के एम भाई
साथियों, सरकारें किस तरह सत्ता के लालच में देश की जनता के साथ लूट करती हैं इसका ताजा उदाहरण 144 वर्ष वाला महाकुंभ है। उत्तर प्रदेश सरकार दावा कर रही है कि 45 करोड़ लोग महाकुंभ में डुबकी लगाकर पवित्र हो चुके हैं। पर कोई नाले में भी डुबकी लगाकर पवित्र हो सकता है तो ऐसा सिर्फ़ पवित्र-पावन भारत देश में ही हो सकता है। क्योंकि यहाँ आप आस्था के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं।45 करोड़ लोगों ने बिना जाँचे परखे स्नान, आचमन भी कर लिया और बोतल भरकर घर भी के गये पर किसी ने पूछा भी नहीं कि गंगा का जल शुद्ध है भी या नहीं। बस झूठा अमृत लूटे चले जा रहे है जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि संगम में गंगा नदी का जल न ही स्नान करने योग्य है और न ही आचमन योग्य । गंगा नदी के जल में मल फीकल कोलीफार्म का स्तर बीस फीसदी बढ़ा पाया गया है। यानी कि यह जल प्रदूषित है यह स्नान योग्य नहीं बचा है। पर योगी सरकार ने सीपीसीबी की रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया है।
राजनीतिक लाभ लेने के लालच में योगी सरकार लोगों के स्वास्थ्य और धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ कर रही है। महाकुंभ के आयोजन से पहले पानी की गुणवत्ता का स्तर जानता से छिपाया गया जिससे कि लोगों की आस्था का फायदा उठाकर कुंभ की आड़ में राजनीति का व्यापार किया जा सके। इसके साथ ही उद्योगपतियों के साथ गरीब किसानों की जमीन का सौदा किया जा सके। इसीलिए कुंभ पर्व को महाकुंभ का स्वरूप दिया गया, वीआईपी गलियारा बनाया गया, बड़े-बड़े विज्ञापन निकाले गये, मेला क्षेत्र को विशेष जिले का दर्जा दिया गया, भ्रष्ट अधिकारियों की नियुक्ति की गई, धार्मिक पर्व को विलासिता का रूप दिया गया। और इस विलासी यज्ञ में निर्दोष मासूम जनता के प्राणों की बलि दी गयी । बड़े-बड़े पूंजीपतियों को खुश करने के लिए जनता का इस्तेमाल किया गया, उनकी आस्था, इनके विश्वास के साथ खिलवाड़ किया गया है। जिसके लिये योगी सरकार दोषी है। और इसके लिए उसे सजा मिलनी चाहिए ।
इसलिए हम मांग करते हैं कि
महाकुंभ आयोजन की न्यायिक जाँच हो।
महाकुंभ में आम जनता के साथ किए गए भेदभाव व उसकी आस्था के साथ खिलवाड़ के लिए दोषी योगी सरकार पर केस दर्ज हो और मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किया जाये।
पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे के साथ सरकारी नौकरी की व्यवस्था की जाए।