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चाटुकारिता हो तो रामजी लाल सुमन जैसी ?

चाटुकारिता
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शान में पढ़े जा रहे कसीदे अखिलेश तक पहुंचने में व्यवधान बन रहे जिलाध्यक्ष पर ही उठा दिया हाथ 

चरण सिंह राजपूत 
राजनीतिक दलों से देश और समाज के भले की क्या उम्मीद की जा सकती है। इस बात का पता इससे लगता है कि जब राजनीतिक दलों में चाटुकारिता इस हद तक पहुंच गई है कि हर अपने आका को काम से नहीं बल्कि चाटुकारिता से प्रभावित किया जाता है। नेता भी हैं कि उन्हें काम वाले कार्यकर्ता नहीं बल्कि चाटुकारिता करने वाले कार्यकर्ता पसंद हैं। जब कोई केंद्रीय मंत्री के पद पर रहा नेता पार्टी अध्यक्ष की शान में इतने कसीदे पढ़े कि अपने कद का भी ध्यान न रखे। इतना ही नहीं अध्यक्ष की चाटुकारिता में बाले गये बोल उन तक पहुंचने में यदि कोई व्यवधान बन जाए तो उस पर मंच से हाथ उठा दे तो क्या कहा जाएगा। हाथ भी उस नेता पर उठाया जो पार्टी का जिलाध्यक्ष है अपने नेता से बात कर रहा था।
दरअसल आगरा में अखिलेश यादव के मंच पर भाषण दे रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजीलाल सुमन ने पार्टी के जिलाध्यक्ष पर ही हाथ उठा दिया। जिलाध्यक्ष की गलती बस इतनी थी कि जब राम जी लाल अखिलेश यादव की शान में कसीदे पढ़ रहे थे तो जिलाध्यक्ष अखिलेश यादव से बात करने लगे। राम जी लाल की बात अखिलेश यादव तक न पहुंच पाने से झल्लाए राम जी लाल ने गुस्से में आकर सपा जिलाध्यक्ष पर ही हाथ उठा दिया। रामजीलाल उस सपा नेता पर भाषण के बीच में अखिलेश यादव से बात करने को लेकर गुस्सा थे। रामजीलाल के गुस्से में हाथ उठाने का वीडियो खूब वायरल हो रहा है।

दरअसल रविवार को अखिलेश यादव आगरा के बाह में सपा रालोद गठबंधन के प्रत्याशी मधुसूदन शर्मा के पक्ष में प्रचार करने पहुंचे थे। अखिलेश यादव मंच पर अपने जिलाध्यक्ष जितेन्द्र वर्मा के साथ बैठे थे। जितेन्द्र वर्मा और अखिलेश यादव आपस में बातचीत कर रहे थे। इसी दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री व सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामजीलाल सुमन सभा को संबोधित कर रहे थे। सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने अखिलेश यादव की शान में कसीदे पढ़े और कहा कि मैं अखिलेश यादव को पूर्व मुख्यमंत्री नहीं बल्कि भावी मुख्यमंत्री कहूंगा। क्योंकि वे 10 मार्च के बाद राज्य के मुख्यमंत्री होंगे।
जितेन्द्र वर्मा से बात करने के कारण अखिलेश यादव ने शायद रामजीलाल सुमन की बात पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद रामजीलाल सुमन ने पीछे मुड़कर देखा और वे जितेन्द्र वर्मा के पास पहुंच गए। उन्होंने जितेन्द्र वर्मा को चांटा दिखाया लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें रोक दिया। रामजीलाल सुमन के इस व्यवहार से जितेन्द्र वर्मा थोड़े पल के लिए आश्चर्य में आ गए। अखिलेश यादव को जहां रामजी लाल सुमन पर आक्रोश व्यक्त करना चाहिए था तब वह हंसने लगे। अब जब अखिलेश यादव हंस हसेंगे तो जिलाध्यक्ष जितेन्द्र वर्मा की हंसना तो मज़बूरी हो जाएगा।

दरअसल राजनीतिक दलों में गुलाम प्रवृत्ति बहुत पनप रही है। बड़े नेता कायर्कर्ताओं और छोटे नेताओं को अपना गुलाम समझते हैं। नेता भी अपने आकाओं से अपनी बात कहने के लिए चाटुकारिता का इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि लगभग हर पार्टी में एक या दो नेता ही पार्टी पर कब्जा करके बैठे हुए हैं। क्षेत्रीय पार्टियोंं में तो बस एक ही नेता होता है। जब रामजीलाल अखिलेश यादव के सामने ही उनके जिलाध्यक्ष पर हाथ उठा रहे थे तो अखिलेश यादव ने उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की। बात तो अखिलेश यादव भी कर रहे थे ? जिलाध्यक्ष जो बातें कर रहे थे उसमें अखिलेश यादव की भी तो सहमति थी। या दूसरे भाषण होते हुए रामजी लाल सुमन अखिलेश यादव से बात नहीं करते होंगे ? रामजी लाल सुमन के क्रियाकलाप से प्रश्न उठता है कि वह भाषण अखिलेश यादव के लिए दे रहे थे या फिर उपस्थित क्षेत्रीय लोगों के लिए। सरकार बनने की बात तो खुद अखिलेश यादव ही कर रहे हैं। तो उन्होंनें भावी मुख्यमंत्री बोल दिया तो कौन सी अलग बात बोल दी। क्या रामजीलाल सुमन के पास स्थानीय मुद्दे नहीं थे जो अखिलेश यादव को सुनाते, जबकि वह तो आगरा के ही नेता हैं। यह उत्तर प्रदेश के लोगों का दुर्भाग्य ही है कि चुनाव में जमीनी मुद्दोें के बजाय सरकार बनने, मुख्यमंत्री बनने तक ही नेताओं के भाषण सिमट कर रह जा रहे हैं। अखिलेश यादव और रामजीलाल सुमन को समझना चाहिए कि यह तो किसान आंदोलन है जो उनके पक्ष में माहौल बन रहा है। रामजी लाल सुमन लोगों को यह भी बताएं कि विपक्ष में रहते हुए ऐसा उन्होंने क्या किया है जो लोग उन्हें वोट दें। सपा उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी रही है पर उसका कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ।