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अगर इस नेता को मोदी ने काबू कर लिया, तो एनडीए छोड़ ‘इंडिया’ में नहीं जाएंगे नीतीश कुमार!

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दीपक कुमार तिवारी

पटना। नीतीश कुमार एनडीए से अलग नहीं होंगे। केंद्र के साथ बिहार में भी उनका भाजपा से साथ बना रहेगा। यह कोई भविष्यवाणी नहीं, बल्कि स्थितियों के आकलन से निकला अनुमान है। इंडिया ब्लॉक में उनकी वापसी की अक्सर अटकलें जोर पकड़ने लगती हैं। हाल ही उनकी मुलाकात एक बैठक के दौरान हुई तो कयासबाजी शुरू हो गई कि उनका मन फिर डोल रहा है। अफवाह इतनी तेजी से फैली कि उन्हें जेपी नड्डा की मौजूदगी में सफाई देनी पड़ गई कि पिछली गलती अब वो नहीं दोहराएंगे। लेकिन एक नेता NDA में अभी भी ऐसा है जिसे काबू में रखना पीएम मोदी के लिए जरूरी है। बस यूं समझिए कि ये नेता काबू में रहा तो नीतीश एनडीए से अलग होने की सोचेंगे भी नहीं। पहले जानते हैं कि नीतीश क्यों एनडीए से अलग नहीं होंगे।
आरजेडी में तेजस्वी यादव अपने को बिहार का भावी सीएम प्रोजेक्ट कर रहे हैं। वे नहीं चाहेंगे कि उनके बरक्स कोई इंडिया ब्लॉक में खड़ा हो। नीतीश कुमार को हर हाल में सीएम की कुर्सी चाहिए। सीएम की कुर्सी बरकरार रखने के लिए ही वे पाला भी बदलते रहे हैं। तेजस्वी को लगता है कि सरकार में 17 महीने साथ रह कर उन्होंने रोजगार की दिशा में जितना काम किया है, उसका प्रतिफल इस बार विधानसभा चुनाव में उन्हें जरूर मिलेगा। वे अपनी स्थिति 2020 के मुकाबले काफी बेहतर मान रहे हैं। पिछली बार ही उन्हें सीएम बनने का मौका मिल जाता। सिर्फ आठ-नौ विधायकों की कमी से वे सीएम नहीं बन पाए। उन्हें 17 महीने के अपने काम से उम्मीद तो जगी ही है, केंद्र के कई फैसलों पर साथ रहने की वजह से नीतीश की साख में बट्टा भी लगा है। इसलिए वे इस बार कामयाबी के प्रति पहले से अधिक आश्वस्त हैं। ऐसे में वे नीतीश कुमार को क्यों तरजीह देंगे? नीतीश कुमार भी इंडिया ब्लॉक में जाकर नंबर दो का रुतबा पसंद नहीं करेंगे।
रही बात एनडीए की तो यहां वे ज्यादा कंफर्ट फील कर रहे हैं। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर प्रदेश स्तरीय नेताओं तक को नीतीश की मातहती कबूल है। भाजपा की ओर से जिस तरह उनके नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ने की बात होती रही है, उससे उनके बड़े भाई का रुतबा भी बरकरार रहने की उम्मीद है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से नीतीश का सीधा संवाद है। इंडिया ब्लॉक में रह कर वे देख चुके हैं कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए भी उन्हें चिरौरी करनी पड़ती थी। कम से कम भाजपा के साथ तो यह बात नहीं है। यानी नीतीश की एनडीए में उपेक्षा भी नहीं हो रही है।
नीतीश कुमार बिहार में सिर्फ नाम के लिए बड़ा भाई नहीं बनना चाहते। वे चाहते हैं कि जिस तरह भाजपा एक सीट अधिक लेकर बड़े भाई की भूमिका में रही, उसी तरह विधानसभा चुनाव में जेडीयू भी अधिक सीटों पर चुनाव लड़े। उन्होंने अपनी मंशा भी भाजपा नेतृत्व को बता दी है। जेडीयू इस बार 120 से 130 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है। सीटों का बंटवारा लोकसभा चुनाव में भाजपा ने किया था। इस बार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार यह काम अपने हाथ में लेना चाहते हैं। यानी वे तय करेंगे कि जेडीयू कितनी सीटों पर लड़ेगा। जेडीयू का मानना है कि उसका समझौता भाजपा के साथ है, इसलिए बाकी सहयोगी दलों को भाजपा संभाले।
नीतीश कुमार को भय सिर्फ चिराग पासवान से है। इसलिए कि सीटों की संख्या और विधानसभा क्षेत्रों को लेकर उनका रुख साफ नहीं दिख रहा है। चिराग तो भाजपा के लिए भी सिर दर्द बने हुए हैं। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद उनके तेवर थोड़े नरम पड़े हैं। अब वे गठबंधन में ही रह कर चुनाव लड़ने की बात कहने लगे हैं। पीएम मोदी के कसीदे पढ़ रहे हैं। उन्हें मोदी विजनरी लग रहे हैं। वैसे भी चिराग को संभालने का जिम्मा नीतीश भाजपा पर ही छोड़ना चाहते हैं। उपेंद्र कुशवाहा से नीतीश को कोई भय नहीं, लेकिन जेडीयू को उनके एकला चलो पर एतराज है। जेडीयू के एमएलसी भगवान सिंह कुशवाहा ने कहा भी है कि उन्हें अकेले बिहार यात्रा का प्लान नहीं बनाना चाहिए था।