देवेंद्र सिंह आर्य
अगर स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल राशिद को महात्मा गांधी अपना भाई कहते हैं, तो स्वामी श्रद्धानंद के समर्थक भी क्यों न गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को अपना भाई कहने लग जाएं?_
स्वामी श्रद्धानंद जी , लाला लाजपत राय जी और महात्मा हंसराज इन तीनो आर्य नेताओं ने धर्म परिवर्तन करने वाले हिन्दुओं को पुन: वैदिक धर्म में शामिल करने का अभियान शुरू किया।
स्वामी श्रद्धानंद जी कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य भी थे। गाँधी जी के निर्देश पर कांग्रेस ने स्वामी जी को आदेश दिया की वे इस अभियान में भाग ना लें।
स्वामी श्रद्धानंद जी ने उत्तर दिया, “मुस्लिम मौलवी’ तबलीग” हिन्दुओं के धर्मांतरण का अभियान चला रहे हैं ! क्या कांग्रेस उसे भी बंद कराने का प्रयास करेगी ?
कांग्रेस मुस्लिमों को खुश करने के लिए शुद्धि अभियान का विरोध करती रही लेकिन गांधीजी की कांग्रेस ने “तबलीग अभियान” के विरुद्ध एक भी शब्द कभी नहीं कहा।
स्वामी श्रद्धानंद जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया और शुद्धि अभियान में पुरे जोर शोर से सक्रिय हो गए। साथ ही उन्होंने मुसलमानों को वैदिक (हिन्दू) धर्म में दीक्षित किया गया। उन्मादी मुसलमान शुद्धि अभियान को सहन नहीं कर पाए।
पहले तो उन्हें धमकियां दी गयीं, अंत में २३ दिसम्बर १९२६ को दिल्ली में “अब्दुल रशीद” नामक एक मजहबी उन्मादी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर डाली।
स्वामी श्रद्धानंद जी की इस निर्मम हत्या ने सारे देश को व्यथित कर डाला परन्तु गाँधी जी ने यंग इंडिया में लिखा:—–
” मैं भाई अब्दुल रशीद नामक मुसलमान, जिसने श्रद्धानंद जी की हत्या की है , के पक्ष में कहना चाहता हूँ , की इस हत्या का दोष हमारा है। अब्दुल रशीद जिस धर्मोन्माद से पीड़ित था, उसका उत्तरदायित्व हम लोगों पर है। देशाग्नी भड़काने के लिए केवल मुसलमान ही नहीं, हिन्दू भी दोषी हैं। ”
स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने उन्हीं दिनों २० जनवरी १९२७ के ‘श्रद्धानंद ’ के अंक में अपने लेख में गाँधी जी द्वारा हत्यारे अब्दुल रशीद की तरफदारी की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा :––
” गाँधी जी ने अपने को शुद्ध हृदय , महात्मा तथा निष्पक्ष सिद्ध करने के लिए एक मजहबी उन्मादी हत्यारे के प्रति सुहानुभूति व्यक्त की है | मालाबार के मोपला हत्यारों के प्रति वे पहले ही ऐसी सुहानुभूति दिखा चुके हैं।”
गाँधी जी ने स्वयं ‘हरिजन’ तथा अन्य पत्रों में लेख लिखकर स्वामी श्रद्धानंद जी तथा आर्य समाज के “शुद्धि आन्दोलन” की कड़ी निंदा की।दूसरी ओर जगह जगह हिन्दुओं के बलात धर्मांतरण के विरुद्ध उन्होंने एक भी शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया।
दुर्भाग्य है आज भी ज्यादातर हिन्दू स्वामी श्रद्धानंद को नही अपितु गांधी को अपना नायक मानते हैं।नायक मानना तो दूर कितनों ने स्वामी श्रद्धानंद का नाम भी न सुना होगा।
देश के बच्चे-बच्चे को हत्यारे गोडसे का नाम बताया गया पर हत्यारे अब्दुल राशिद का नाम छुपाया गया। स्पष्ट रूप से यह भी वामपंथी इतिहासकारों का षड्यंत्र है। क्या वर्तमान सरकार में वो इच्छाशक्ति है जो देश के बच्चों तक निष्पक्ष इतिहास पहुंचाएं?
