काश भगत सिंह की शहादत को समझ पाता देश!

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चरण सिंह
सरदार भगत सिंह देश में ऐसा नाम रहा है, जिन्होंने देश की आजादी को गति देने के लिए शहादत दी और क्रांतिकारी विचारों से अंग्रेजी हुकूमत की चूलों हिलाई। भगत सिंह की शहादत से गुलाम देश में तो आजादी का जज्बा जग गया था पर आजाद देश न तो भगत सिंह की शहादत को समझने तो तैयार है और न ही देश का युवा भगत सिंह के विचारों को आत्मसात करने को। भगत सिंह की चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर देश ने भगत सिंह की जयंती तो मनाई पर भगत सिंह के संघर्ष से युवा प्रेरणा लेने को तैयार नहीं। भगत सिंह ऐसे क्रांतिकारी रहे हैं जिनका कतरा-कतरा देश के लिए न्यौछावर था। देश के लिए सब कुछ बलिदान करने वाले भगत सिंह की शहादत अंग्रेजी हुकूमत की चूलें तो हिला दी थी पर आजाद भारत की सरकारें उनको सम्मान नहीं दे पाईं। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज भी भगत सिंह को शहीद का दर्जा प्राप्त नहीं। आजाद भारत में भी भगत सिंह को क्रांतिकारी आतंकी पढ़ाया जाता रहा।
हर जयंती पर भगत सिंह को याद किया जाता है पर कोई माता-पिता अपने बेटे को भगत सिंह ने बनाना चाहता। लोग यह तो चाहते हैं कि भगत सिंह पैदा हो पर दूसरे के घर में। आज के नेताओं ने जिस तरह से आजादी को कीमत को भूला दिया है। ऐसे भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों की शहादत को याद करना बहुत जरूरी हो जाता है। भगत सिंह के अंतिम दिनों में लाहौर जेल का माहौल आज भी याद किया जाता है। किस तरह से भगत सिंह को फांसी लगने से पहले जेल के वेंडर चरत सिंह ने जेल के कैदियों से कह दिया था कि ये लोग अपने बैरग में चले जाएं और कोई बाहर नहीं निकलेगा। लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। दरअसल भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी सुबह दी जानी थी पर भगत सिंह की लोकप्रियता से घबराकर अंग्रेजी हुकूमत ने एक दिन पहले शाम को साढ़े सात बजे ही उन्हें फांसी दे दी। भगत सिंह फांसी से पहले लेनिन की किताब को पढ़कर खत्म कर देना चाहते थे। जब उनसे पूछा गया कि वह अंतिम समय में क्या कहना चाहते थे तो भगत सिंह ने किताब को नीचे कर कहा था साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद।
भगत सिंह की शहादत का अंग्रेजी हुकूमत ने बहुत अपमान किया था। भगत सिंह का अंतिम संस्कार जेल में ही करने रणनीति अंग्रेजी हुकूमत की थी अंत समय में रणनीति बदल दी गई। दरअसल अंग्रेजी हुकूमत को यह अंदेशा था कि जेल से धुआं उठते देख भारतीय लोग जेल पर हमला कर सकते हैं। ऐसे में जेल के पीछे की दीवार तोड़ी गई। ट्रक में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शवों को ऐसा डाला गया जैसे कि कोई सामान लादा जा रहा हो। इससे ज्यादा दुर्गति इन क्रांतिकारियों के शवों की नहीं हो सकती थी। इतना ही नहीं रात को दस बजे सतलुज नदी पर केरोसिन डालकर इन क्रांतिकारियों का अंतिम संस्कार किया था। ऐसे में आसपास के लोग भड़क उठे। जैसे ही आसपास के गांवों के सतलुज नदी की ओर दौड़े तो अंग्रेज शवों को वहां छोड़ भाग खड़े हुए। अगले दिन विधिवत रूप से इन क्रांतिकारियों का अंतिम संस्कार किया गया। क्रांतिकारियों की इतनी दुर्गति और आज के नेता आजाद भारत के संसाधनों का जमकर दोहन कर रहे हैं। देश के साथ गद्दारी करने वाले लोग आजाद भारत में भी मलाई चाट रहे हैं और भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के परिजन फटे हाल में हैं।

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