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जननायक की उपाधि मिलते ही कांग्रेस से समाजवादी हो गए थे कर्पूरी ठाकुर! 

कर्पूरी ठाकुर
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द न्यूज 15  
नई दिल्ली। कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए ही बिहार अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला सूबा बना था। बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के नाम के आगे जननायक की उपाधि जुड़ी, उनका नाम उन महान समाजवादी नेताओं की पांत में आता है, जिन्होंने निजी और सार्वजनिक जीवन, दोनों में आचरण के ऊंचे मानदंड स्थापित किए थे।
कर्पूरी ठाकुर का जीवन ताउम्र संघर्ष रहा। 1978 में बिहार का मुख्यमंत्री रहते हुए जब उन्होंने हाशिये पर धकेल दिये वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया तो उन्हें क्या-क्या न कहा गया। लोग उनकी मां-बहन-बेटी-बहू का नाम लेकर भद्दी गालियां देते. अभिजात्य वर्ग के लोग उन पर तंज कसते हुए कहते – कर कर्पूरी कर पूरा, *छोड़ गद्दी, धर उस्तरा.उस्तरा
 कर्पूरी ठाकुर नाई समुदाय से ताल्लुक रखते थे।
कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री थे तो उनके प्रधान सचिव थे यशवंत सिन्हा, वे आगे जाकर वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री बने. किस्सा है कि एक दिन दोनों अकेले में बैठे थे तो कर्पूरी ठाकुर ने यशवंत सिन्हा कहा, ‘आर्थिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ जाना, सरकारी नौकरी मिल जाना, इससे क्या यशवंत बाबू आप समझते हैं कि समाज में सम्मान मिल जाता है? जो वंचित वर्ग के लोग हैं, उसको इसी से सम्मान प्राप्त हो जाता है क्या? नहीं होता है। आगे उन्होंने अपना उदाहरण दिया। वे मैट्रिक में फर्स्ट डिविज़न से पास हुए थे।  नाई का काम कर रहे उनके बाबूजी उन्हें गांव के समृद्ध वर्ग के एक व्यक्ति के पास लेकर गए और कहा, ‘सरकार, ये मेरा बेटा है, फर्स्ट डिविजन से पास किया है.’ उस आदमी ने अपनी टांगें टेबल के ऊपर रखते हुए कहा, ‘अच्छा, फर्स्ट डिविज़न से पास किए हो? मेरा पैर दबाओ.’ इस तरह की तमाम चुनौतियों से पार पाते हुए कर्पूरी ठाकुर आगे बढ़े,  1967 में जब पहली बार नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ तो महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में वे शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बने। उन्होंने मैट्रिक में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता समाप्त कर दी और यह बाधा दूर होते ही क़स्बाई-देहाती लड़के भी उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हुए, नहीं तो पहले वे मैट्रिक में ही अटक जाते थे।
1970 में 163 दिनों के कार्यकाल वाली कर्पूरी ठाकुर की पहली सरकार ने कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए. आठवीं तक की शिक्षा मुफ़्त कर दी गई. उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्ज़ा दिया गया. सरकार ने पांच एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी खत्म कर दी. जब 1977 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बने तो एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना. 11 नवंबर 1978 को उन्होंने महिलाओं के लिए तीन (इसमें सभी जातियों की महिलाएं शामिल थीं), ग़रीब सवर्णों के लिए तीन और पिछडों के लिए 20 फीसदी यानी कुल 26 फीसदी आरक्षण की घोषणा की. इसके लिए ऊंचे तबकों ने एक बड़े वर्ग ने भले ही कर्पूरी ठाकुर को कोसा हो, लेकिन वंचितों ने उन्हें सर माथे बिठाया. इस हद तक कि 1984 के एक अपवाद को छोड़ दें तो वे कभी चुनाव नहीं हारे,  सादगी के पर्याय कर्पूरी ठाकुर लोकराज की स्थापना के हिमायती थे। उन्होंने अपना सारा जीवन इसमें लगा दिया। 17 फरवरी 1988 को अचानक तबीयत बिगड़ने से उनका देहांत हो गया। आज उन्हें एक जाति विशेष के दायरे में सीमित कर दिया जाता है, जबकि उनके दायरे में वह पूरा समाज आता था, जिसकी तीमारदारी को उन्होंने अपना मिशन बना लिया।