चरण सिंह राजपूत
योगी सरकार के सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को दिये गये भरपाई नोटिस वापस लेने को भले ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रदर्शनकारियों की सहानुभूति के रूप में देखा जा रहा हो पर इस मामले में सहानुभूति नहीं बल्कि योगी सरकार की मजाक बनेगी। दरअसल योगी आदित्यनाथ और उनके समर्थक विरोध प्रदर्शनों को लेकर प्रदर्शनकारियों पर इन भरपाई नोटिसों का हवाला देकर दबाव बनाते रहे हैं। दूसरे राज्यों में भी जब कोई आंदोलन होता है तो योगी सरकार के समर्थक योगी के डर से उत्तर प्रदेश में आंदेालन न होने की बात करते रहे हैं। तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ जब दिल्ली बार्डर पर जब किसान आंदोलन चल रहा था तो योगी सरकार ने भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत की गिरफ्तारी कर आंदोलनकारियों को खदेड़ने का षड्यंत्र रचा था पर वह दांव योगी सरकार को उल्टा पड़ा गया था और राकेश टिकैत का कद और बढ़ गया था।
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सीएए विरोधी आंदोलन में यूपी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को बहुत सी यातनाएं दी थी। सीएए के विरोध में दिल्ली शाहीन बाग में चला महिलाओं का ऐतिहासिक आंदोलन केंद्र सरकार ने कोरेाना का हवाला देकर तुड़वाया था। यह भरपाई नोटिसों की हनक ही थी कि बीच भाकियू राकेश टिकैत ने जब लखनऊ में विधानसभा घेरने का कार्यक्रम रखा तो योगी आदित्यनाथ के साथ ही उनके समर्थकों ने राकेश टिकैत को चुनौती देते हुए तंज कसा था कि यहां पर योगी आदित्यनाथ है। योगी समर्थकों ने एक कार्टून बनाकर सोशल मीडिया पर भी डाला था। हालांकि राकेश टिकैत ने लखनऊ में जाकर कृषि कानूनों के विरोध में हुंकार भरी थी। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने खुद इन नोटिसों को रद्द करने की चेतावनी योगी सरकार को दी थी तो सरकार ने ये भरपाई नोटिस वापस लिये हैं।दरअसल उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून (CAA) विरोधी सभी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जारी शो-कॉज नोटिस वापस ले लिए हैं। बाकायदा यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह जानकारी दी है। उप्र सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उसने सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ लिए गए हर ऐक्शन और भरपाई के लिए जारी नोटिस वापस ले लिए हैं। सरकार के मुताबिक, “संपत्ति नष्ट करने के लिए, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भरपाई के 274 नोटिस को 13 और 14 फरवरी को वापस ले लिया गया है। योगी सरकार ने भले ही उत्तर प्रदेश चुनाव में फायदे के लिए ये नोटिस वापस लिए हों पर इस मामले में योगी सरकार को कोई सहानुभूति नहीं मिलने जा रही है। यूपी सरकार ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को रिकवरी नोटिस दिए थे, जिस पर कोर्ट ने सरकार को अब तक की गई किसी भी वसूली को वापस करने का निर्देश दिया है।इससे पहले, 11 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर यूपी सरकार की खिंचाई कर कहा था कि नोटिस अदालत की ओर से निर्धारित दिशानिर्देशों के उल्लंघन में थे। दरअसल कोर्ट का संदर्भ उसके साल 2009 के फैसले के लिए था कि कमिश्नर जो ऐसे मामलों में नुकसान का अनुमान लगाएगा और दायित्व की जांच करेगा, वह एक जज होगा। टॉप कोर्ट ने साल 2018 में एक फैसले में इसे दोहराया था।
बेंच ने कहा था, “हम इन नोटिसों को रद्द कर देंगे और फिर आप नए अधिनियम के अनुसार कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। जो कार्यवाही पेडिंग है, वह नए कानून के तहत होगी। आप हमें अगले शुक्रवार को बताएं कि आप क्या करना चाहते हैं और हम इस मामले को आदेश के लिए बंद कर देंगे।” पिछले दिनों एक राष्ट्रीय अखबार में छपी खबर के अनुसार नोटिस मिलने वाले परिवारों में 15 ऐसे परिवार पाए गए थे, जिनमें से अधिकतर तांगा चालक से लेकर दूधवाले जैसे रोज कमाने-खाने वाले लोग थे। इन्होंने विरोध प्रदर्शन में अपनी कथित भूमिका के लिए जिला प्रशासन को 13,476 रुपए (हर किसी ने इतनी ही रकम) चुकाए। पर किसी को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके हिस्से का भुगतान वाली रकम कैसे आई। यही नहीं, पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी और कांग्रेस नेता सदफ जाफर भी एडीएम (लखनऊ पूर्व) से वसूली के आदेश पाने वालों में से थे।