चरण सिंह
भले ही पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के आयातित नेता के बर्दाश्त न करने के बयान पर जदयू में नाराजगी देखी गई हो। पर जिस तरह से दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय झा को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि बीजेपी के जदयू से रिश्ते कमजोर नहीं बल्कि मजबूत हुए हैं। नीतीश कुमार ने खुद उनके नाम की घोषणा की। देखने की बात यह है कि संजय झा तो जदयू से ज्यादा बीजेपी के करीब माने जाते हैं। राजीव प्रताप रूडी और अरुण जेटली से संजय झा के संबंध जगजाहिर हैं। हालांकि जदयू में कार्यकारी अध्यक्ष की कोई खास पावर नहीं है। हां यह जरूर कहा जा सकता है कि पार्टी के मुखिया नीतीश कुमार आजकल अस्वस्थ चल रहे हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जदयू के हर निर्णय की जानकारी बीजेपी को होगी। उधर ललन सिंह की अगुवाई में १० सांसदों के गृह मंत्री अमित शाह के संपर्क में रहने की बात जदयू को कमजोर कर रही है।
देखने की बात यह है कि इंडिया ब्लॉक पर काम करने वाले नीतीश कुमार आज बीजेपी के साथ हैं। अस्वस्थ चल रहे नीतीश कुमार के सामने एक नहीं अनेक चुनौतियां हैं। एक और उन्हें अपनी पार्टी को बचाए रखना है तो दूसरी ओर एनडीए में भी अपनी मजबूत स्थिति रखनी है। इसमें दो राय नहीं कि आज की तारीख में नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खूब पट रही है। प्रधानमंत्री को नीतीश कुमार के स्वागत में खड़े होते देखा गया है। वह बात दूसरी है कि नीतीश कुमार को मोदी के पैर छूते हुए भी देखा गया है। इसमें दो राय नहीं कि वह नीतीश कुमार ही हैं जिनमें सत्ता पलटने का दम खम माना जाता है। टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू से भी नीतीश कुमार को अच्छे खासे संबंध हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री का प्रयास यह है कि किसी भी हालत में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को एक न होने दो। दोनों को खुश रखा जाए। वह बात दूसरी और चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों ही नेताओं को इस बात का अंदेशा है कि उनके सांसद कभी भी तोड़े जा सकते हैं। दरअसल एनडीए के पास २९३ तो बीजेपी के अकेले २४० सांसद हैं। जदयू के १२ तो टीडीपी के १६ सांसद मोदी का खेल बिगाड़ सकते हैं।
इंडिया ब्लॉक इस फिराक में है कि किसी तरह से जदयू और टीडीपी एनडीए में बगावत कर दें। ऐसे में नीतीश कुमार दोनों ही समय का फायदा उठाना चाहेंगे। नीतीश कुमार के प्रदेश बिहार तो चंद्रबाबू नायडू के आंध्र प्रदेश दोनों ही राज्यों को विशेष राज्य की दरकार है। ऐसे में दोनों ही मुख्यमंत्रियों का प्रयास होगा कि पहले अपने अपने राज्यों के लिए विशेष राज्य का दर्जा लिया जाए। ऐसे में मोदी भी विशेष राज्य के दर्जे के नाम पर दोनों ही नेताओं को टहलाएंगे। वैसे भी जदयू की ओर से तो भाजपा के फैसलों में साथ रहने के बयान जारी किये जाते रहे हैं। प्रधानमंत्री ने न तो जदयू और न ही टीडीपी को कोई खास मंत्रालय दिया और न ही स्पीकर का पद और न ही डिप्टी स्पीकर का पद देने जा रहे हैं। ऐसे में देखना यह होगा कि जदयू और टीडीपी का साथ बीजेपी को कब तक मिलता है।