आज आवश्यकता है कि हम स्वामी श्रद्धानंद जैसे वास्तविक महात्माओ का चरित्र समाज में प्रचारित प्रसारित करें और गांधी के दोहरे चरित्र का पर्दाफाश करें।
स्वामी श्रद्धानंद का वास्तविक बचपन का नाम मुंशीराम था जो एक बहुत ही बड़े लब्ध_ प्रतिष्ठ अधिवक्ता भी थे।
स्वामी श्रद्धानंद के पिताजी बरेली में इंस्पेक्टर पुलिस लगे हुए थे। पिताजी के निर्देश पर ही वह बरेली में आए हुए महर्षि दयानंद के
प्र वचनों को सुनने के लिए गए थे। मुंशी राम की आस्था आर्य समाज में नहीं थी। मुंशी राम ईश्वर को नहीं मानते थे। लेकिन जब उन्होंने बरेली में महर्षि दयानंद के प्रवचन को सुना तथा महर्षि दयानंद से शिष्टाचार भेंट भी की। उसी समय से मुंशी राम का हृदय परिवर्तन हो गया था और उन्होंने अपनी सर्व संपत्ति आर्य समाज और देश के लिए दान कर दी थी और संन्यास ले लिया था। राष्ट्र और समाज के लिए कार्य करने लगे थे।
स्वामी श्रद्धानंद ने आर्ष समाज शिक्षा पद्धति पुन: स्थापित कर मैकाले की शिक्षा पद्धति का प्रतिकार किया।
डॉक्टर अंबेडकर ने दलितों का सबसे बड़ा मसीहा स्वामी श्रद्धानंद को बताया।
यद्यपि महात्मा गांधी भी उनको अपना बड़ा भाई मानते थे।
स्वामी श्रद्धानंद ने चांदनी चौक में संगीनों के सामने सीना खोल कर अंग्रेजी पुलिस को गोली चलाने के लिए ललकारा था।
स्वामी श्रद्धानंद को जामा मस्जिद के मेंबर और अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त साहिब से प्रवचन करने का गौरव भी प्राप्त हुआ था।
स्वामी श्रद्धानंद ने अमृतसर में जलियांवाला बाग कांड के बाद कांग्रेस का अधिवेशन करवाने की हिम्मत दिखाई थी।
स्वामी श्रद्धानंद 20 वीं सदी के एक चमत्कारी एवं प्रेरक व्यक्तित्व थे।
स्वामी श्रद्धानंद देश और धर्म पर बलिदान करने वाले प्रथम श्रेणी के महापुरुषों में सम्मिलित हैं।
स्वामी श्रद्धानंद को विपरीत परिस्थितियों में जब भारत वर्ष गुलाम था पत्र-पत्रिकाओं का निर्भीक संपादन करने का गौरव भी प्राप्त है।
स्वामी श्रद्धानंद ने हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
स्वामी श्रद्धानंद अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे ।
स्वामी श्रद्धानंद सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक थे।
स्वामी श्रद्धानंद को दिल्ली का बेताज बादशाह कहा जाता है।
स्वामी श्रद्धानंद शुद्धि अभियान के प्रणेता थे।
स्वामी श्रद्धानंद महर्षि दयानंद के वास्तविक उत्तराधिकारी एवं अनन्य शिष्य थे।
स्वामी श्रद्धानंद एक महान राष्ट्र भक्त थे।
स्वामी श्रद्धानंद आर्य समाज के ही नेता नहीं बल्कि भारतवर्ष की जनता के हृदय में स्थित होने वाले नेता थे।
स्वामी श्रद्धानंद के अंदर लोक कल्याण के लिए अपनी समस्त संपत्ति दान करने वाली महान आत्मा निवास करती थी, जिन को अमर शहीद सन्यासी, सर्व त्यागी स्वामी श्रद्धानंद कहा जाता है।
स्वामी श्रद्धानंद एक इतिहास पुरुष थे।
स्वतंत्रता सेनानी एवं अमर बलिदानी स्वामी श्रद्धानंद को शत शत नमन।