चरण सिंह
क्या ये वही नीतीश कुमार हैं, जिन्होंने मौजूदा प्रधानमंत्री और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार में घुसने नहीं दिया था। क्या ये वही नीतीश कुमार हैं, जिन्होंने न केवल जार्ज फर्नांडीज बल्कि शरद यादव और लालू प्रसाद यादव तक को राजनीतिक पटखनी दे रखी है। नीतीश कुमार ने समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद की तर्ज पर गैर संघवाद का नारा दे दिया था। हालांकि वह बीजेपी की गोद में बैठकर यह भी कह चुके कि कोई नहीं है टक्कर में। अमित शाह से नाराज नीतीश कुमार के तेवर तो अब ढीले पड़ गए हैं। तो क्या बीजेपी के ज्यादा दबाव में नीतीश कुमार आ गए हैं ? या फिर बीजेपी को भ्रमित करने के लिए यह सब कुछ कर रहे हैं।
दरअसल नीतीश कुमार का मामला तब से बिगड़ा हुआ चल रहा है जब से गृह मंत्री अमित शाह ने एक निजी चैनल से बात करते हुए कह दिया है मुख्यमंत्री का निर्णय बीजेपी का संसदीय बोर्ड तय करेगा। अमित शाह के इस बयान के बाद नीतीश कुमार ने कुछ तेवर भी दिखाए। वह तेवर दिखाने दिल्ली भी गए पर वहां उनकी मुलाकात बीजेपी के किसी भी बड़े नेता से नहीं हुई। अमित शाह ने अपना बयान वापस भी नहीं लिए। हालांकि उन्होंने अपना बिहार का दौरा रद्द कर दिया।
नीतीश कुमार अब सहमे सहमे लग रहे हैं। वह इतने डरे हुए हैं कि बहुत कम समय में दूसरी बार राजभवन गए हैं। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि नीतीश कुमार बदलते समीकरणों से डरे हुए हैं या फिर बीजेपी को भ्रमित कर रहे हैं। बिहार के बदले समीकरणों को देखकर यह तो कहा जा सकता है कि बीजेपी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाने जा रही है और जदयू को उसके हिसाब से सीटें नहीं मिलने रही है। जदयू में टूट से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। नीतीश की यह भी समझ में आ चुका है कि जितनी देरी हो रही है उतना ही खेल उनका बिगड़ रहा है।
ऐसे में यह माना जा रहा है कि नीतीश कुमार टिकटों के बंटवारे में बीजेपी को मजबूर करेंगे। नीतीश कुमार टिकटों के बंटवारे में बीजेपी पर तानाशाही का आरोप जड़कर लालू के साथ हाथ मिला सकते हैं। दरअसल आने वाले समय में नीतीश कुमार को और अपमानित होना पड़ सकता है। भले ही 2020 में सीटें कम आने के बावजूद पीएम मोदी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया हो पर मोदी यह भी नहीं भूले होंगे कि नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार में नहीं घुसने दिया था। उनके प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनने पर सबसे अधिक विरोध नीतीश कुमार ने ही किया था। तो मोदी और अमित शाह ने नीतीश से बदला लेना शुरू कर दिया है।
इसमें दो राय नहीं कि नीतीश कुमार आज भी विपक्ष में सबसे बड़ा चेहरा है। आज की तारीख में भी वह विपक्ष को एकजुट कर सकते हैं। विपक्ष के दलों की जो स्थिति है। यदि उनको यह लगा कि नीतीश कुमार उनके साथ आने जा रहे हैं तो केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए नीतीश कुमार को अपना नेता मान लेंगे। 18 जनवरी को एक एक ओर आरजेडी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग है तो दूसरी ओर कांग्रेस का संविधान सुरक्षा सम्मेलन है। इस सम्मेलन को संबोधित करने के लिए प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी पहुंच रहे हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि राहुल गांधी, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की मीटिंग हो सकती है। हो सकता है कि नीतीश कुमार बीजेपी के दबाव में राहुल गांधी से दूरी बनाकर रखें।