ऊषा शुक्ला
एक बार सत्य के राह पर चलकर तो देखो। और लोगों के दिमाग़ में ऐसा है की सत्य की राह पर चलने वाले बेवकूफ़ होते हैं । उन्हें ऐसा लगता है कि हर किसी को गुमराह करो या हर किसी से झूठ बोला यही अकलमंदी है । पर ऐसा है नहीं । सत्य ना कभी हारा था न कभी हारेगा ।सत्य का लक्ष्य या परिणाम हमेशा रचनात्मक होना चाहिए। हमें गलत तथ्य नहीं बताना चाहिए। जो भी तथ्य हो, हमें हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करनी चाहिए और कभी भी विनाशकारी काम नहीं करना चाहिए। जो गलत है वो गलत है। सत्य की राह पर चलने से एक अद्भुत सा आनंद आता है। भगवान कि अनुकंपा ऐसी मिलती है। ऐसा सातवें आसमान पर निखरते हैं है की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं मिलता। धरती पर भगवान हैं और सब कुछ देख रहे हैं। यह मानकर चलो। कोई भी ग़लत क़दम उठाने से पहले एक बार भगवान का ध्यान ज़रूर करो। ऐसा न हो कि आप पाप करते जाएं और भगवान आपके लिए दंड तैयार करते जाएँ।बड़े दिनों बाद एक गहन सोच पर किसी ने प्रश्न किया है। हम सभी को सत्य के राह पर चलना चाहिए। पर सत्य है क्या? जो वास्तविक है उसे ही जीवन में उद्देश्य बनाना ।
सत्य दो प्रकार का हो सकता है। पहला, तथ्य वाला सत्य-सत्य जो कभी बदलता नहीं। जैसे गुरुत्वाकर्षण चीज़ों को अपनी और खींचता है। इन सत्यों को स्थापित करने के लिए आपको गंभीर लड़ाई लड़नी पड़ सकती है। अंततः एक समय के बाद लोग आपके सत्य को मान भी लेंगे और आपको पुरस्कृत भी करेंगे। हाँ, आपको शुरू में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन अंत भला तो सब भला। एक बार सत्य की राह पर चलकर तो देखो।बहुत चल लिए झूठ की राह पर। बहुत चल लिए असत्य की डगर पर। अब कुछ तो नेक काम कर लो। सत्य की राह पर भी चल लो।शास्त्रों में आत्मा, परमात्मा, प्रेम और धर्म को सत्य माना गया है। सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। सत्य के साथ रहने से मन हल्का और प्रसन्न चित्त रहता है। मन के हल्का और प्रसंन्न चित्त रहने से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है। सत्य की उपयोगिता और क्षमता को बहुत कम ही लोग समझ पाते हैं। सत्य बोलने से व्यक्ति को सद्गति मिलती है। गति का अर्थ सभी जानते हैं।: सत्य को जानना कठिन है। ईश्वर ही सत्य है। सत्य बोलना भी सत्य है। सत्य बातों का समर्थन करना भी सत्य है। सत्य समझना, सुनना और सत्य आचरण करना कठिन जरूर है लेकिन अभ्यास से यह सरल हो जाता है। जो भी दिखाई दे रहा है वह सत्य नहीं है, लेकिन उसे समझना सत्य है अर्थात जो-जो असत्य है उसे जान लेना ही सत्य है। असत्य को जानकर ही व्यक्ति सत्य की सच्ची राह पर आ जाता है।
जब व्यक्ति सत्य की राह से दूर रहता है तो वह अपने जीवन में संकट खड़े कर लेता है। असत्यभाषी व्यक्ति के मन में भ्रम और द्वंद्व रहता है, जिसके कारण मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। मानसिक रोगों का शरीर पर घातक असर पड़ता है। ऐसे में सत्य को समझने के लिए एक तार्किक बुद्धि की आवश्यकता होती है। तार्किक बुद्धि आती है भ्रम और द्वंद्व के मिटने से। भ्रम और द्वंद्व मिटता है मन, वचन और कर्म से एक समान रहने से।सत्य का आमतौर पर अर्थ माना जाता है झूठ न बोलना, लेकिन सत् और तत् धातु से मिलकर बना है सत्य, जिसका अर्थ होता है यह और वह- अर्थात यह भी और वह भी, क्योंकि सत्य पूर्ण रूप से एकतरफा नहीं होता। रस्सी को देखकर सर्प मान लेना सत्य नहीं है, किंतु उसे देखकर जो प्रतीति और भय उत्पन हुआ, वह सत्य है। अर्थात रस्सी सर्प नहीं है, लेकिन भय का होना सत्य है। दरअसल हमने कोई झूठ नहीं देखा, लेकिन हम गफलत में एक झूठ को सत्य मान बैठे और उससे हमने स्वयं को रोगग्रस्त कर लिया।: सत्य बोलने और हमेशा सत्य आचरण करते रहने से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है। मन स्वस्थ और शक्तिशाली महसूस करता है। डिप्रेशन और टेंडन भरे जीवन से मुक्ति मिलती है। शरीर में किसी भी प्रकार के रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। सुख और दुख में व्यक्ति सम भाव रहकर निश्चिंत और खुशहाल जीवन को आमंत्रित कर लेता है। सभी तरह के रोग और शोक का निदान होता है।
जो व्यक्ति सत्य से नहीं डरता है वह जीवन में लगातार प्रगति पथ पर चलता है ।
सेखिका-
इफ़को आँवला बरेली यूपी