कलियुग का शीघ्र विनाश होने वाला है और सतयुग आने वाला है
सुभाश चंद्र कुमार
समस्तीपुर,पूसा। कलियुग की आयु लाखों वर्ष कह दी गई और वर्तमान समय को इसका बचपन मान लिया गया। अगर बचपन में ही इतना पापाचार-भ्रष्टाचार है, तो बुढ़ापे में क्या होगा? इसलिए कलियुग अभी बच्चा नहीं है, थोड़ा सा बचा हुआ है। उक्त बातें प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के खुदीराम बोस पूसा रेलवे स्टेशन रोड स्थित सेवाकेंद्र में चल रहे राजयोग मेडिटेशन शिविर के पांचवें दिन कलियुग महाविनाश विषय पर संबोधित करते हुए ब्रह्माकुमारी पूजा बहन ने कही।
उन्होंने कहा वर्तमान समय धर्मग्लानि के हर लक्षण विद्यमान हैं। चारों ओर रावणराज्य अर्थात् विकारों का साम्राज्य चल रहा है। जहां काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का बोलबाला है। अभी के समय को देखकर ही कहा भी गया है- कलियुग बैठा मार कुंडली, जाऊं तो मैं कहां जाऊं, घर-घर में है रावण बैठा, इतने राम कहां से लाऊं! रावण के पास धन भी अथाह था, सोने की लंका थी। बुद्धि भी तीक्ष्ण और कुशाग्र थी, बड़ा विद्वान था। बल में भी उसकी कोई बराबरी करने वाला नहीं था।
सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र थे। भक्ति भी उस जैसी करने वाला उस समय कोई नहीं था। लेकिन उसके भीतर अनैतिकता थी और अहंकार था, यही उसके अंत का कारण बना। आज के युग में मानव के पास भी धन बल बुद्धि और भक्ति चारों है, लेकिन अनैतिकता और अहंकार भी चरम पर है। जो धर्म कभी सुख-शान्ति का मूल था, वही धर्म आज झगड़े व वैमनस्यता का बड़ा कारण बनता जा रहा है। धर्म के नाम पर अधर्म फैलता जा रहा है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य, पर्यावरण संबंधी समस्यायें, भौगोलिक परिस्थितियों, बढ़ती हुई लाइलाज बीमारियों, तेजी से चारित्रिक पतन को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह सृष्टि ज्यादा समय तक रहने लायक नहीं रही।
इसलिए ऐसे समय पर परमात्मा आकर संदेश देते हैं जागो-जागो! समय पहचानो। कलियुग का शीघ्र विनाश होने वाला है और सतयुग आने वाला है। इसलिए सतयुग में चलने के लिए अपने संस्कारों को दिव्य और श्रेष्ठ बनाना आवश्यक है, जिसके लिए परमात्मा अभी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत दे रहे हैं और गीता वर्णित राजयोग सिखाकर हमारे अंदर दैवी संस्कारों का निर्माण कर रहे हैं।
वर्तमान युग युगों में श्रेष्ठ पुरुषोत्तम संगमयुग चल रहा है। यह समय सृष्टि के ब्रह्म मुहूर्त की वेला है। 2500 वर्षों की द्वापर-कलियुग की घोर अज्ञानता भरी अंधियारी रात पूरी हुई की हुई। 2500 वर्षों तक चलने वाले सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत कलियुग महाविनाश के पश्चात होने वाली है। जहां शेर-बकरी एक घाट पर पानी पियेंगे। मनुष्य देवी-देवताओं के रूप में होंगे। वे सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम और डबल अहिंसक होंगे।
उस दुनिया में एक धर्म, एक राज्य, एक कुल, एक मत, एक भाषा- सर्वत्र एकत्व का साम्राज्य होगा। भारत सोने की चिड़िया कहलाएगा। जहां सोने के हीरे-जवाहरात जड़ित महल होंगे। देवी-देवताओं के सिर पर रत्न-जड़ित और पवित्रता का डबल ताज चमचमाता होगा। सर्वत्र सुख-शांति-समृद्धि होगी। इस दुनिया को स्वर्ग, पैराडाइज, वहिश्त, हैवेन, जन्नत, सुखधाम आदि नामों से भी जाना जाता है।
ऐसी दुनिया में ले चलने के लिए अभी परमात्मा सत् धर्म की स्थापना कर रहे हैं। धर्म अर्थात् धारणा। पहले हमारे जीवन में धर्म अर्थात् सद्गुणों की संपूर्ण धारणा होती है तब इस सृष्टि पर सत्य धर्म की स्थापना होती है। एक आदि सनातन देवी देवता धर्म रहता है। त्रेतायुग के बाद जब इस धर्म की शक्ति क्षीण होती है तब धीरे-धीरे अन्य धर्म इस्लाम, बौद्ध, ईसाई, सिक्ख आदि अनेक धर्मों की स्थापना होती है।
ये सब धर्म मानव मत आधारित हैं। सृष्टि के अंतकाल में अभी इन सभी धर्मों की शक्ति क्षीण हो चुकी है। सभी अपने-अपने धर्म को तो मानते हैं, लेकिन धर्म की एक नहीं मानते। शास्त्रों को तो मानते हैं, लेकिन शास्त्रों की नहीं मानते। ऐसे समय पर परमपिता परमात्मा आकर अभी अनेक धर्म का विनाश और एक सत् धर्म की स्थापना का कार्य कर रहे हैं और यह कार्य भी जल्दी ही संपन्न होने वाला है। हम परमात्मा के कार्य में सहयोगी बन स्वर्ग में अपने लिए भी एक सीट बुक कर सकते हैं।