ऊषा शुक्ला
जाने अंजाने माता पिता अपने बच्चे का बचपन तनावपूर्ण बना रहे हैं। माता पिता जा ख़ुद चाहते हैं वहीं बच्चों पर थोप रहे हैं। बच्चा ख़ुद क्या करना चाह रहे हैं या बच्चा ख़ुद क्या बनना चाहता है यह माता पिता सोच ही नहीं रहे। अपने बच्चे को अपने आँख का तारा समझ कर उसे बेजोड़ समझिए । भगवान ने हर बच्चे को एक कला देकर धरती पर भेजा है । और माता पिता के अलावा अपने बच्चे की क़ाबिलीयत कोई और पहचान ही नहीं सकता । दूसरे आपके बच्चे को कभी भी अपने बच्चे से ज़्यादा अक्लमंद नहीं समझेंगे। किसी भी ऑफ़िस में सब के सब हाई पोस्ट पर तो नहीं बैठ जाएंगे। कुछ ऊँचे पद पर बैठेंगे तो कुछ नीचे पद पर। यह मार्क्स के खेल ने बच्चों में एक अजीब सी डिप्रेशन से स्थिति ला दी है। माता पिता को समझने की ज़रूरत है कि उन्हें तो अपना जीवन ख़ूब मस्ती में काटा है फिर अपने बच्चों का जीवन इतना तनावपूर्ण क्यों बनाते जा रहे हैं।सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा टॉप करे, उनका नाम रोशन करे। एक अभिभावक यह चाहेगा ही, इसमें गलत कुछ नहीं है। गलत तब है, जब अंकों की यह भूख बच्चे की क्षमता से आगे निकल जाए। अगर पता है कि बच्चा ज्यादा अंक नहीं ला पाएगा, फिर भी दबाव बनाते हैं तो यह बहुत ही खतरनाक है। बच्चा क्या बनना चाहता है, उसे क्या पसंद है, वह क्या करना चाहता है, माता-पिता सिर्फ इसी पर अपना फोकस करें। देखिए, नतीजे आपकी उम्मीदों से भी कहीं बेहतर आएंगे। आज कल अभिभावकों में नम्बरों की होड़ लगी हुई है । हर माता पिता की अपने बच्चों को पड़ोसी के बच्चे से ज़्यादा नंबर लाने के लिए प्रेरित करते रहते । अंक जिंदगी का आधार नहीं हो सकते ।हर बच्चा चाहता है कि वह टॉप करे जो अच्छी बात है, लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि हर बच्चा तो टॉप नहीं कर सकता। तो फिर कहीं ऐसा तो नहीं है कि अंकों की इस अंधी दौड़ में आप कुछ खो रहे हैं? क्या खो रहे हैं, इसका आपको शायद अंदाजा भी नहीं है। विद्याथियों और उनके अभिभावकों, दोनों को यह समझना जरूरी है कि अंक ही जीवन का आधार नहीं हो सकते। जीवन बहुत बड़ा है और बहुत कुछ देता है। इस दौड़ को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने देना है। बस मन और शांत दिमाग से पढ़ाई करनी है और हमेशा सकारात्मक रहना है। आपका खुद पर विश्वास होना बहुत जरूरी है और यह विश्वास तभी बनेगा जब आप अच्छी तरह से पढ़ाई कर पाओगे, अंकों को दिमाग़ में रखे बगै़र।