पवन कुमार
मिट्टी के दीये,एवं रंगीली का न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है जैसे रंगीली बनाते समय अंगुली और अंगूठा मिलकर ज्ञान मुद्रा बनाते हैं जो आपके मस्तिष्क को ऊर्जावान और सक्रिय बनाते हैं।
दिए से निकलते वाली चमकदार लो माना जाता है यह ज्ञान,वृद्धि, समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है इसी मान्यता है।
दीपोत्सव पर्व दिवाली को कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है।सनातन धर्म में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है दिवाली,दिवाली के दिन मुख्य द्वार पर अथवा आंगन में रंगोली बनाने एवं रात्रि में सैकड़ों की संख्या में दीप जलाकर लक्ष्मी,गणेश के पूजन की परंपरा है ,यह त्यौहार सुख, समृद्धि एवं सामाजिक एकता का प्रतीक है, आज भी हमारे गांवों में प्रज्वलित दीपों को थाली में सजाकर सर्वप्रथम देव स्थल एवं गांव के मंदिर में रखते हैं फिर किसान अपने खेतों एवं इत्यादि स्थानों पर रखते हैं,इसी के साथ गांव के हर घर से हर घर में दीपक रखने की परंपरा है जो हमारे सामाजिक एकता को दर्शाती है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन साधक के घर माता लक्ष्मी जी का आगमन होता है माता को प्रसन्न (खुश) करने के लिए रंगोली बनाते हैं ,
कहा जाता है कि रंगोली का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि यह एक कला और सुंदरता का प्रतीक है , रंगोली बनाते समय अंगुली और अंगूठा मिलकर ज्ञान मुद्रा बनाते हैं जो हमारे मस्तिष्क को और सक्रिय बनाते हैं। रंगोली बनाते समय हम खुद को सकारात्मक महसूस करते हैं यह प्रतिक्रिया हमारे मानसिक तनाव को दूर करती है। रंगोली सांस्कृतिक आस्थाओं का प्रतीक है,यह सौभाग्य,समृद्धि, और खुशियों का प्रतीक है।इसको सांस्कृतिक प्रतिक्रिया का महत्वपूर्ण अंग माना गया है तभी विभिन्न हवन एवं यज्ञों में वेदी बनाते हैं,इसे सामाजिक एकता का प्रतीक भी माना गया है रंगोली बनाने के लिए परिवार की सभी महिलाएं एक दूसरे की मदद करती थीं।
इसी तरह मिट्टी के दिए जलाएं जाने के न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है।
धार्मिक मान्यताओं को जाने तो दिवाली ही के दिन भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे तब अयोध्या वासियों ने दीपोत्सव मनाया था या यह कह सकते कि अयोध्या वासियों ने प्रभु श्री राम जी के स्वागत में अयोध्या को दीपों से सजाया था।
मान्यता यह भी है कि दिवाली के दिन घर पर माता महा लक्ष्मी जी का आगमन होता है माता लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए दीप जलाए जाते हैं।
इसका वैज्ञानिक महत्व भी है दिवाली के दिन वायुमंडल में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ज्यादा होता है।
दिवाली वर्षा ऋतु के बाद आती है वायुमंडल में जहरीले तत्व कीड़ों, कीटाणुओं आदि के पोषण का समय होता है क्योंकि इनको अनुकूल वातावरण मिलता है, दिवाली पर घरों की सफाई होती है जिससे कीड़ों का खतरा कम हो जाता है देसी गाय के घी एवं सरसों के तेल के दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध हो जाता है, रसायन विज्ञान इस बात की पुष्टि करता है ज्यादा दीपक जलाने से वातावरण में तप बढ़ जाता है वायुमंडल में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ज्यादा होता है। रसायन विज्ञान के अनुसार सरसों के तेल में ऐसे तत्व होते हैं जो हमारे वातावरण में रसायनों से प्रतिक्रिया करके उसमें मौजूद विषैले तत्वों रोगाणु कीट पतंग आदि को मारने में सहायक होते हैं। दिवाली के समय पर ठंड का मौसम होता है जिस कारण हवा भरी होती है दीपक जलाने से यह हवा हल्की और साफ हो जाती है।
आज आधुनिकता की चकाचौंध में हम दिवाली को एक अलग तरीके से बनाने लगे हैं मिट्टी के दीपक को नजरअंदाज कर इलेक्ट्रिक लड़ियां एवं मोमबत्तियां ज्यादा जलाने लगे हैं जिससे हम अंधेरा तो दूर कर देते हैं लेकिन वातावरण पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं होता, आज हम प्रण करें कि दिवाली पर ज्यादा से ज्यादा मिट्टी के दिए जलाएंगे।
मिट्टी पंच तत्व में से एक है, इंसान इसी मिट्टी से बनता है और इसी में मिल जाता है, इसीलिए मिट्टी के दिए को पंच तत्व का प्रतीक भी कहा गया है।