के लिए ही सही, ऐसा लगा जैसे ‘भारत’ ने ‘इंडिया’ को उसकी औकात बता दी हो। अस्सी के दशक के तमाम किसान आंदोलनों के चरमोत्कर्ष का प्रतीक बना यह धरना भारतीय राजनीति में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था।

आज किसान और किसानी के सामने एक अभूतपूर्व संकट मुंह बाये खड़ा है, लेकिन देश की राजनीति में इसकी गूंज कहीं सुनायी नहीं पड़ती। चौधरी टिकैत और श्री नंजुंदास्वामी के वारिस किसान राजनीति में किस सफलता तक जायेंगे, यह अभी भविष्य के गर्त में है। अस्सी के दशक में ट्रैक्टरों से दिल्ली को घेरने का दुस्साहस रखने वाला किसान आज खुद घिरा बैठा उसी दिल्ली को फिर से चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की तरह घेरने कि उम्मीद लगाये हुए है।

किसान आंदोलन की इस दशा की पड़ताल करने पर हम चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसान आंदोलन से सीखते हैं कि वह आन्दोलन मुख्य रूप से खेती की लागत और उपज के मूल्य के सवालों पर केंद्रित था। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह था कि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के जाने के बाद विकास के वर्तमान ढांचे में क्या किसान को कभी न्याय मिल पायेगा। किसानी को बचाने की मुहिम को गांव के पुनरोद्धार से कैसे जोड़ा जाये? किसान को बेहतर दाम की मांग के सस्ते खाद्यान्न और भोजन की जरूरत से सामंजस्य कैसे बैठाया जाये? चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने इन सवालों का सामना बड़ी ही शिद्दत के साथ किया था। चौधरी टिकैत और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने दलगत राजनीति से दूरी बनाये रखी थी। चौधरी टिकैत के आन्दोलन में न तो नेताओं की भरमार थी और न पदाधिकारियों की कतार। इस आन्दोलन में शामिल हर व्यक्ति सिर्फ किसान था। चौधरी टिकैत जनता के बीच से आए थे और अंतिम समय (15 मई 2011) तक जनता के बीच रहे। चौधरी टिकैत अंतिम समय तक स्वयं खेती से भी जुड़े रहे। वे लाखों की पंचायत, धरने व आंदोलन की अगुवाई करने के बावजूद एक साधारण किसान की तरह अपने गांव में रहते थे तथा खुद खेती करते थे।

हम उनके जन्म दिवस पर उम्मीद करते हैं कि भारतीय किसान यूनियन राजनीति से अलग रहकर किसानों के लिए लड़ाई लड़ती रहेगी। भारतीय किसान यूनियन की जिम्मेदारी आज पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। किसान नेताओं को भी यह समझना होगा कि टिकैत एक आन्दोलन से बढ़कर किसानों के लिए एक विचार हैं। चौधरी टिकैत की तरह जमीन से जुड़कर ही उसकी मुसीबतों को समझा जा सकता है। चौधरी टिकैत के जीवन का उद्देश्य किसानों को इतना जागरूक करना था कि किसान की आवाज हुक्मरानों तक पहुंच सके। उनका यह सपना बखूबी पूरा भी हुआ। किन्तु, खेती व किसानी के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन के कारण भारत में चौधरी टिकैत को महात्मा टिकैत की उपाधि दी थी। वे एक साधारण किसान से महात्मा टिकैत बने थे।

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