अंकों का संबंध शैक्षणिक प्रदर्शन से जरूर है। हो सकता है अच्छे अंकों से आपको किसी अच्छे संस्थान में दाखिला मिल जाए, लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि इसका संबंध आपकी प्रतिभा से बिल्कुल भी नहीं है। इसके मायने यह हैं कि कम अंक आपकी उस प्रतिभा को नहीं रोक सकते, जिसके लिए आप बने हैं। दुनिया के सभी सफल और महान लोगों को देखिए। कोई भी ऐसा नहीं है, जिसने टॉप किया है बल्कि कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो अपनी पढ़ाई ही पूरी नहीं कर सके, फिर भी दुनिया के अमीरों की सूची में शीर्ष पर आए। ऐसा इसलिए क्योंकि उनका लक्ष्य अंकों पर नहीं था, उनके अपने गोल पर था। इसलिए अच्छे अंक लाने की कोशिश जरूर करें, लेकिन यही अंतिम लक्ष्य न हो। माता पिता को अपने पड़ोसियों को और अपने रिश्तेदारों को बताना है कि उनका अपना बच्चा दूसरों के बच्चों की तुलना में बहुत होशियार है। और यह प्रमाणित करने के लिए कि उनका बच्चा अड़ोसी पड़ोसी के बच्चों से या रिश्तेदारों के बच्चों से बहुतों अधिक प्रतिभाशाली है। अपने बच्चों को सारी दुनिया से अलग रखकर के केवल नंबरों के पीछे भाग रहे हैं। इतिहास गवाह है कि जितने भी एवरेज बचे हुए हैं वही अपने जीवन में एक उंची लक्ष्य को प्राप्त कर पाए हैं। जिन बच्चों ने अपने जीवन में संघर्ष किया है वहीं बच्चे कुछ अच्छा बन पाए हैं।बच्चे में अंकों का तनाव न हो, इसकी जिम्मेदारी अभिभावक की है। जब बच्चे परीक्षा के कठिन दौर से गुज़र रहे हों तब अभिभावकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रत्येक अभिभावक को अपने बच्चे के व्यवहार को समझना आवश्यक है और यदि बच्चे में तनाव के लक्षण दिखाई दें तो उचित समाधान करें। अभिभावक इस बात का दबाव नहीं बनाएं कि बच्चा हर समय पढ़ता ही रहे। बच्चे के मनोरंजन का भी ध्यान रखें। खासकर बच्चे को अपने दोस्तों से मिलने के लिए प्रेरित करें।बच्चों को चित्रात्मक तत्व बहुत पसंद होते हैं क्योंकि वे बहुत आनंद देते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें पाठ में रुचि होती है जिसे पढ़ना, समझना और फिर उसका आनंद लेना होता है। फिजिकल एक्टिविटीज तनाव को कम करने में मददगार होती है। तो पढ़ाई के बीच भी बच्चे को शाम के समय कुछ देर के लिए घर से बाहर निकलकर शारीरिक व्यायाम करने के लिए प्रेरित करें।कुछ मूलभूत सुविधाएं हर बच्चे को उसके माता-पिता की तरफ से मिलना चाहिये। बच्चों को पढ़ने के लिए उचित ऊंचाई की टेबल कुर्सी और रौशनी की व्यवस्था। पढ़ते समय घर में शांति का माहौल। यह नहीं कि बच्चे पढ रहे हैं और माता-पिता टीवी देखें गाने सुनें फोन पर बातें करें किसी को घर पर बुला गपशप करें या खुद बाहर घूमने चले जाएं। बार बार बच्चों को पढ़ने से उठाएं यह ला दो वह कर दो दरवाजा खोल दो कहकर। पढाई चाहे रोज की है उसमें पूरा ध्यान लगे ऐसा माहौल हो। पढाई के समय बच्चों को जहाँ परेशानी आये उसकी मदद करें यह नहीं कि चिल्लाने लगें कि स्कूल में क्या करते हो समझ नहीं आया तो टीचर से क्यों नहीं पूछा तुम्हारी टीचर को कुछ नहीं आता। ध्यान रखिये ये करके आप अपनी अक्षमता दिखाते हैं कि आपको भी कुछ नहीं आता। बच्चा पेट से सीखकर नहीं आया वह अभी सीख रहा है कुछ बातें एक बार में सीखेगा कुछ दस बार बताने पर।