जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती से बदलेगी किसानों की तस्वीर व तकदीर

भूमि को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने के लिए प्राकृतिक खेती को अपनाने की जरूरत

सुभाषचंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा। डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविधालय के कुलपति डा पुण्यव्रत सुविमलेंदु पांडेय के नेतृत्व एवं समुचित दिशा निर्देशन में बिहार सरकार के सौजन्य से जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम किसानों के खेत तक नवीनतम बीजों का प्रभेद के साथ आधुनिकतम टेक्नोलोजी पर आधारित अनुसंधान किया जा रहा है।जिससे फिलवक्त सैकड़ों किसान लाभान्वित हो रहे है।

इसी कड़ी में बीते दिन बिहार राज्य के महामहिम राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने भी इस कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होकर कहा कि जलवायु परिवर्तन के काल में प्राकृतिक खेती काफी महत्वपूर्ण है। हमारी संस्कृति में प्राकृतिक खेती के विचार और पद्धति आदिकाल से ही विराजमान है।

साथ ही देश के आधा दर्जन से अधिक जानेमाने कृषि शोध संस्थानों के दिग्गज वैज्ञानिकों के माध्यम से बदलते जलवायु परिदृश्य में प्राकृतिक खेती और इसके महत्व के विषय पर दो दिनों तक लगातार चिंतन मंथन कार्यशाला किया गया। इस दौरान प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हुए कुलपति डा पीएस पांडेय ने बताया कि विषम मौसम परिस्थितियों में इसकी क्षमता और जल उपयोग को भलीभांति रेखांकित किया गया है।

प्राकृतिक खेती को धरातल पर उतारने के लिए सीमित वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध है। प्राकृतिक खेती को किसानों के खेत तक पहुंचाने के लिए वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक नवीनतम टेक्नोलोजी पर आधारित अनुसंधान करने की जरूरत है। इन्होंने वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक खेती के सामाजिक एवं आर्थिक पहलुओं तथा इसके प्रभाव को समझने के लिए तकनीकी ढंग से शोध करने की दिशा में आह्वान किया है।

वहीं इस विश्वविधालय के नवीनतम टेक्नोलॉजी में डिजिटल कृषि, ड्रोन पायलट प्रोजेक्ट प्रशिक्षण के अलावे परंपरागत प्राकृतिक कृषि पर भी देश स्तर के कृषि संस्थानों को नई नई राह दिखाने में सफलता हासिल किया है। कुल मिलाकर केंद्रीय कृषि विश्वविधालय जलवायु परिवर्तन के दौर में प्राकृतिक खेती को किसानों के साथ जोड़ने की मुहिम चलाकर नवोन्मेषी अनुसंधान करने की दिशा में अग्रसर है।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *