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ज़िंदा माता पिता को रोटी तक नहीं और मरने के बाद खीर पूड़ी

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ऊषा शुक्ला

जीवित रहते है माता पिता को कभी दो वक़्त की रोटी नहीं दी। और मृत्यु पश्चात पितृ पक्ष आते ही समाज को दिखाने के लिए महाभोग किए जा रहे हैं। मृत्यु से कुछ समय पहले माता पिता के मुख में है चंद्र रोटी के टुकड़े डालने का केवल मात्र एक ही लोभ था कि किसी तरह इनकी जायजाद , उनका पैसा हड़प लिया जाए। हो सकता हो कि अगर मृत्यु से चंद दिनों पहले उन्हें रोटी खिलाने का यह सेवा करने का ढोंग न किया होता तो शायद वृद्ध माता पिता ने अपनी सारी संपत्ति किसी आश्रम में दान कर दी होती । यह भी हो सकता था कि मजबूर भारत माता पिता अपनी सारी संपत्ति अपने किसी ऐसे बच्चे के नाम कर जाते ,जो निर्दोष था जिसे जान बूझ कर घर से दूर रखा गया। ऐसी संतान जिसने पूरे जीवन अपने माता पिता का एक भी पैसा अपने परिवार पर ख़र्च न किया हो । हो सकता हो माता पिता अपने इस बच्चे का एहसान उतारना चाहते हो जिसने कभी भी अपने माता पिता के सामने झोली नहीं फैलायी। कैसा कलयुग आ गया है कि कोख से जन्मे सन्तान चंद रुपयों की ख़ातिर अपने ही वृद्ध माता पिता के साथ राजनीति खेलना शुरू कर देती है। बिस्तर पर बीमार पड़े अपने बेटे की एक झलक पाने के लिए तड़प रहे पिता को इस तरह प्रताड़ित किया कि सुनने वालों की रूह कांप गई। रिश्तों से बढ़कर पैसा आख़िर कब हुआ है। लेकिन अनपढ़ लोगों के लिए पैसा ही सब कुछ है। पैसा और मकान पाने की ख़ातिर कुछ अज्ञानी अनपढ़ अपने माता पिता को मौत के घाट उतार सकते हैं। अब तक तो सुनते थे अब तो अपनी जान पहचान में ऐसे निर्दयी कठोर संता ने देख ली। भगवान सारे पाप माफ़ कर देते हैं पर अपने ही माता पिता पर हाथ उठाने वाले कुपुत्र को कभी माफ़ नहीं करते हैं। एक बेटा एक बार अपने माता पिता से कुछ बोल भी ले पर वह या कैसे बर्दाश्त कर लेता है कि उसकी पत्नी उसके ही माता पिता को मार रही है ,पीट रही है और इससे सेवा का नाम दे रही है।कई बुजुर्ग बिल्कुल बेसहारा हैं, उनके बाद कोई इनका नाम लेने वाला भी नहीं है। वह बताते हैं कि मां-बाप की मौत के बाद सारे रिश्ते-नातेदार उनसे दूर हो गए। सबने दुत्कार दिया, कोई दो रोटी तक नहीं दे सका।
पितृ पक्ष शुरू हो गए हैं। घर-घर लोग अपने पूर्वजों की डआत्मा की शांति के लिए सुबहड उठकर काले तिल, फूल और चावल के साथ उन्हें जल अर्पित करेंगे, ताकि उनके पूर्वज जहां भी हों, उन्हें शांति मिले। ज़रा सोचो जब तक पूर्वज ज़िंदा थे उन्हें थप्पड़ मारे जाते थे कोई उनको धक्का देता था। गालियां दी जाती थी। और जब मर गए हैं तो केवल मात्र है अपने आपको बचाने के लिए पिंडदान किया जा रहा है उनकी आत्मा की शांति की दुआ की जा रही है। चार कंधों पर चलती हुई लाचार पिता की आह बोल उठी काश कोई एक कंधा जीवित रहते मिल जाता है तो शायद मेरी आत्मा को शांति मिल जाती। जीवित रहते हैं जिन माता पिता को तिल तिल तज पाया गया आज उन्हीं को पिंडदान किया जा दिया जा रहा है। तना ही नहीं पूर्वजों के श्राद्ध के लिए पंडितों को भोज कराया जाएगा, उन्हें वस्त्र और दान दक्षिणा दी जाएगी और तो और परिवार के लोग जिन भूले-भटके पितरों के बारे में नहीं जानते, अमावस्या के दिन उनका भी तर्पण और श्राद्ध करेंगे लेकिन वृद्धाश्रमों में रह रहे असहाय बुजुर्गों की मौत के बाद उनका तर्पण कौन करेगा, इस सवाल पर वृद्धाश्रम में जीते जी गुमनान जिंदगी काट रहे बुजुर्ग अपना मुंह छिपा लेते हैं। उनकी आंखों में आंसू डबडबा जाते हैं। कुछ वृद्ध अपने ही घर में दीवारों को देख देख करके आँसू बहा रहे होते थे। निर्दयी संतान को ज़रा भी तरस नहीं आयी कि पिता को इतना भी मत तड़पा कि उनके हाय निकल जाए।दिखावा करने के लिए ऐसा करते हैं । जिसका कोई मूल्य नहीं होता है । जो करना है जीते जी कर लें मृत्यु के पश्चात कोई लाभ माता-पिता को प्राप्त नहीं होता है । जिन्होंने हमें जन्म दिया , भोजन , वस्त्र और ना जाने क्या -कया दिया उनका हम हिसाब भी नहीं लगा सकते । स्वयं गीले में सोकर हमें सुखे में सुलाया , हमें अच्छे देने के लिए स्वयं वस्त्र का त्याग किया , मेहनत करके अपने अपने तन का त्याग किया , हमारे शिक्षा अच्छे से हो इसलिए मनोरंजन का त्याग किया । ऐसे सभी पूजनीय माता-पिता को भोजन भी नहीं देने वाली संतानों से ज़्यादा दरिद्र कोई नहीं । माता-पिता तो त्याग और बलिदान, समर्पण, की पराकाष्ठा है ।