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सत्ता का ये खेल है

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बजी दुंदभी वोट की, आये नेता द्वार।
भाईचारा बस रहे, मन में करो विचार।।
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इतनी भी ना बहक हो, इस चुनाव मधुमास।
रिश्तों का रोना लिखे, मितवा बारहमास।।
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धन-बल-पद के लोभ की, छोड़े सौरभ प्रीत।
जो नेता जनहित करे, वोट उसे हो मीत ।।
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वोट करो सब योग्य को, दाब राग दे छोड़।
जाति-पाति की भावना, के बंधन सब तोड़।।
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मूल्य वोट का है बहुत, वोट बड़ा अनमोल।
देना किसको वोट है, सौरभ मन से तोल।।
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सत्ता का ये खेल है, करे प्रपंच हज़ार।
बस अपना मत देखिये, रखे सलामत प्यार।।
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वोट बड़ा अनमोल है, करो न इसका मोल।
मर्जी है ये आपकी, पड़े न इसमें झोल।।
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जिनकी-जिनकी वोट हैं, सुनो आज ये बात।
एक दिनी मेहमान पर, क्यों भिड़े दिन रात।।
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मत पाने की होड़ में, सुन लो मेरे मीत।
भाईचारा बस रहे, मिले हार या जीत।।
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डॉ. सत्यवान सौरभ