चरण सिंह
कथित शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी, उनके साथी रहे ङिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और सांसद संजय सिंह के जेल जाने के बाद आंदोलन भी प्रभावित हो रहे हैं। अरविंद केजरीवाल एंड टीम जिस तरह से आबकारी नीति के मनी लांड्रिंग मामले में घिरी हुई है। उससे आंदोलन से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। अब देखने में आ रहा है कि यदि अराजक नीतियों के खिलाफ कोई आंदोलन होता भी है तो लोग कहने लगते हैं यह केजरीवाल बनने की कोशिश कर रहा है। मतलब अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन का बहुत नुकसान किया है। यही अरविंद केजरीवाल बंगला गाड़ी का विरोध करते थे और अब उन पर अपने आवास पर करोड़ों की फिजूलखर्ची का आरोप है। केजरीवाल अपने को दिखाते तो आम आदमी हैं पर उन्हें अपने वेतन और दूसरी सुविधाओं का जिक्र नहीं करते। आखिर वह अपने वेतन का क्या करते हैं ? मतलब जनता के टैक्स से लोगों को फ्री बिजली, पानी, महिलाओं को डीटीसी में सफर के साथ ही महिलाओं को साल में १२ हजार रुपये देने की बात करने वाले केजरीवाल ऐसे दशार्ती हैं कि जैसे वह अपने घर से दे रहे हों।
अरविंद केजरीवाल ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जिन नेताओं और जिन दलों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये। आज की तारीख में उनके साथ गलबहियां करते देखे जा रहे हैं। उन पर खुद भ्रष्टाचार के आरोप हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम यदि अपनी जगह सही है और भारतीय जनता पार्टी एक षड्यंत्र के तहत उनको फंसा रही है तो फिर कोर्ट से उन्हें राहत क्यों नहीं मिल रही है। दरअसल अरविंद केजरीवाल विशुद्ध रूप से लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। भले ही उनके पुराने साथी योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण उनकी गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हों पर इन्हीं केजरीवाल ने इन लोगों को अपमानित किया और इन्हें मजबूरन पार्टी छोड़नी पड़ी। बात केजरीवाल की ही नहीं जेपी आंदोलन से निकले लालू प्रसाद यादव भी भ्रष्टाचारी घोषित हो चुके हैं। जॉब फॉर लैंड मामले में उनके पूरे परिवार पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
अक्सर यह मानकर चला जाता है कि यदि कोई सरकार अराजक नीतियां लागू करती है तो उसको बैकफुट पर लाने के लिए आंदोलन ही करना पड़ता है। या फिर अपनी बात मनवाने के लिए आंदोलन ही एक कारगर माध्यम है। केजरीवाल एंड टीम के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बात सामने आने पर लोग अब आंदोलनों को भी संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं।
इसमें दो राय नहीं कि केजरीवाल सरकार ने शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में काम किया है। पर उनके गुरु अन्ना हजारे तो कह रहे हैं कि उनके आंदोलन में देश को शराब मुक्त करने का भी मुद्दा था। खुद अरविंद केजरीवाल सरकार का विरोध करते थे। अब वह शराब नीतियां बना रहे हैं। केजरीवाल ने तो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उपराज्यपाल के आवास पर धरना दिया। सड़कों पर उतरे। वह खुद कहते रहे हैं कि यदि उनका कोई मंत्री भ्रष्ट होगा तो उसे जेल जाना होगा। उन्होंने अपने बारे में भी कहा था कि यदि वह खुद भी भ्रष्ट साबित हुए तो उन्हें भी जेल जाना होगा। ईडी ने जिस तरह से केजरीवाल को घेरा है उसके हिसाब से उनका जेल जाना तय है। ऐसे में प्रश्न यह भी है कि यदि केजरीवाल इस्तीफा देते हैं तो फिर दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? ऐसे में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल का ही नाम सबसे आगे है। यह भी देखने की बात है कि उनकी पत्नी सुनीता ने केजरीवाल का संदेश जिस कुर्सी पर बैठकर सुनाया वह केजरीवाल की है। आखिर मुख्यमंत्री की पत्नी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर उनके संदेश को कैसे पढ़ सकती हैं ? क्या इस पर कोर्ट को संज्ञान नहीं लेना चाहिए। क्या यह अराजक नीतियों में नहीं आता है।
अरविंद केजरीवाल ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जिन नेताओं और जिन दलों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये। आज की तारीख में उनके साथ गलबहियां करते देखे जा रहे हैं। उन पर खुद भ्रष्टाचार के आरोप हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम यदि अपनी जगह सही है और भारतीय जनता पार्टी एक षड्यंत्र के तहत उनको फंसा रही है तो फिर कोर्ट से उन्हें राहत क्यों नहीं मिल रही है। दरअसल अरविंद केजरीवाल विशुद्ध रूप से लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। भले ही उनके पुराने साथी योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण उनकी गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हों पर इन्हीं केजरीवाल ने इन लोगों को अपमानित किया और इन्हें मजबूरन पार्टी छोड़नी पड़ी। बात केजरीवाल की ही नहीं जेपी आंदोलन से निकले लालू प्रसाद यादव भी भ्रष्टाचारी घोषित हो चुके हैं। जॉब फॉर लैंड मामले में उनके पूरे परिवार पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
अक्सर यह मानकर चला जाता है कि यदि कोई सरकार अराजक नीतियां लागू करती है तो उसको बैकफुट पर लाने के लिए आंदोलन ही करना पड़ता है। या फिर अपनी बात मनवाने के लिए आंदोलन ही एक कारगर माध्यम है। केजरीवाल एंड टीम के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बात सामने आने पर लोग अब आंदोलनों को भी संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं।
इसमें दो राय नहीं कि केजरीवाल सरकार ने शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में काम किया है। पर उनके गुरु अन्ना हजारे तो कह रहे हैं कि उनके आंदोलन में देश को शराब मुक्त करने का भी मुद्दा था। खुद अरविंद केजरीवाल सरकार का विरोध करते थे। अब वह शराब नीतियां बना रहे हैं। केजरीवाल ने तो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उपराज्यपाल के आवास पर धरना दिया। सड़कों पर उतरे। वह खुद कहते रहे हैं कि यदि उनका कोई मंत्री भ्रष्ट होगा तो उसे जेल जाना होगा। उन्होंने अपने बारे में भी कहा था कि यदि वह खुद भी भ्रष्ट साबित हुए तो उन्हें भी जेल जाना होगा। ईडी ने जिस तरह से केजरीवाल को घेरा है उसके हिसाब से उनका जेल जाना तय है। ऐसे में प्रश्न यह भी है कि यदि केजरीवाल इस्तीफा देते हैं तो फिर दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? ऐसे में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल का ही नाम सबसे आगे है। यह भी देखने की बात है कि उनकी पत्नी सुनीता ने केजरीवाल का संदेश जिस कुर्सी पर बैठकर सुनाया वह केजरीवाल की है। आखिर मुख्यमंत्री की पत्नी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर उनके संदेश को कैसे पढ़ सकती हैं ? क्या इस पर कोर्ट को संज्ञान नहीं लेना चाहिए। क्या यह अराजक नीतियों में नहीं आता है।